Hindi, asked by shalommendes774, 1 year ago

Essay on my childhood(till 10th Std) 1500-2000 words. In Hindi.


jhanvi128: i did not mean to hurt anyone
jhanvi128: sorry again
jhanvi128: sorry aishworya
jhanvi128: oh dear
shalommendes774: I did not delete ur answer OK plz check properly who deleted it
shalommendes774: And ur an idiot

Answers

Answered by RaviKumarNaharwal
30
बचपन में गुल्ली डंडा , कंचे , लुक्न छुपायी कितने मज़े से खेला करते थे ।

उंची –उंची आवाज़ में हमेशा इकठे होकर “अक्कड़ बक्कड बम्बा वो अस्सी नब्बे पूरे सौ , सौ में लगा धागा चोर निकल कर भागा और पौस्म पा भाई पौस्म पा इन शब्दों के बिना तो सभी खेल अधूरे से लगते थे ।

पतंगे तो बहुत उड़ाई होंगी पतंग  उड़ाने के इलावा ना पतंगों के पेचों का सिलसिला रुकता था और ना ही पतंग को उड़ाने का तब तक हार नहीं मानते थे जब तक दुसरे की पतंग को काट ना दिया जाए उस वक्त पतंग जा खेल हमें बताने की कोशिश करता था के पतंग भले ही काट जाये पर उम्मीद की डोर नहीं कटनी चाहिए

बारिश के मौसम में तो झूम उठते थे बारिश में नहाना और बारिश के पानी में कागज की नाव चलाना और उसमें चींटियां पकड़ कर बैठा देना कॉपी के आधे पन्ने तो नाव बनाने में ही गायब हो जाते थे  भला कौन भूल सकता है उन दिनों को

चिड़िया उड़ तोता उड़ और यदि कोई गलती से गधे को उड़ा देता था तो उसकी जमकर पिटाई होती थी ।

साईकल के टायर को एक छोटी सी छड़ी से चलाना ऐसे चलाते थे मानो हेलीकाप्टर चला रहे हों कसम से बड़ा मज़ा आता था .

दिन रात की तो कोई चिंता ही नहीं होती थी जब गिल्ली डंडा साथ होता था माँ कितनी भी आवाजें लगा लेती पर जाने का मन ही नहीं करता था जब तक माँ कान से पकड़ कर ना ले जाती थी ।

राजा वजीर और चोर सिपाही का खेल में तो अनोखा ही मज़ा था चोर का मूंह तो देखने योग्य होता था और राजा तो ख़ुशी के मारे उंची चिला उठता था राजा बोले वजीर कौन कई बार तो खेल खेल में आपस में लड़ भी बैठते थे । घर की खिड़कियों और दरवाज़ों पर लटकना यही तो खेल हुआ करते थे ।

दोस्तों इसके इलावा भी बचपन से बहुत सारी और भी यादें जुड़ीं हैं जिन्हें हम लिखते-लिखते थक जाएंगे किन्तु यादें खत्म नहीं होंगी इसीलिए दोस्तों बचपन की यादें इतनी हैं के उन्हें इस लेख में समेटना बहुत मुश्किल है और हमें उम्मीद है आपने भी अपना बचपन बहुत मज़े से जिया होगा
Answered by ItzMrSwaG
135

Answer:

बचपन में गुल्ली डंडा , कंचे , लुक्न छुपायी कितने मज़े से खेला करते थे ।

उंची –उंची आवाज़ में हमेशा इकठे होकर “अक्कड़ बक्कड बम्बा वो अस्सी नब्बे पूरे सौ , सौ में लगा धागा चोर निकल कर भागा और पौस्म पा भाई पौस्म पा इन शब्दों के बिना तो सभी खेल अधूरे से लगते थे ।

पतंगे तो बहुत उड़ाई होंगी पतंग  उड़ाने के इलावा ना पतंगों के पेचों का सिलसिला रुकता था और ना ही पतंग को उड़ाने का तब तक हार नहीं मानते थे जब तक दुसरे की पतंग को काट ना दिया जाए उस वक्त पतंग जा खेल हमें बताने की कोशिश करता था के पतंग भले ही काट जाये पर उम्मीद की डोर नहीं कटनी चाहिए

बारिश के मौसम में तो झूम उठते थे बारिश में नहाना और बारिश के पानी में कागज की नाव चलाना और उसमें चींटियां पकड़ कर बैठा देना कॉपी के आधे पन्ने तो नाव बनाने में ही गायब हो जाते थे  भला कौन भूल सकता है उन दिनों को

चिड़िया उड़ तोता उड़ और यदि कोई गलती से गधे को उड़ा देता था तो उसकी जमकर पिटाई होती थी ।

साईकल के टायर को एक छोटी सी छड़ी से चलाना ऐसे चलाते थे मानो हेलीकाप्टर चला रहे हों कसम से बड़ा मज़ा आता था .

दिन रात की तो कोई चिंता ही नहीं होती थी जब गिल्ली डंडा साथ होता था माँ कितनी भी आवाजें लगा लेती पर जाने का मन ही नहीं करता था जब तक माँ कान से पकड़ कर ना ले जाती थी ।

राजा वजीर और चोर सिपाही का खेल में तो अनोखा ही मज़ा था चोर का मूंह तो देखने योग्य होता था और राजा तो ख़ुशी के मारे उंची चिला उठता था राजा बोले वजीर कौन कई बार तो खेल खेल में आपस में लड़ भी बैठते थे । घर की खिड़कियों और दरवाज़ों पर लटकना यही तो खेल हुआ करते थे ।

दोस्तों इसके इलावा भी बचपन से बहुत सारी और भी यादें जुड़ीं हैं जिन्हें हम लिखते-लिखते थक जाएंगे किन्तु यादें खत्म नहीं होंगी इसीलिए दोस्तों बचपन की यादें इतनी हैं के उन्हें इस लेख में समेटना बहुत मुश्किल है और हमें उम्मीद है आपने भी अपना बचपन बहुत मज़े से जिया होगा

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