essay on mere priya gayak (singer)
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2005 में राजेन्द्र प्रसाद हजारी के जोर देने पर उन्होंने Reality Show “Fame Gurukul ” के लिए Audition दिया और तब उन्होंने महसूस किया कि शास्त्रीय संगीत परम्परा आज के युग में बहुत पुरानी हो चुकी है और इस क्षेत्र में Career बनाना मुश्किल है | Arijit Singh ने फिर भी बिना झिझक के एक बार Chance लेने की सोची क्योंकि उस समय Jury Panel में शंकर महादेवन थे जो Classical Background से थे | Finals तक पहुचकर वो ये Show हार गये | अब Arijit Singh दुसरे Reality Show “10 Ke 10 Le Gaye Dil” में भाग लिया जिसमे Fame Gurukul और Indian Idol के विजेताओ के बीच आमना सामना था | उन्होंने ये Show जीत लिया |
Reality Show में अपनी पकड़ बनाने के बाद Arijit Singh ने अपना खुद का Recording Setup बनायाऔर अपना सफर Music Programming से शुरू किया | इसके बाद Arijit Singh शंकर-एहसान-लॉय , विशाल-शेखर और मिथुन के साथ बतौर Assistant Music Programmer के रूप में काम किया | इसी दौरान शंकर महादेवन ने एक दिन अरिजीत का गाना सुना तो उन्होंने Arijit Singh को Voice of Future कहा था | महादेवन ने एक Producer को भी अरिजीत को फिल्म में अपना गाना देने के लिए कहा लेकिन Producer ने यह कहकर मना कर दिया कि उनको एक Popular Voice चाहिए |
2010 में Arijit Singh ने प्रीतम चक्रवती के साथ तीन फिल्मो Golmaal 3, Crook और Action Replayy में का किया | 2011 में उन्होंने मर्डर 2 में Mithoon-Composition “फिर मोह्हबत ” से Bollywood Music Debut किया | उसी साल Arijit Singh ने एजेंट विनोद के लिए “राबता ” गाना गाया | इसके बाद Arijit Singh ने शंघाई फिल्म में “दुआ ” गाना गाया जिसके लिए Arijit Singh को Mirchi Music Award for Upcoming Male Playback Singer का अवार्ड मिला और बर्फी फिल्म में “फिर ले आया दिल ” के निये Nominate हुए |
Arijit Singh को सबसे ज्यादा प्रसिद्धी 2013 में आयी आशिकी 2 के गाने “तुम ही हो ” से मिली | इस गाने के लिए Arijit Singh को कई अवार्ड और Nomination आये जिसमे से उनको Filmfare Award for Best Male Playback Singer का अवार्ड मिला | इसके बाद Arijit Singh ने “ये जवानी है दीवानी ” फिल्म के लिए “दिल्लीवाली गर्लफ्रेंड” “कबीरा ” और “इलाही” गाना गाया | इसके बाद शाहिद कपूर की दो फिल्मो “फटा पोस्टर निकला हीरो” में “मै रंग शर्बतो का ” और R… Rajkumar के लिए “धोखाधड़ी ” गाना गाया | Arijit Singh को पहली बार चेन्नई एक्सप्रेस में शाहरुख़ के लिए गाना गाने का मौका मिला जिसमे उन्होंने “कश्मीर तू मै कन्याकुमारी ” गाना गाया |
इसके बाद Arijit Singh को एक से बढकर एक फिल्मो में गाने के ऑफर आते रहे और इन्होने अपनी मधुर आवाज से बॉलीवुड में अपनी साख बना ली | 2014 में Arijit Singh को अपने पसंदीदा Music Directors ए आर रहमान और साजिद-वाजिद के साथ काम करने का मौका मिला | उन्होंने ना केवल हिंदी बल्कि बंगाली ,तमिल तेलुगु ,कन्नड़ और मराठी भाषाओ में भी गाने गाये | उनके गानों में एक ठहराव है जिसे बहुत कम गायक गा पाते है | Arijit Singh गाने Emotion और Soul से गाते है इसलिए उनका एक “Soulful Voice ” नाम से एक एल्बम भी निकला था | Arijit Singh ने हर प्रकार के गाने Party Song , पंजाबी Song और सूफी Songs गाये |
Arijit Singh को अपने look से कोई मतलब नही है वो 2013 के एक Event में लम्बे बालो और दाढी में ही आ गये | Arijit Singh ने अपना Idol गुलाम अली , जगजीत सिंह और मेहंदी हसन को बताया |इसके अलावा Arijit Singh को किशोर कुमार और मोहित चौहान के गाने बहुत पसंद है | Arijit Singh अब सलमान खान और आमिर खान की फिल्मो में गाने की इच्छा रखते है | Arijit Singh का Comparison पाकिस्तानी गायक Atif Aslam से किया जाता है जिन्होंने भी अपनी मधर आवाज से Bollywood में कई गाने गाये |Arijit Singh के Singing की तारीफ लगभग हर जाने माने सिंगर ने की
Answer :
मेरे प्रिय गायक येसुदास है । सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में जब हिन्दी सिनेमा के दो बड़े गायक रफी और किशोर कुमार ढलान पर थे तब दक्षिण से एक गायक मुंबई आया था । नाम था येसुदास । हिन्दी गानों से उनका परिचय कराने वाले संगीतकार थे,रवीन्द्र जैन । रवीन्द्र जैन ने येसुदास की आवाज को मलयालम फिल्मों में परख लिया था । वे मलयालम फिल्मों में संगीत दे चुके थे इसलिए उन्हें पता था कि शराब से बोझिल होती किशोर की कला और उम्र से मात खाते मुहम्मद रफी को सुनने वाले जब येसुदास को सुनेंगे तो निश्चय ही स्तंभित होकर रह जाएंगे,उनकी आवाज के पाश से छूटना आसान नही होगा । आवाज क्या!
शहद कहिए,जो गाने वाले के गले से निकल कर सुनने वालों के मन में उतरता, चिपकता चला जाता है । मैं व्यक्तिगत रूप से उनकी विशुद्ध गायकी का मुरीद रहा हूं । विशुद्ध इसलिए कि वे सुरों की पवित्रता को इमोशंस की नाटकीयता से वर्सटैलिटी देने की कोशिश नहीं करते । जैसे सरोज स्मृति में निराला कहते हैं- पर बंधा देह के दिव्य बांध, छलकता दृगों से साध-साध, वैसे ही उनकी आवाज स्रोत से भरपूर, टलमल करती हुई है लेकिन गायकी के अनुशासन से बंधी हुई, सुनने वालों के मन के किनारों को शीतल स्पर्श देती हुई। पहले स्वर से वे हमें बंधन में बांध लेते हैं और फिर हम मुक्त हृदय से उन्हें सुनते हैं।हिन्दी सिनेमा के लिए उनके गाए बहुत कम गानों में से अधिकांश गाने अच्छे हैं और कुछ तो बहुत ही अच्छे । एक गाना है, आ आ रे मितवा, जनम-जनम से हैं हम तो प्यासे, आनंदमहल फिल्म का ये गाना मुझे बहुत प्रिय है उस गाने के स्वरारोह और अवरोह को नियत भावनाओं और सधे हुए सुर के साथ उन्होंने सृजित किया है । निश्चित तौर पर रचना सलिल दा की है लेकिन पूरी तो येसुदास की आवाज के लालित्य से ही होती है । यह एक आकुल कंठ का गाना है जिसमें विरह की अमिट रागात्मकता है । उच्चारण में हल्की मलयाली ध्वनियों के साथ वे बेदाग गाते हैं। कहीं कोई जबरन का प्रयोग नहीं, कोई ड्रामा नहीं । गाना बस गाना होता है, जिसे वे रूह से गाकर रूह तक उतार देते हैं ।
उनके गानों की एक छोटी सी सूची है, जब दीप जले आना, मधुबन खुशबू देता है, माना हो तुम बेहद हंसी( इस गाने की विशिष्टिता की चर्चा बाद में होगी), का करूं सजनी, सुनयना, नैया रे, जिद ना करो, कोई गाता मैं सो जाता, माता सरस्वती शारदा, तू जो मेरे सुर में, तुझे देखकर जग वाले पर, चांद जैसे मुखड़े पे, गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा, आज से पहले, तेरे बिन सूना मेरे मन का मंदिर आ रे आ..
येसुदास जैसे अचानक आए, वैसे ही एक दिन गुम भी हो गए । व़े खुद कहते हैं कि उन्हें अपना घर लौट जाना अच्छा लगा लेकिन सुना तो ये भी जाता है कि उन्हें मुंबई में धमकियां मिली थीं। वजह जो भी हो वैसी आवाज बहुत कम लोगों को नसीब होती है । मलयालम सिनेमा में उनका ऐसा एकाधिकार रहा कि दशकों तक कोई नया गायक उस जादुई आवाज से खुद को अलग कर ही नहीं सका । वहां गायकों की मौलिकता जाती रही थी । रफी और किशोर को सुनते हुए जब हम येसुदास को सुनते हैं तो एक अलग अनुभव होता है। रफी की आवाज भी रेशम सी है, उसमें कुदरती स्टीरियोफोनिक प्रभाव है, बड़ा रेंज हैं ।उनके स्वरों की आवृतियां देर तक, दिनों तक भीतर उथल-पुथल मचाती हैं लेकिन उनमें एक दुर्गुण भी है, वो कई बार नाटकीयता की हदें पार कर जाते हैं । वैसे उनके नाटकीय गानों के मुरीद बहुत ज्यादा हैं लेकिन मेरे हिसाब से रफी तब बहुत बेहतर थे जब वो गानों को अपनी प्रकृति प्रदत्त कला से संवारते थे। किशोर कुमार खिलंदड़ी और मौजमस्ती वाले बिंदास गायक के रूप में जाने गए लेकिन किशोर की पहचान उनकी आवाज में विन्यस्त दर्द है । अपनी तरह की एक अनूठी, अभूतपूर्व पुरुष आवाज, जिसमें महान कुंदन लाल सहगल की स्वाभाविक उपस्थिति है तो बंगाल की लोकधुनों का अदृश्य लेकिन श्रव्य लोक भी है । किशोर की आवाज का अपरिष्कृत होना ही उसकी विशेषता है। वह वर्षों के रियाज से तैयार आवाज नहीं बल्कि प्रतिभा की त्वरा से चकित कर देने वाला स्वर है । येसुदास इन दोनों बड़े गायकों से जरा हटकर हैं । वे गायन में कुछ हद रफी के करीब हैं, आवाज की गुणवत्ता के हिसाब से लेकिन कला में अलग । उनकी आवाज में गंभीरता भी है, सरसता भी, सुर भी और भावनाओं से भरा संस्कार भी । उनके स्वर में भी एक स्टीरियोफोनिक एको इफेक्ट है जो पहले सुर के साथ हमें गुलाम बना लेता है। वे दिखावे के प्रयोगधर्मी गायक नहीं हैं क्योंकि गाने को विशुद्ध सुर के कठोर अनुशासन और सधे हुए भावावेश के साथ गाते हैं लेकिन ‘माना हो तुम बेहद हंसी’ गाने को सुनते हुए उनका प्रयोग सामने आ जाता है।