ESSAY ON MY BUS JOURNY IN HINDI
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मेरी बस यात्रा।
कल बहुत दिनों बाद मैंने बस में सफर किया। हैदराबाद में रहते हुए बसो में ज़्यादा सफर नही हो पता था। कोल्कता आकर फीय वह यदि ताज़ा हो गयी। मैंने बर्रैकपोरे स्टेशन से गंगा घाट तक का बस लिया था। दस सालो में कितना बदल गया सब कुछ , यहाँ तक की कोल्कता की बसे भी। पहले जहा छोटी सी, लाल रंग की घट घट आवाज़ करती हुयी बस चलती आज वह बदल कर कितने तकनीकी और सुंदर हो गए है। पर मुझे आज भी कहि वह पहले वाली बस ही ज़्यादा पसंद है। तो कला मैं जब बस में चारि तो वो काफी खली थी। सब आराम से बैठ कर जा रहे थे। मैं भी खिरकी के पास एक सीट लेकर बैठ गयी। चारो और का नज़ारा देखने लगी। दस साल पहले की इमारते , खुले मैदान , रामु काका की मिठाई की दुकान, अब सब बदल गया है , पर एक चीज़ नही बदली कोल्कता की सरको की वह मीठी सी, अपनी सी, घर जैसी खुसबू। दो तीन स्टॉप तक तो बस खली ही रही , मैं भी मज़े से नज़ारे देखते हुए चली। पर उसके बाद , अगला स्टॉप आते आते इतनी भिर हो गयी की मैंने कभी देखि भी न हो। शायद खरे होने के लिए भी जगह न बची थी तब , बस में। खैर मुझे ज़्यादा परेशानी नही हुयी , गंगा घाट आते आते बहुत भिर हो चुकी थी बस में , जब मेरा बस घाट पहुंची तो मैंने इंतज़ार किया , जब काफी लोग उत्तर गया , और बस थोड़ा खली मालूम हुआ, मैं उत्तर गयी। कल हैदराबाद वापस जाने का फ्लाइट है , फिर अपने व्यस्त जीवन में व्यस्त हो जयुंगी। कोल्कता की बस में मेरा यह सफर एक मीठा याद बना रहेगा।
कल बहुत दिनों बाद मैंने बस में सफर किया। हैदराबाद में रहते हुए बसो में ज़्यादा सफर नही हो पता था। कोल्कता आकर फीय वह यदि ताज़ा हो गयी। मैंने बर्रैकपोरे स्टेशन से गंगा घाट तक का बस लिया था। दस सालो में कितना बदल गया सब कुछ , यहाँ तक की कोल्कता की बसे भी। पहले जहा छोटी सी, लाल रंग की घट घट आवाज़ करती हुयी बस चलती आज वह बदल कर कितने तकनीकी और सुंदर हो गए है। पर मुझे आज भी कहि वह पहले वाली बस ही ज़्यादा पसंद है। तो कला मैं जब बस में चारि तो वो काफी खली थी। सब आराम से बैठ कर जा रहे थे। मैं भी खिरकी के पास एक सीट लेकर बैठ गयी। चारो और का नज़ारा देखने लगी। दस साल पहले की इमारते , खुले मैदान , रामु काका की मिठाई की दुकान, अब सब बदल गया है , पर एक चीज़ नही बदली कोल्कता की सरको की वह मीठी सी, अपनी सी, घर जैसी खुसबू। दो तीन स्टॉप तक तो बस खली ही रही , मैं भी मज़े से नज़ारे देखते हुए चली। पर उसके बाद , अगला स्टॉप आते आते इतनी भिर हो गयी की मैंने कभी देखि भी न हो। शायद खरे होने के लिए भी जगह न बची थी तब , बस में। खैर मुझे ज़्यादा परेशानी नही हुयी , गंगा घाट आते आते बहुत भिर हो चुकी थी बस में , जब मेरा बस घाट पहुंची तो मैंने इंतज़ार किया , जब काफी लोग उत्तर गया , और बस थोड़ा खली मालूम हुआ, मैं उत्तर गयी। कल हैदराबाद वापस जाने का फ्लाइट है , फिर अपने व्यस्त जीवन में व्यस्त हो जयुंगी। कोल्कता की बस में मेरा यह सफर एक मीठा याद बना रहेगा।
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