English, asked by Anonymous, 1 year ago

essay on memorable day of my life. In hindi

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Answered by Simplebeing
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आज मै आप को अपने एक ऐसे दिन के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसने मेरे दृष्टिकोण में एक बदलाव लेन में कामयाब रहा. मैं कक्षा ६ में पढता था . मैं बहुत शांत और अपने आप में ही रहने वाला लड़का था और मेरे ज्यादा मित्र नहीं थे . लड़कियों से मैं बात करने और कोई भि मदद मांगने में मई शर्म खता था और अपनी बेइज्जती समझता था . 
बात लखनऊ केंद्रीय विद्यालय की है. हमारी क्लास को पिकनिक पर जाना था . हम लोगों के ग्रुप में भि प्लानिंग हुई थी की क्या - क्या ले जाना है . पर जिस दिन  जाना था उस दिन कुछ ऐसा हुआ की मेरे दो मित्र न अ सके और हमारी प्लानिंग फ़ैल हो गई थी. कुछ इ हमारे पास न था सिर्फ मिठाई के  जो मई लाया था पर वो भि बस में ही बट गई  थी. हांथी पार्क  में जब हम लोग   थे तब  तब हमारी क्लास टीचर ने सब को इकठ्ठा लंच करने को ग्राउंड में इकठ्ठा होने को कहा . यही से हमारी समस्या शुरू हो गई. हम दो ही लोग थे अपने ग्रुप में और कुछ नहीं था हमारे पास . और हमें अंदाज़ा नहीं था की सब को एक ह खाने को कहा जायेगा . सब अपने -  अपने ग्रुप में एक साथ बैठ गए और अपने   खाने - पीने   का सामान शेयर करने लगे . लडकिय सब इकठ्ठा बैठ गई थीं. पर लड़के अपने - अपने ग्रुप में थोडा  - दूर - दूर बैठे थे .  हमें खली हाथ बैठने में जो शर्म आ रही थी उसे हम ही जानते थे. पर कहीं जा भि नहीं सकते थे . मैडम से कुछ कह भि नहीं सकते थे की हमे नहीं बैठना यहाँ. मजबूर में म एक बड़े ग्रुप की ओट में जा के बैठ गए. हम  लोग थे और आपस में बात करके ये दिखने की कोसिस क्र रहे थे की बी ठीक है जबकि पेट में चूहे भि कूद रहे थे और ये इ दिहना था की हमें कोई प्रॉब्लम नहीं है. लड़के लोग आपस में बात क्र रहे थे और खा रहे थे. कोई हमारी तरफ ध्यान नही दे रहा था क्योकि हम हंस - हस के बात क्र रहे थे.  पर इतने में एक लड़की हमारे पास आई और एक डिब्बे को खोलने को कहा की खुल नहीं रहा है. मैंने खोल   दिया और  चली गई. दो मिनट के बाद दो लडकिय आई और कहा की उनके ग्रुप के पास बगल इ हम लोग आ के बैठे .  पर मैंने तो मन कर दिया . थोड़ी देर बाद हमने देखा की तीन लडकिय अपने खाने के सामान से कुछ ले के हमारे पास आइ और रख के चली  गई . हम पलट के लडकियों के ग्रुप की तरफ देखा तो वहा से इशारा हुआ की बगल इ अ के ग्रुप बना के बैठे . हम समझ गए की वो हमारी स्थिति समझ गई हैं  नहीं तो वो सामान ले के यहाँ तक आना पड़ेगा. हम उठ के चले गए.  फिर तो कोई कमी हमें नहीं रही. सबसे ज्यादा अच्छा और सबसे  ज्यादा वैरायटी खाने को हमें मिली. हम लोग कुछ बोल नहीं पा रहे थे की मना भि क्र पा  रहे थे . लंच  के बाद हम लोगो का रवैया  बदल गया था. अब कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करे. उस दिन मेरा लड़कियों के प्रति मेरा दृष्टिकोण बदल गया. वो दिन मुझे आज भी  नहीं भूलता . उस दिन  के बाद से मुझे ये समझ आ  गया की लड़कियां की सोच कितनी ऊँची और मदद वाली होती है . अब मैं कभी भि ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ता जहाँ मुझे किसी भी  लड़की या महिला  की मदद करनी पड़े. अपने जीवन में हमेशा  मैं उनकी मदद करता रहूँगा और सम्मान देता रहूँगा. निःस्वार्थ प्रेम और  सौहार्द से लोगो के दिल जीते जा सकते हैं .
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