Hindi, asked by anantmokal, 1 year ago

Essay on Kabir sant hi nahi samaj sudharak bhi the

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Answered by abhinavzm97
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भारतीय संस्कृति में संतों की महिमा अद्भुत है। समाज के गुरु ईश्वर तुल्य होते हैं। समाज में व्याप्त बुराई, अराजकता और अशांति को संत ही हमेशा से नियंत्रित करते रहे हैं। कबीरदास एक निर्भीक समाज सुधारक थे। उनके विचार आज भी समाज के लिए प्रासंगिक हैं। धर्म के ऊपर मानवता को स्थापित किया है।

उन्होंने भेदभाव को भुलाकर हमेशा भाईचारे के साथ रहने की सीख दी है। सामाजिक विषमता को दूर करना ही उनकी पहली प्राथमिकता थी। उनकी जयंती पर उनके आदर्शों को जीवन में आत्मसात करना ही इस आयोजन को सार्थक बनाएगा।

प्रातः बेला में मैंने परम वंदनीय कबीर दास का स्मरण किया, कमरे में टंगे चित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए और चल पड़ा गंगा नहाने। कंधे पर अंगोछा देख हमारे पड़ोसी मेहरा चौंके - 'का बात है बौरा गए हो का, ई सुबह-सुबह कहां चल दिए।' मैं मुस्कराया और बोला, 'मेहरा जी राम-राम, सब कुशल रहे इसलिए गंगा स्नान को जा रहा हूं, चलते हैं तो चलिए।

मेहरा भोर के झोंके में थे। वे अपने ओरिजनल फॉर्म से औपचारिक रूप में आते हुए बोले- 'नहीं-नहीं मित्रवर, आप जाइए और दिन का शुभारंभ करिए।' मेहरा क्षण भर को ही सही, आप अपने भीतर सो रही आत्मा के सुर में बोल रहे थे, अचानक महानगरीय खोल में क्यों सिमट गए,' मैं शिकायती लहजे में बोला।

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' वो क्या है कि ज्यादा देर जीवन के वास्तविक स्वरूप में रहने पर तबियत खराब होने लगती है। आजकल मैं टेंशन फ्री रहने के लिए मुक्त चिंतन का सहारा ले रहा हूं,' मेहरा ने मुझे जीवन की वास्तविकता से अवगत कराया। उनके जवाब में छुपा टेंशन फ्री रहने के लिए मुक्त चिंतन का फंडा मेरे विचारों को हिट कर गया। रहना तो मैं भी टेंशन फ्री ही चाहता हूं पर आजकल के जमानें में टेंशन फ्री रहना आसान है क्या?

घर-ऑफिस, सड़क, देश-प्रदेश हर तरफ टेंशन का बोलबाला है। दिन भर किसी टेंशन से पाला न पड़े इसी टेंशन में तो सुबह-सुबह गंगा नहाने जा रहा था।

मुझसे रहा नहीं गया, मैंने पूछा, 'मेहरा जी चिंतन और उन्मुक्त चिंतन तो सुना है परंतु यह मुक्त चिंतन क्या बला है।'

वे मुस्कराए, उनकी मुस्कराहट में मेरे अल्पज्ञानी होने का भाव छुपा हुआ था, फिर बोले 'मुक्त चिंतन मार्केट का शब्द है, देखो इतनी बड़ी मार्केट में अगर तुम टेंशन लेकर जी रहे हो तो तुम्हारा कल्याण परमपिता परमेश्वर भी नहीं कर पाएंगे। कब तक भाग्य भरोसे किस्मत चमकने की प्रतीक्षा करते रहोगे।'

मैंने कहा, 'आप मार्केट के नाम पर इक्कीसवीं सदी में चाहे जितना उछल लीजिए इसका मूल भाव तो हमारे देश की सोलहवीं सदी की उपज है जिसकी कल्पना कबीर बहुत पहले ही कर चुके हैं। वैसे आप आज बड़े खुश लग रहे हैं, क्या बात है?' मैंने बात पूरी करते हुए कहा।

मेहरा जी बोले, 'उन्होंने भी लिखा है कबिरा खड़ा बाजार में..। सो टेंशन मुक्त होने के लिए बाजार में खड़े हो जाओ और खरीददारी में जुट जाओ, नकद नहीं तो उधार लो। तुम टेंशन फ्री हो जाओगे।'

मैंने पूछा, 'मेहरा जी बौद्धिक स्तर पर मार्केट से विरक्ति कैसे होती है?'

मेहरा बोले 'जब तुम देखते हो कि हवन सामग्री तक की मार्केटिंग में बहुराष्ट्रीय कंपनियां उतर चुकी हैं तो स्वतः तुम इस मोह-माया से विरक्त हो जाते हो। तुम कबीरवादी बन जाते हो।' मेहरा जी तो इतना कह अंदर चल दिए।

मैंने गौर से अपने हुलिए पर नजर डाली और सोचा कि चलूं जल्दी से गंगा नहा लूं या अपना हुलिया बदल डालूं वरना दुनिया के बाजार में अपना कारोबार मुश्किल हो जाएगा।

Answered by nilesh102
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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी।

उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।

कबीर दास भारत के महान कवि और समाज सुधारक थे। कबीर दास (Kabir Das) के नाम का अर्थ महानता से है। वे भारत के महानतम कवियों में से एक थे।

जब भी भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति की चर्चा होती है तो कबीर दास जी का नाम का जिक्र सबसे पहले होता है क्योंकि कबीर दास जी ने अपने दोहों (Kabir Das Ji Ke Dohe ) के माध्यम से भारतीय संस्कृति को दर्शाया है|

इसके साथ ही उन्होनें जीवन के कई ऐसे उपदेश दिए हैं जिन्हें अपनाकर दर्शवादी बन सकते हैं इसके साथ ही कबीर दास ने अपने दोहों से समाज में फैली कुरोतियों को दूर करने की कोशिश की है और भेदभाव को मिटाया है। कबीर पंथ के लोग को कबीर पंथी कहे जाते है जो पूरे उत्तर और मध्य भारत में फैले हुए है। संत कबीर के लिखे कुछ महान रचनाओं में बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रंथ आदि है।

कबीरदास के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या अलग-अलग लेखों के मुताबिक अलग – अलग हैं वहीं एच.एच. विल्सन की माने तो कबीर के नाम पर 8 ग्रंथ हैं। जबिक विशप जी.एच. वेस्टकॉट ने कबीर के 84 ग्रंथों की लिस्ट जारी की है वहीं रामदास गौड ने `हिंदुत्व’ में 71 किताबें गिनाईं हैं।

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