essay on mahatma budh in hindi
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महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था । उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म लगभग ढाई हजार वर्ष पहले कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर में हुआ था । उनकी माता का नाम महामाया था । महारानी महामाया पुत्र-जन्म के सात दिन बाद स्वर्ग सिधार गईं । माता की बहन गौतमी ने बालक का लालन-पालन किया । इस बालक के जन्म से महाराज शुद्धोदन की पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हुई थी, इसलिए बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया । गौतम नाम इनके गोत्र के कारण पड़ा ।
सिद्धार्थ की जन्मपत्री देखकर राज ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि बालक बड़ा होकर या तो चक्रवर्ती राजा बनेगा या तपस्या के उपरांत महान संत बनेगा । संत बनने की बात सुनकर पिता को चिंता हुई । उन्होंने महल में बालक के आमोद-प्रमोद के लिए सभी इंतजाम कर दिए ।
सिद्धार्थ बचपन से ही करुणायुक्त और गंभीर स्वभाव के थे । बड़े होने पर भी उनकी प्रवृत्ति नहीं बदली । तब पिता ने यशोधरा नामक एक सुदर कन्या के साथ उनका विवाह करा दिया । यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया । परंतु सिद्धार्थ का मन गृहस्थी में नहीं रमा । एक दिन व भ्रमण के लिए निकले । रास्ते में रोगी वृद्ध और मृतक को देखा ता जीवन की सच्चाई का पता चला । क्या मनुष्य की यही गति है, यह सोचकर वे बेचैन हो उठे । फिर एक रात्रिकाल में जब महल में सभी सो रहे थे सिद्धार्थ चुपके से उठे और पत्नी एव बच्चों को सोता छोड़ वन को चल दिए।
उन्होंने वन में कठोर तपस्या आरंभ की । तपस्या से उनका शरीर दुर्बल हो गया परंतु मन को शांति नहीं मिली । तब उन्होंने कठोर तपस्या छोड्कर मध्यम मार्ग चुना । अंत में वे बिहार के गया नामक स्थान पर पहुँचे और एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए । एक दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । वे सिद्धार्थ से ‘ बुद्ध ‘ बन गए । वह पेड़ ‘ बोधिवृक्ष ‘ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध सारनाथ पहुंचे । सारनाथ में उन्होंने शिष्यों को पहला उपदेश दिया । उपदेश देने का यह क्रम आजीवन जारी रहा । इसके लिए उन्होंने देश का भ्रमण किया । एक बार वे कपिलवस्तु भी गए जहाँ पत्नी यशोधरा ने उन्हें पुत्र राहुल को भिक्षा के रूप में दे दिया । अस्सी वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध निर्वाण को प्राप्त हुए ।
बुद्ध के उपदेशों का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा । अनेक राजा और आम नागरिक बुद्ध के अनुयायी बन गए । उनके अनुयायी बौद्ध कहलाए । बौद्ध धर्म को अशोक, कनिष्क तथा हर्ष जैसे राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ । इन राजाओं ने बौद्ध धर्म को श्रीलंका, बर्मा, सुमात्रा, जावा, चीन, जापान, तिब्बत आदि देशों में फैलाया ।
महात्मा बुद्ध के उपदेश सीधे-सादे थे । उन्होंने कहा कि संसार दु:खों से भरा हुआ है । दु:ख का कारण इच्छा या तृष्णा है । इच्छाओं का त्याग कर देने से मनुष्य दु:खों से छूट जाता है । उन्होंने लोगों को बताया कि सम्यक-दृष्टि, सम्यक- भाव, सम्यक- भाषण, सम्यक-व्यवहार, सम्यक निर्वाह, सत्य-पालन, सत्य-विचार और सत्य ध्यान से मनुष्य की तृष्णा मिट जाती है और वह सुखी रहता है । भगवान बुद्ध के उपदेश आज के समय में भी बहुत प्रासंगिक हैं ।
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