Essay on meri peheli hawai yatra
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हमारी पाठशाला से बच्चों के लिए चंडीगढ़ तक कम शुल्क पर हवाई यात्रा की तैयारी हुई। मैंने भी पैसे देकर अपना नाम लिखवाया।
यह मेरी पहली हवाई यात्रा थी अतः रात भर मुझे नींद नहीं आई। अगले दिन सुबह सात बजे हम दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुँचे। पिता जी को बाहर से ही लौटना पड़ा। हम सभी अपना सामान एक हाथ गाड़ी में रख अंदर गए। सामान का वज़न हुआ और हमें बिठा दिया गया।
विशालकाय हवाईजहाज कितने अद्भुत दिखते थे। फिर हम बस में वैठ विमान तक गए। सीढ़ी से विमान में बैठ हमने पेटी बाँधी। धीरे-धीरे विमान चलने लगा, अचानक गति पकड़ वह हवा में उड़ गया। हम सब पीछे की ओर उत्साहित हँसते रहे।
फिर विमान सीधा होने पर हमने खिड़की से बादलों का आनंद उठाया। विमान उतरने का समय भी हो गया और हमारा दिल भी नहीं भरा था। विमान के उतरते हुए भी पेट में हलचल-सी थी।
कुल मिलाकर इस हवाई यात्रा का अनुभव मैं भूल नहीं पाऊँगा।