Essay on mother teresa in hindi in 100 words
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प्रस्तावना- ‘मदर टेरेसा’ दया, सेवा और ममता की साक्षात मूर्ति थीं। उन्होंने अपाहिजों, अंधों, लूले लंगड़ों तथा दीन हीनों की सेवा को अपना धर्म बना लिया था। संसार भर के दीन हीन लोग उन्हें पाकर सनाथ हो गए।जीवन-परिचय- मदर टेरेसा का जन्म 28 अगस्त 1910 में यूगोस्लाविया में हुआ था। इनका बचपन में नाम था अगनेस गोवसा बेयायू। 12 वर्ष की अवस्था में आप संन्यासिनी बन गईं और संसार के मानव मात्र की सेवा का व्रत ले लिया।
भारत में सेवा कार्य- मदर टेरेसा ने भारत में सबसे पहले दार्जलिंग में सेवा का कार्य आरम्भ किया। सन् 1929 से 1948 तम आप निरक्षरों को पढ़ाने का कार्य करती रहीं। आप बच्चों को पढ़ाने में भी रूचि लेती थीं। आप को बच्चों से बहुत प्रेम था। सन् 1931 में आपने अपना नाम बदल लिया। उन्होंने अपना नाम रखा टेरेसा। सन् 1946 में ईश्वर की प्रेरणा से और मानव मात्र के कष्टों को दूर करने की प्रतिज्ञा ली। आपने अपना सारा जीवन पीडि़तों, दलितों दीन और दुखियों की सेवा में लगा दिया। आपका विचार था कि यदि रोग के होते ही उस पर ध्यान देना आरम्भ कर दें तो रोग शीघ्र ही दूर हो जाता है।
हदय होम की स्थापना-मदर टेरेसा ने सन् 1952 में कलकत्ता में हदय होम की स्थापना की। उन्होंने सन् 1957 में ‘कुष्ठ रोगालय’की स्थापना की। जो रोगी दूसरे अस्पतालों से निराश होकर यहाँ आते थे, उन्हें वे तत्काल ही इस रोगालय में प्रवेश दे देती थीं। आपने आसनसोल में कुष्ठ रोगियों के लिए शांतिगृह की भी स्थापना की। उन्होंने कलकत्ता में धीरे धीरे 60 सेवा केन्द्र खोले। उनके आदर्शें से प्रेरणा प्राप्त कर 700 के लगभग संन्यासिनियाँ सेवा कार्य में जुटी हुई हैं।
पुरस्कार- सन् 1931 में मदर टेरेसा को 23वां पुरस्कार प्राप्त हुआ। आपको शांति पुरस्कार और टेम्पलेटन फाउण्डेशन पुरस्कार भी उन्हें मिले। आप उन्हें उनकी सेवाओं के लिए ‘सेविकोत्तम’ की पदवी भी दी गई। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया। उन्हें सन् 1979 में उनके मानव-कल्याण के कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। आपने सभी पुरस्कारों से मिली धन राशि को मानव के कार्यों में लगा दिया।
उपसंहार- मानव सेवा में लगे रहने के कारण उन्हें बहुत पुरस्कार मिले। जनता ने भी दिल खोलकर आपका सम्मान किया। यह सब होते हुए भी आप में घमंड का लेष भी नहीं आया। सेवा कार्य को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य मान लिया था और उसी में उन्होंने अपना सारा जीवन लगा दिया। मदर टेरेसा वास्तव में दया, सेवा और ममता की मूर्ति थीं। उनके दर्शन मात्र से कई लोगों को इतनी राहत मिली थी कि वे अपना दुख तक भूल जाते थे। उन्होंने अपने सेवा कार्यों से लोगों के हदय को जीत लिया था। यही कारण है कि लोग आज भी मदर टेरेसा का नाम आदर और श्रद्धा से लेते हैं।
dhanyavaad!!
भारत में सेवा कार्य- मदर टेरेसा ने भारत में सबसे पहले दार्जलिंग में सेवा का कार्य आरम्भ किया। सन् 1929 से 1948 तम आप निरक्षरों को पढ़ाने का कार्य करती रहीं। आप बच्चों को पढ़ाने में भी रूचि लेती थीं। आप को बच्चों से बहुत प्रेम था। सन् 1931 में आपने अपना नाम बदल लिया। उन्होंने अपना नाम रखा टेरेसा। सन् 1946 में ईश्वर की प्रेरणा से और मानव मात्र के कष्टों को दूर करने की प्रतिज्ञा ली। आपने अपना सारा जीवन पीडि़तों, दलितों दीन और दुखियों की सेवा में लगा दिया। आपका विचार था कि यदि रोग के होते ही उस पर ध्यान देना आरम्भ कर दें तो रोग शीघ्र ही दूर हो जाता है।
हदय होम की स्थापना-मदर टेरेसा ने सन् 1952 में कलकत्ता में हदय होम की स्थापना की। उन्होंने सन् 1957 में ‘कुष्ठ रोगालय’की स्थापना की। जो रोगी दूसरे अस्पतालों से निराश होकर यहाँ आते थे, उन्हें वे तत्काल ही इस रोगालय में प्रवेश दे देती थीं। आपने आसनसोल में कुष्ठ रोगियों के लिए शांतिगृह की भी स्थापना की। उन्होंने कलकत्ता में धीरे धीरे 60 सेवा केन्द्र खोले। उनके आदर्शें से प्रेरणा प्राप्त कर 700 के लगभग संन्यासिनियाँ सेवा कार्य में जुटी हुई हैं।
पुरस्कार- सन् 1931 में मदर टेरेसा को 23वां पुरस्कार प्राप्त हुआ। आपको शांति पुरस्कार और टेम्पलेटन फाउण्डेशन पुरस्कार भी उन्हें मिले। आप उन्हें उनकी सेवाओं के लिए ‘सेविकोत्तम’ की पदवी भी दी गई। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया। उन्हें सन् 1979 में उनके मानव-कल्याण के कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। आपने सभी पुरस्कारों से मिली धन राशि को मानव के कार्यों में लगा दिया।
उपसंहार- मानव सेवा में लगे रहने के कारण उन्हें बहुत पुरस्कार मिले। जनता ने भी दिल खोलकर आपका सम्मान किया। यह सब होते हुए भी आप में घमंड का लेष भी नहीं आया। सेवा कार्य को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य मान लिया था और उसी में उन्होंने अपना सारा जीवन लगा दिया। मदर टेरेसा वास्तव में दया, सेवा और ममता की मूर्ति थीं। उनके दर्शन मात्र से कई लोगों को इतनी राहत मिली थी कि वे अपना दुख तक भूल जाते थे। उन्होंने अपने सेवा कार्यों से लोगों के हदय को जीत लिया था। यही कारण है कि लोग आज भी मदर टेरेसा का नाम आदर और श्रद्धा से लेते हैं।
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प्रस्तावना- 'मदर टेरेसा' दया, सेवा और ममता की साक्षात मूर्ति थीं। उन्होंने अपाहिजों, अंधों, लूले लंगड़ों तथा दीन हीनों की सेवा को अपना धर्म बना लिया था। संसार भर के दीन हीन लोग उन्हें पाकर सनाथ हो गए। जीवन-परिचय- मदर टेरेसा का जन्म 28 अगस्त 1910 में यूगोस्लाविया में हुआ था।D
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