essay on ka varsa jab krashi sukhane
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कहावत है कि का बरसा जब कृषि सुखाने और इस कहावत से सीख लेते हुए मानसून की पिछात बारिश में मारे खुशी के फूलकर कुप्पा होने से पहले यह सोचना जरुरी है कि आखिर नुकसान कितना हो चुका है। नुकसान हुआ है और भरपूर हुआ है। देश के खेतिहर इलाके के ६० फीसदी हिस्से पर, खासकर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में, इस बार रबी की फसल नहीं काटी जा सकेगी और ये आंकड़ा इतना जताने के लिए काफी है कि मानसून की पिछात बारिश के बावजूद इस साल अनाज के कम उत्पादन, घटती ग्रामीण क्रयशक्ति, खाद्यान्न की आसमान छूती कीमतों और गांवों में जीविका के संकट से निपटना आसान ना होगा।.
गुजरे महीने की २१ तारीख को सूखे से पैदा हालात के बारे में राज्यों के कृषिमंत्रियों की एक बैठक हुई और इस बैठक में मुद्दे पर बेलाग चर्चा चली।२० अगस्त तक समाचारों में यह आ चुका था कि इस साल मानसून की बारिश औसत से २६ फीसदी कम हुई है और इससे खरीफ की फसल के रकबे में खासी कमी आई है। २४६ जिलों को सूखाग्रस्त भी घोषित किया जा चुका था। बैठक में सूखे से निपटने के उपायों पर चर्चा चली तो बीजों की मांग और पूर्ति, सिंचाई की सुविधाओ से जुड़ी चालू परियोजनाओं की मुकम्मली से लेकर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने तक के मसलों पर खिंचती चली गई। इनके बारे में फैसले लिए गए मगर उनके नतीजों के आने में अभी देर लगेगी।
गुजरे महीने की २१ तारीख को सूखे से पैदा हालात के बारे में राज्यों के कृषिमंत्रियों की एक बैठक हुई और इस बैठक में मुद्दे पर बेलाग चर्चा चली।२० अगस्त तक समाचारों में यह आ चुका था कि इस साल मानसून की बारिश औसत से २६ फीसदी कम हुई है और इससे खरीफ की फसल के रकबे में खासी कमी आई है। २४६ जिलों को सूखाग्रस्त भी घोषित किया जा चुका था। बैठक में सूखे से निपटने के उपायों पर चर्चा चली तो बीजों की मांग और पूर्ति, सिंचाई की सुविधाओ से जुड़ी चालू परियोजनाओं की मुकम्मली से लेकर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने तक के मसलों पर खिंचती चली गई। इनके बारे में फैसले लिए गए मगर उनके नतीजों के आने में अभी देर लगेगी।
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