Hindi, asked by Rishita1597, 9 months ago

essay on कथनी-करनी करो एेक समान for grade 7​

Answers

Answered by mobiofficial99
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Explanation:

कथनी से करनी भली

कहते हैं कहना तो आसान है किन्तु करके दिखाना बड़ा कठिन होता है। किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे राजनीतिज्ञों ने इसे सच करके दिखा दिया है। चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे किये जाते हैं। हम यह कर देंगे हम वो कर देंगे। हम देश से गरीबी हटा देंगे, भूख भगा देंगे इत्यादि इत्यादि। किन्तु ज्योंहि चुनाव में विजयी हुए उनकी सूरत तक देखने को वोटर बेचारा तरस जाता है। हाँ, कहीं सौभाग्य से वे नेता जी मंत्री बन जाएँ तो उनकी फोटो प्रतिदिन समाचार-पत्रों में देखने को मिल जाती है। आज मंत्री जी ने श्मशान घाट का उद्घाटन किया तो कल मंत्री जी विधवा आश्रम का उद्घाटन करेंगे जैसे समाचार पढ़ने को अवश्य मिल जाएँगे। बड़ों ने कहा है कि जो व्यक्ति केवल कहता है। करता कुछ नहीं तो लोगों का विश्वास उस पर से उठ जाता है। हम इस बात को नहीं मानते। कितने ही नेता हैं जो केवल कहते हैं करते कुछ नहीं वे हर बार चुनाव जीत जाते हैं। हर बार लोग उनकी कथनी पर विश्वास करके उन्हें बोट देते हैं। यही तो हमारे जनतंत्र की विशेषता है। वह युग गया जब महात्मा गाँधी के पास कोई व्यक्ति यह पूछने गया था कि महात्मा जी गुड़ कैसे छोड़ जाए। गांधी जी उसे परसों आने को कहा। उस दिन जाने पर गांधी ने उस व्यक्ति को कहा-तुम गुड खाना छोड़ दो। उस व्यक्ति ने कहा महात्मा जी यह वाक्य तो आप बीते परसों भी कह सकते थे। गाँधी जी ने उत्तर दिया उस दिन में स्वयं गुड़ खाता था। यदि उस दिन मैं तम्हें गड छोड़ने को कहता तो तुम्हारा गुड़ भी खाना छुटता नहीं। आज मैंने स्वयं गड खाना छोड़ दिया है इसलिए तुम्हें भी गुड़ खान छोड़ने को कह रहा हूँ। गाँधी जी को लोग बापू और राष्ट्र पिता इसलिए कहते हैं कि वह जो कहते थे वो करते भी थे। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने ने अपना पाखाना तक स्वयं साफ किया था। यदि नेताओं की बात छोड़ दें तो क्या आज के युग में ऐसे साधु प्रचारक का नहीं मिलते जो दूसरों को तो मोह माया त्यागने का उपदेश देते हैं परन्तु स्वयं लम्बी लम्बी कीमती गाड़ियों में घूमते हैं। यदि हम मन, वचन, कर्म में समान नहीं तो दूसरों पर हमारा प्रभाव कैसे पड़ेगा कौन सुनेगा हमारी बात। इतिहास साक्षी है कि जिन-जिन लोगों की आर करनी समान थी वे अमर हो गए। हमें भी चाहिए जो कहें उसे कर दिखाएँ नहीं तो कहें ही नहीं व्यर्थ की डींगें मारने से कोई लाभ नहीं। दूसरों को उपदेश देने वाले तो बहुत मिल जाएँ पर स्वयं उस पर अमल करने वाले थोड़े मिलेंगे। काश हमारे राजनीतिज्ञ गद्दी का मोह छोड़कर वही कहें जो वे करना चाहते हैं। करके दिखाएँ तो जाने।

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