Essay on mere jevan la लक्ष्य
Answers
Explanation:
निबंध : मेरे जीवन का लक्ष्य
मनुष्य का महत्वकांक्षी होना एक स्वभाविक गुण होता है। हर व्यक्ति जीवन में कुछ विशेष प्राप्त करने की इच्छा रखता है। मनुष्य अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करता है। वह खुद को ऊपर उठाने के लिए योजनाएँ बनाता है। कल्पना तो सबके पास होती हैं लेकिन कल्पना को साकार करने की शक्ति केवल किसी-किसी के पास ही होती है।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि बिना उद्देश्य वाला व्यक्ति ऐसा होता है जैसे ऑक्सीजन बिना जीवन। हर मनुष्य का जीवन में सपना होता है कि वह कुछ बने और कुछ अलग करे। कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर, कोई वैज्ञानिक। लक्ष्य प्राप्ति हेतु मनुष्य जीवन में कई चुनौतियों को पार करता है।
हमारा जीवन एक यात्रा की तरह होता है। अगर यात्री को पता होता है कि उसे कहाँ पर जाना है तो वह अपने लक्ष्य की तरफ बढना शुरू कर देता है लेकिन जब यात्री को अपने लक्ष्य का ही पता नहीं होता है तो उसकी यात्रा निरर्थक हो जाती है।
जब बच्चा छोटा होता है तो वह विद्यालय में प्रवेश करता है। उस समय में बच्चों के सामने अनेक लक्ष्य होते हैं। वह जैसे-जैसे लोगों के संपर्क में आता है वैसे-वैसे उस पर प्रभाव पड़ता है। कभी तो वह सोचने लगता है कि वह डॉक्टर बनेगा और कभी वह सोचने लगता है कि वह अध्यापक बनेगा और कभी इंजीनियर बनेगा।
माँ-बाप भी यह कल्पना करते हैं कि वे अपने बच्चे को यह बनायेंगे, वह बनायेंगे लेकिन वास्तव में निर्णय तो बच्चों को खुद ही लेना पड़ता है। माँ-बाप को बच्चों पर अपनी मर्जी नहीं थोपनी चाहिए। विद्यार्थीकाल मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह मानव जीवन की आधारशिला के बराबर होता है।
मनुष्य के जीवन में एक निश्चित लक्ष्य का होना अनिवार्य है । लक्ष्यविहीन मनुष्य क्रिकेट के खेल में उस गेंदबाज की तरह होता है जो गेंद तो फेंकता है परंतु सामने विकेट नहीं होते । इसी भाँति हम परिकल्पना कर सकते हैं कि फुटबाल के खेल में जहाँ खिलाड़ी खेल रहे हों और वहाँ से गोल पोस्ट हटा दिया जाए तो ऐसी स्थिति में खिलाड़ी किस स्थिति में होंगे इस बात का अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है । अत: जीवन में एक निश्चित लक्ष्य एवं निश्चित दिशा का होना अति आवश्यक है ।
आज संसार पैसा कमाने के पीछे लग रहा है । वह अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है ।पैसा कमाने के लिए वह उचित – अनुचित, ठीक अथवा गलत कोई भी साधन अपनाने को तैयार है । धर्म अथवा नैतिकता के सिद्धान्त उसके लिए पुराने पड़ गए हैं । पैसा कमाने की होड़ सी लग गई है तो क्या पैसा कमाना ही जीवन का लक्ष्य है ? क्या पैसे से सुख और शान्ति प्राप्त हो जाती है ? क्या पैसे से वर्तमान और भविष्य तथा लोक और परलोक संवर जाते हैं ? शायद नहीं कदापि नहीं ।
बेईमानी से कमाया हुआ पैसा व्यक्ति को रोटी तो दे सकता है किन्तु भूख नहीं। यह पैसा व्यक्ति को नरम बिस्तर तो दे सकता है किन्तु नींद नहीं । अर्थात् ऐसा पैसा उसे भोग विलास की वस्तुएँ दे सकता है किन्तु मन की शान्ति नहीं । पैसे वालों को प्राय: दु:ख और कष्ट में देखा गया है । वे अधिक अशान्त रहते हैं।
यदि पैसा ही अपने आप में लक्ष्य है तो धनी लोग सुखी क्यों नहीं होते हैं ? वे प्राय: उच्च रक्तचाप अथवा हृदय रोग से पीड़ित क्यों रहते हैं ? यदि पैसा तथा सांसारिक वैभव में सुख था तो महात्मा बुद्ध, स्वामी दयानंद, स्वामी रामतीर्थ तथा भगवान महावीर ने क्यों घर को त्यागा ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने राजपाट छोड़कर वनवास जाना क्यों स्वीकार किया ?
अत: यह सर्वविदित है कि पैसा अपने आप में जीवन का लक्ष्य नहीं है । यह साधन मात्र तो हो सकता है । फिर जीवन का क्या लक्ष्य हो सकता है ? ऊँचा पद ? ऊँचे पद का अंतत: उद्देश्य तो पैसा कमाना ही है । अत: पैसे की तरह ऊँचा पद भी मात्र एक साधन है ।
मैं अक्सर अपने दोस्तों को बात करते हुए सुनता हूँ की वे क्या बनना चाहते हैं लेकिन मैंने तो पहले से ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। मेरा जीवन में एक ही लक्ष्य है कि मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा। मैं डॉक्टर बनकर देश और समाज की रोगों से रक्षा करूंगा।
कुछ विद्यार्थी डॉक्टर इसलिए बनना चाहते हैं जिससे वे अधिक-से-अधिक धन कमा सकें लेकिन मेरा उद्देश्य यह नहीं है। मैं डॉक्टर बनकर गरीबों और पीड़ितों की सेवा करना चाहता हूँ। कुछ लोग अपने उद्देश्य को पाकर भी गलत रास्ते पर चल देते हैं वे अपने कर्तव्य को अच्छी तरह नहीं निभाते हैं। मैं अपने लक्ष्य पर पहुंचने के बाद अपने कर्तव्य से नहीं भटकूँगा।
प्राचीनकाल के धार्मिक ग्रंथ भी घोषणा करते हैं कि दो वर्ग के मनुष्यों का समाज पर बहुत ज्यादा उपकार है। पहला वर्ग शिक्षकों का है जो लोगों के अंदर से अज्ञान को निकालकर ज्ञान का दीपक जलाकर उनके जीवन को सार्थक कर देते हैं। दूसरा वर्ग डॉक्टर या चिकित्सक का होता है जो रोगी के रोगों को दूर करके उसे नया जीवन देता है। शिक्षा देना और रोगियों का इलाज करना दोनों ही पवित्र काम होते हैं और मैंने अपने जीवन के लक्ष्य के लिए इनमें से एक पवित्र लक्ष्य को चुन लिया है।
मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक सफल डॉक्टर बनना आसान नहीं है इसके लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है। डॉक्टर के ह्रदय में मरीजों के प्रति दया, करुणा, और सहानुभूति की भावना होना बहुत ही जरूरी होता है। मैंने अपने इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए अभी से प्रयास करने शुरू कर दिए हैं। मेरे माता-पिता का आशिर्वाद सदैव मेरे साथ है। उनका भी सपना है कि मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूँ।
मेरी यह इच्छा है कि मैं अपने लक्ष्य को पूरा करूं।
Explanation:
Explanation:
निबंध : मेरे जीवन का लक्ष्य
मनुष्य का महत्वकांक्षी होना एक स्वभाविक गुण होता है। हर व्यक्ति जीवन में कुछ विशेष प्राप्त करने की इच्छा रखता है। मनुष्य अनेक प्रकार की कल्पनाएँ करता है। वह खुद को ऊपर उठाने के लिए योजनाएँ बनाता है। कल्पना तो सबके पास होती हैं लेकिन कल्पना को साकार करने की शक्ति केवल किसी-किसी के पास ही होती है।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि बिना उद्देश्य वाला व्यक्ति ऐसा होता है जैसे ऑक्सीजन बिना जीवन। हर मनुष्य का जीवन में सपना होता है कि वह कुछ बने और कुछ अलग करे। कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर, कोई वैज्ञानिक। लक्ष्य प्राप्ति हेतु मनुष्य जीवन में कई चुनौतियों को पार करता है।
हमारा जीवन एक यात्रा की तरह होता है। अगर यात्री को पता होता है कि उसे कहाँ पर जाना है तो वह अपने लक्ष्य की तरफ बढना शुरू कर देता है लेकिन जब यात्री को अपने लक्ष्य का ही पता नहीं होता है तो उसकी यात्रा निरर्थक हो जाती है।
जब बच्चा छोटा होता है तो वह विद्यालय में प्रवेश करता है। उस समय में बच्चों के सामने अनेक लक्ष्य होते हैं। वह जैसे-जैसे लोगों के संपर्क में आता है वैसे-वैसे उस पर प्रभाव पड़ता है। कभी तो वह सोचने लगता है कि वह डॉक्टर बनेगा और कभी वह सोचने लगता है कि वह अध्यापक बनेगा और कभी इंजीनियर बनेगा।
माँ-बाप भी यह कल्पना करते हैं कि वे अपने बच्चे को यह बनायेंगे, वह बनायेंगे लेकिन वास्तव में निर्णय तो बच्चों को खुद ही लेना पड़ता है। माँ-बाप को बच्चों पर अपनी मर्जी नहीं थोपनी चाहिए। विद्यार्थीकाल मनुष्य के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह मानव जीवन की आधारशिला के बराबर होता है।
मनुष्य के जीवन में एक निश्चित लक्ष्य का होना अनिवार्य है । लक्ष्यविहीन मनुष्य क्रिकेट के खेल में उस गेंदबाज की तरह होता है जो गेंद तो फेंकता है परंतु सामने विकेट नहीं होते । इसी भाँति हम परिकल्पना कर सकते हैं कि फुटबाल के खेल में जहाँ खिलाड़ी खेल रहे हों और वहाँ से गोल पोस्ट हटा दिया जाए तो ऐसी स्थिति में खिलाड़ी किस स्थिति में होंगे इस बात का अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है । अत: जीवन में एक निश्चित लक्ष्य एवं निश्चित दिशा का होना अति आवश्यक है ।
आज संसार पैसा कमाने के पीछे लग रहा है । वह अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता है ।पैसा कमाने के लिए वह उचित – अनुचित, ठीक अथवा गलत कोई भी साधन अपनाने को तैयार है । धर्म अथवा नैतिकता के सिद्धान्त उसके लिए पुराने पड़ गए हैं । पैसा कमाने की होड़ सी लग गई है तो क्या पैसा कमाना ही जीवन का लक्ष्य है ? क्या पैसे से सुख और शान्ति प्राप्त हो जाती है ? क्या पैसे से वर्तमान और भविष्य तथा लोक और परलोक संवर जाते हैं ? शायद नहीं कदापि नहीं ।
बेईमानी से कमाया हुआ पैसा व्यक्ति को रोटी तो दे सकता है किन्तु भूख नहीं। यह पैसा व्यक्ति को नरम बिस्तर तो दे सकता है किन्तु नींद नहीं । अर्थात् ऐसा पैसा उसे भोग विलास की वस्तुएँ दे सकता है किन्तु मन की शान्ति नहीं । पैसे वालों को प्राय: दु:ख और कष्ट में देखा गया है । वे अधिक अशान्त रहते हैं।
यदि पैसा ही अपने आप में लक्ष्य है तो धनी लोग सुखी क्यों नहीं होते हैं ? वे प्राय: उच्च रक्तचाप अथवा हृदय रोग से पीड़ित क्यों रहते हैं ? यदि पैसा तथा सांसारिक वैभव में सुख था तो महात्मा बुद्ध, स्वामी दयानंद, स्वामी रामतीर्थ तथा भगवान महावीर ने क्यों घर को त्यागा ? मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने राजपाट छोड़कर वनवास जाना क्यों स्वीकार किया ?
अत: यह सर्वविदित है कि पैसा अपने आप में जीवन का लक्ष्य नहीं है । यह साधन मात्र तो हो सकता है । फिर जीवन का क्या लक्ष्य हो सकता है ? ऊँचा पद ? ऊँचे पद का अंतत: उद्देश्य तो पैसा कमाना ही है । अत: पैसे की तरह ऊँचा पद भी मात्र एक साधन है ।
मैं अक्सर अपने दोस्तों को बात करते हुए सुनता हूँ की वे क्या बनना चाहते हैं लेकिन मैंने तो पहले से ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। मेरा जीवन में एक ही लक्ष्य है कि मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा। मैं डॉक्टर बनकर देश और समाज की रोगों से रक्षा करूंगा।
कुछ विद्यार्थी डॉक्टर इसलिए बनना चाहते हैं जिससे वे अधिक-से-अधिक धन कमा सकें लेकिन मेरा उद्देश्य यह नहीं है। मैं डॉक्टर बनकर गरीबों और पीड़ितों की सेवा करना चाहता हूँ। कुछ लोग अपने उद्देश्य को पाकर भी गलत रास्ते पर चल देते हैं वे अपने कर्तव्य को अच्छी तरह नहीं निभाते हैं। मैं अपने लक्ष्य पर पहुंचने के बाद अपने कर्तव्य से नहीं भटकूँगा।
प्राचीनकाल के धार्मिक ग्रंथ भी घोषणा करते हैं कि दो वर्ग के मनुष्यों का समाज पर बहुत ज्यादा उपकार है। पहला वर्ग शिक्षकों का है जो लोगों के अंदर से अज्ञान को निकालकर ज्ञान का दीपक जलाकर उनके जीवन को सार्थक कर देते हैं। दूसरा वर्ग डॉक्टर या चिकित्सक का होता है जो रोगी के रोगों को दूर करके उसे नया जीवन देता है। शिक्षा देना और रोगियों का इलाज करना दोनों ही पवित्र काम होते हैं और मैंने अपने जीवन के लक्ष्य के लिए इनमें से एक पवित्र लक्ष्य को चुन लिया है।
मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक सफल डॉक्टर बनना आसान नहीं है इसके लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है। डॉक्टर के ह्रदय में मरीजों के प्रति दया, करुणा, और सहानुभूति की भावना होना बहुत ही जरूरी होता है। मैंने अपने इस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए अभी से प्रयास करने शुरू कर दिए हैं। मेरे माता-पिता का आशिर्वाद सदैव मेरे साथ है। उनका भी सपना है कि मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूँ।
मेरी यह इच्छा है कि मैं अपने लक्ष्य को पूरा करूं।
\large{\underline{\underline{\pink{\bf{hope \: it \: helps \: you}}}}}
hopeithelpsyou