Hindi, asked by rajdeepaksingh33, 1 year ago

Essay on my family in Sanskrit language

Answers

Answered by reddykarthik104
1

‘महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार’

परोपकार-पर उपकार का अर्थ है- ‘दूसरों के हित के लिये।’ परोपकार मानव का सबसे बड़ा धर्म है। स्वार्थ के दायरे से निकलकर व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के विषय में सोचता है, दूसरों के लिये कार्य करता है। इसी को परोपकार कहते हैं।

भगवान सबसे बड़ा परोपकारी है जिसने हमारे कल्याण के लिये संसार का निर्माण किया। प्रकृति का प्रत्येक अंश परोपकार की शिक्षा देता प्रतीत होता है। सूर्य और चांद हमें जीवन प्रकाश देते हैं। नदियाँ अपने जल से हमारी प्यास बुझाती हैं। गाय भैंस हमारे लिये दूध देती हैं। बादल धरती के लिये झूम कर बरसता है। फूल अपनी सुगन्ध से दूसरों का जीवन सुगन्धित करते हैं।

परोपकार दैवी गुण है। इंसान स्वभाव से परोपकारी है। किन्तु स्वार्थ और संकीर्ण सोच ने आज सम्पूर्ण मानव जाति को अपने में ही केन्द्रित कर दिया है। मानव अपने और अपनों के चक्कर में उलझ कर आत्मकेन्द्रित हो गया है। उसकी उन्नति रूक गयी है। अगर व्यक्ति अपने साथ साथ दूसरों के विषय में भी सोचे तो दुनिया की सभी बुराइयाँ, लालच, ईर्ष्या, स्वार्थ और वैर लुप्त हो जायें।

महर्षि दधीचि ने राजा इन्द्र के कहने पर देवताओं की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी हड्डियों से वज्र बना जिससे राक्षसों का नाश हुआ। राजा शिवि के बलिदान को कौन नहीं जानता जिन्होंने एक कबूतर की प्राण रक्षा के लिये अपने शरीर को काट काट कर दे दिया।

परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृति का होता है। उसे दूसरों को सुख देकर आनंद महसूस होता है। भटके को राह दिखाना, समय पर ठीक सलाह देना, यह भी परोपकार के काम हैं। सामर्थ्य होने पर व्यक्ति दूसरों की शिक्षा, भोजन, वस्त्र, आवास, धन का दान कर उनका भला कर सकता है।

Similar questions