Essay on maintainence. In hindi
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संतान को बुढ़ापे की लाठी माना जाता है, परन्तु जब यह लाठी ही सहारा देने के बजाय मां-बाप को प्रताडना देने के लिए इस्तेमाल होने लगे तो संबंधों का क्या होगा? समाज और सरकार परम्पराओं को तोड़कर पैदा की जा रही विकृतियों की कब तक उपेक्षा कर सकते हैं? जाहिर है कि इन हालात में समाज व कानून के हस्तक्षेप की तैयारी पुख्ता हो जाती है ।
संसद द्वारा पारित द मेंटिनेन्स एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन बिल, 2007 एक प्रकार से ऐसा ही एक हस्तक्षेप है । बस देखना यही होगा कि इस हस्तक्षेप के लिए निर्धारित प्रावधानों का किस हद तक व कितना प्रभावी तरीके से इस्तेमाल होता है ।
कानून तो बन गया है परन्तु इस पर अमल की चुनौतियां कम नहीं होंगी । कितने प्रताड़ित अभिभावक कानून के इस संरक्षण के प्रति जागरूक बन सकेंगे और कितने इस कानून के प्रावधानों के इस्तेमाल का संकल्प कर सकेंगे, उनका सचमुच इस्तेमाल कर न्याय हासिल कर सकेंगे? यहां पर समाज व सामाजिक एवं स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है ।
उन्हें न केवल जागति उत्पन्न करनी होगी बल्कि कानून के सदुपयोग के लिए सक्रिय भूमिका का निर्वाह भी करना होगा । यदि एक दफा इस कानून के अच्छे नतीजे सामने आने लगे तो ये मां-बाप की उपेक्षा की राह पर चलने वाली संतानों के लिए निषेधात्मक उपाय के रूप में भी प्रतिष्ठित हो सकेंगे ।
इस कानून से बुजुर्गो को अपनी ही संतानों के अत्याचारों व पूर्ण उपेक्षा से बचाने में मदद अवश्य मिलेगी परंतु यही पर्याप्त नहीं है । बुजुर्गो को अच्छे आवास स्थल, स्वास्थ्य सेवाओं और भावनात्मक संबल की जरूरत बनी रहेगी ताकि वे सम्मान के साथ अपने जीवन के शेष वर्षो को बिता सकें ।
वास्तव में भारत जैसे देश में परिवार ही वह सस्था है जो बुजुर्गो की देखभाल, सेवा और सम्मान देती रही है । समय के साथ संयुक्त परिवारों के बिखराव व एकल परिवारों के उदय ने बुजुर्गो के जीवन में भी एक प्रकार की रिक्तता पैदा करना शुरू कर दिया है । एकल परिवारों की कुछ मजबूरियां समझ में आने वाली हैं । इसके अलावा जीवन शैली व जीवन मूल्यों में बदलाव ने भी बुजुर्गो के प्रति उपेक्षा का वातावरण पैदा किया है ।
अपने स्वार्थो के लिए संतानें अपने संस्कारों को झुठलाकर व परम्पराओं को भुलाकर दरिंदगी के दायरे में घुसकर अपने मां-बाप के प्रति शर्मनाक व्यवहार व क्रूरता का आचरण करते हुए देखे गये हैं । ऐसे उदाहरण भी कम नहीं है कि मां-बाप की अर्जित सम्पत्ति मिलने के बाद ही सतान की तरफ से उनकी उपेक्षा का सिलसिला शुरू हो जाता है । सम्पत्ति के लालच में मां-बाप को प्रताड़ित करने के उदाहरण भी अनेक हैं । कई बार दूर के संबंधी भी संपत्ति हथियाने के लालच में कुचक्र रचते हैं और बुजुर्गो की सुरक्षा खतरे में पड़ती है ।
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इस पृष्ठभूमि में जहां गलती करने वाली संतान को राह पर लाने की जरूरत होती है वहीं असहाय व असुरक्षित बुजुर्गो की देखभाल के लिए समाज की तरफ से संस्थागत उपायों की जरूरत भी उजागर होती है । यहां पर ध्यान भी रखना होगा कि देश में बुजुर्गो की संख्या निरंतर बढ़ने के कारण सरकार या समाज की तरफ से भी बड़े पैमाने पर व व्यापक प्रयासों की दरकार है ।
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सरकारों की तरफ से अधिक संसाधन लगाये जाने के अलावा अमल तत्र को प्रभावी बनाने और समाज की अच्छी भागीदारी सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा । बुजुर्गो के मामले में समस्या केवल उनके लालन पालन की या उनके लिए गुजारा भत्ता सुनिश्चित करने तक ही सीमित नहीं है । उनके स्वास्थ्य, मनोरंजन के लिए संस्थागत उपाय करने के अलावा उनकी भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने और उससे भी बढ्कर बुढ़ापे में भी उन्हें सक्रिय बनाए रखने और उनके जीवन को अर्थपूर्ण बनाए रखने की जरूरत होती है ।
इन कसौटियों पर केन्द्र सरकार द्वारा पारित विधेयक के प्रावधानों को देखा जाये तो कहा जा सकता है कि अमीर व मध्यम वर्गीय परिवारों और वेतन-भोगियों के अभिभावक यदि संतान की तरफ से उपेक्षा के शिकार हों तो वे आसानी से गुजारा भत्ता पा सकते हैं । परन्तु गरीब व साधनहीनों के लिए इस विधेयक से किसी प्रकार की ठोस राहत की उम्मीद करना व्यर्थ होगा । ऐसे लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा व वृद्धावस्था पेंशन जैसे उपाय ही प्रभावी हो सकते हैं परन्तु यह उपाय कानून के दायरे से बाहर हैं ।
कानून में वृद्धाश्रम खोलने के बारे में उल्लेख अवश्य है परन्तु सवाल संसाधनों का है और यह सब राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी भी नहीं होगा । हिमाचल प्रदेश में पहले ही लागू इसी प्रकार के कानून के अनुभव बुरे नही हैं इसलिए नया कानून भी ठीक दिशा में एक अच्छा प्रयास है । बुजुर्गो की समस्याएं कहीं अधिक व्यापक व गहन हैं । उसके लिए ऐसा अकेला कानून पर्याप्त नहीं हो सकता है । लोक कल्याणकारी राज्य से इससे कहीं अधिक अपेक्षाएं होना स्वाभाविक होगा ।
कानूनी प्रावधान तो अच्छे है पर अहम बात अमल की है । इससे संपत्ति को लेकर वृद्धों की प्रताड़ना के मामले कम होने की उम्मीद है । खासकर ग्रामीण इलाकों में सम्पत्ति को लेकर बूढ़े लोग बहुत सताए जाते है । नये कानून से उन्हें राहत मिल सकती है । इसकी एक अच्छी बात यह है कि इसमें बेटा और बेटी को समान माना है । बहुत से मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें बेटियां बुजुर्गो को परेशान करती हैं ।
इसमें राष्ट्रीय वृद्धावस्था नीति को लाने की बात भी कही गयी है । यह भी अच्छा है कि शिकायत मिलने पर ट्राययुनल के माध्यम से 5-6 महीने में फैसला आ ही जायेगा । लेकिन लगता नहीं कि इस कानून के अमल में आने के बाद समाज का वृद्धों के प्रति रवैया बदल जायेगा । यह बिल एक तरफ से प्रताड़ना के मामलों को रोकने में अवरोधक का काम करेगा ।