essay on मनोरंजन के सादन
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Explanation:
मनुष्य कार्यशील प्राणी है । वह दिन भर अपने काम में लगा रहता है । शाम को अपने काम से छुट्टी पाने पर उसे थकावट महसूस होती है । थकावट दूर करने के लिए उसे शारीरिक और मानसिक विश्राम की आवश्यकता होती है ।
मानसिक विश्राम उसे मनोरंजन द्वारा प्राप्त होता है । इसलि ए मानव जीवन में मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण स्थान है । भोजन में जो स्थान अचार-चटनी का है, जीवन में वही स्थान मनोरंजन का है । अचार-चटनी का सेवन करने से जैसे क्षुधा तीव्र हो जाती है वैसे ही मनोरंजन से जीवन को नई शक्ति, स्कूर्ति और नई उमंग प्राप्त होती है ।
हमारे प्राचीन ऋषियों ने जीवन की उदासी, शिथिलता और थकान को दूर करने के लिए ही होली, दीपावली, दशहरा आदि अनेक मनोरंजक उत्सवों का विधान किया था । प्रतिवर्ष ऋतु-परिवर्तन के साथ-साथ जीवन में नई चेतना-शक्ति उत्पन्न करने में उत्सव बड़े सहायक होते थे ।
वर्तमान युग में तो इनकी और भी अधिक आवश्यकता है । यह इसलिए कि दिन भर कोल्हू के बैल की तरह जुते रहने के कारण लोगों की जिंदगी अत्यधिक व्यस्त हो गई है । मानव रुचि एक-सी नहीं होती । इसलिए मनोरंजन के साधन अनेक प्रकार के हैं । उन्हें हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं- हानिकारक और लाभकारक ।
जुआ खेलना, मद्यपान करना, वेश्यागमन आदि मनोरंजन के हानिकारक साधन हैं । मनोरंजन के ऐसे साधनों से जीवन को नई शक्ति नहीं मिलती, जीवन की रही-सही शक्ति भी क्षीण हो जाती है । इसलिए मनोरंजन के ऐसे साधनों से हमें दूर रहना चाहिए ।
प्रात:काल भ्रमण, पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ना, सिनेमा-नाटक देखना, साहित्यिक गोष्ठियों में भाग लेना, कोई खेल खेलना, यात्रा करना, संगीत सुनना, प्राकृतिक दृश्य देखना, नौका-विहार करना, चिड़ियाघर अथवा अजायबघर की सैर करना, कागज के फूल बनाना, चित्रकारी करना, बागबानी करना आदि मनोरंजन के मंगलकारक साधन हैं ।
इनके अतिरिक्त विज्ञान ने आधुनिक युग में मनोरंजन के अन्य साधनों में आश्चर्यजनक वृद्धि की है । आज मनोरंजन का मुख्य साधन है- रेडियो । रेडियो पर तरह-तरह के कार्यक्रम तथा मीठी और सुरीली तान सुनकर श्रोता आनंद-विभोर हो उठते हैं ।
मनोरंजन के साधनों में टेलीविजन का भी प्रमुख स्थान है । यह एक नया आविष्कार है । रेडियो पर हम आवाज केवल सुन सकते हैं, मगर टेलीविजन पर हम आवाज सुनने के साथ-साथ उन्हें देख भी सकते हैं तथा खेलों, नाटकों आदि के आकर्षक चित्र देखकर पर्याप्त आनंद उठा सकते हैं ।
मनोरंजन की दृष्टि से रेडियो और टेलीविजन की अपेक्षा चित्रपट का विशेष महत्त्व है । रेडियो और टेलीविजन से एक ही परिवार के लोगों का मनोरंजन होता है, पर चित्रपट मनोरंजन का सार्वजनिक साधन है । इसके अतिरिक्त रेडियो से केवल कर्णेंद्रिय की ही तृप्ति होती है, नेत्र आनंद से वंचित रह जाते हैं । चित्रपट दोनों इंद्रियों को संतुष्ट करता है ।
सिनेमा में हम नृत्य, संगीत और अभिनय-कला का एक साथ आनंद उठा सकते हैं । सर्वसाधारण, जो अपने घरों में रेडियो अथवा टेलीविजन की व्यवस्था नहीं कर सकते, सिनेमा देखकर ही अपना मन बहला लेते हैं । नदी, पर्वत, लहराते सागर, युद्ध, पात्रों के कार्य-कलाप और उनकी वेशभूषा के मोहक दृश्य देखकर तथा उनके साथ मधुर व ओजस्वी संवाद सुनकर हम अपना मनोरंजन करने के साथ-साथ जीवनोपयोगी शिक्षा भी प्राप्त कर सकते हैं ।
मनोरंजन के अन्य सुलभ साधनों में नाटक, नौटंकी, सर्कस, प्रदर्शनी आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है । सर्कस में शेर, चीते, बंदर, हाथी, भालू आदि के आश्चर्यजनक करतब देखकर दाँतों तले उंगुली दबा लेनी पड़ती है । इनके अतिरिक्त क्रिकेट, फुटबॉल, हाँकी, टेनिस आदि खेलों के मैचों को देखने से भी हमारा पर्याप्त मनोरंजन होता है । मुंबई जैसे बड़े-बड़े नगरों में घुड़दौड़ का दृश्य देखने के लिए लाखों की भीड़ जमा हो जाती है ।