Hindi, asked by ItsmeRISHAV, 10 months ago

essay on nari ka yogdan in hindi​

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Answered by ZOYA1447
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Answer:

स्त्री समाज का आधार होती है। एक समाज के निर्माण में स्त्री की मुख्य भूमिका होती है। हमारे ग्रंथों में स्त्री को संसार की जननी कहा गया है। उसे देवी की तरह पूजा जाता है व आदर दिया जाता है। धर्मग्रंथों में विवाहित स्त्री को पुरूष की सहधर्मचारिणी कहा गया है, जो उसके धर्म आदि कार्यों में बराबर का सहयोग करती है। उसे पुरूषों के समान ही जीवन का मजबूत आधार स्तंभ माना गया है। इन सब बातों के बावजूद समाज में स्त्री की दशा दयनीय बनी हुई है। समाज में पुरूषों की वर्चस्वता ने उसके आस्तित्व को दबा कर रख दिया है। वह अब मात्र कहने के लिए सम्मान व आदर का प्रतीक बनकर रह गई। वह आधार स्तंभ तो बनी परंतु पुरूष की दासता स्वीकार करने के लिए। पुरुष ने उसे शिक्षा के अधिकार से वंचित कर दिया। इसका परिणाम यह निकला की उसका अस्तित्व कहीं विलिन होने लगा। एक समाज के विकास के लिए स्त्री का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है। स्त्री जहाँ घर का निर्माण करती है, वहीं वह एक जीवन को भी उत्पन्न करती है।

Answered by Anonymous
17
जब भारतीय ऋषियों ने अथर्ववेद में ‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः’ (अर्थात भूमि मेरी माता है और हम इस धरा के पुत्र हैं।) की प्रतिष्ठा की तभी सम्पूर्ण विश्व में नारी-महिमा का उद्घोष हो गया था। नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी की महत्ता को बताते हुए कहा था कि -‘मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा।’

भारतीय जन-जीवन की मूल धुरी नारी (माता) है। यदि यह कहा जाय कि संस्कृति, परम्परा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रही है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब-जब समाज में जड़ता आयी है, नारी शक्ति ने ही उसे जगाने के लिए, उससे जूझने के लिए अपनी सन्तति को तैयार करके, आगे बढ़ने का संकल्प दिया है।

कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को, जिसकी शिक्षा-दीक्षा ने शिवाजी को महान देशभक्त और कुशल योद्धा बनाया। कौन भूल सकता है पन्ना धाय के बलिदान को पन्नाधाय का उत्कृष्ट त्याग एवं आदर्श इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह उच्च कोटि की कर्तव्य परायणता थी। अपने बच्चे का बलिदान देकर राजकुमार का जीवन बचाना सामान्य कार्य नहीं। हाड़ी रानी के त्याग एवं बलिदान की कहानी तो भारत के घर-घर में गायी जाती है। रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्ताना, पद्मिनी और मीरा के शौर्य एवं जौहर एवं भक्ति ने मध्यकाल की विकट परिस्थितियों में भी अपनी सुकीर्ति का झण्डा फहराया। कैसे कोई स्मरण न करे उस विद्यावती का जिसका पुत्र फांसी के तख्ते पर खड़ा था और मां की आंखों में आंसू देखकर पत्रकारों ने पूछा कि एक शहीद की मां होकर आप रो रही हैं तो विद्यावती का उत्तर था कि ‘मैं अपने पुत्र की शहीदी पर नहीं रो रही, कदाचित् अपनी कोख पर रो रही हूं कि काश मेरी कोख ने एक और भगत सिंह पैदा किया होता, तो मैं उसे भी देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर देती।’ ऐसा था भारतीय माताओं का आदर्श। ऐसी थी उनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा



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राष्ट्र निर्माण में महिलाओं का योगदान

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राष्ट्र निर्माण में महिलाओं का योगदान

 6 years ago प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो

-गुंजेश गौतम झा- 

जब भारतीय ऋषियों ने अथर्ववेद में ‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः’ (अर्थात भूमि मेरी माता है और हम इस धरा के पुत्र हैं।) की प्रतिष्ठा की तभी सम्पूर्ण विश्व में नारी-महिमा का उद्घोष हो गया था। नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी की महत्ता को बताते हुए कहा था कि -‘मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा।’

भारतीय जन-जीवन की मूल धुरी नारी (माता) है। यदि यह कहा जाय कि संस्कृति, परम्परा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रही है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब-जब समाज में जड़ता आयी है, नारी शक्ति ने ही उसे जगाने के लिए, उससे जूझने के लिए अपनी सन्तति को तैयार करके, आगे बढ़ने का संकल्प दिया है।

कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को, जिसकी शिक्षा-दीक्षा ने शिवाजी को महान देशभक्त और कुशल योद्धा बनाया। कौन भूल सकता है पन्ना धाय के बलिदान को पन्नाधाय का उत्कृष्ट त्याग एवं आदर्श इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह उच्च कोटि की कर्तव्य परायणता थी। अपने बच्चे का बलिदान देकर राजकुमार का जीवन बचाना सामान्य कार्य नहीं। हाड़ी रानी के त्याग एवं बलिदान की कहानी तो भारत के घर-घर में गायी जाती है। रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्ताना, पद्मिनी और मीरा के शौर्य एवं जौहर एवं भक्ति ने मध्यकाल की विकट परिस्थितियों में भी अपनी सुकीर्ति का झण्डा फहराया। कैसे कोई स्मरण न करे उस विद्यावती का जिसका पुत्र फांसी के तख्ते पर खड़ा था और मां की आंखों में आंसू देखकर पत्रकारों ने पूछा कि एक शहीद की मां होकर आप रो रही हैं तो विद्यावती का उत्तर था कि ‘मैं अपने पुत्र की शहीदी पर नहीं रो रही, कदाचित् अपनी कोख पर रो रही हूं कि काश मेरी कोख ने एक और भगत सिंह पैदा किया होता, तो मैं उसे भी देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर देती।’ ऐसा था भारतीय माताओं का आदर्श। ऐसी थी उनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा।

परिवार के केन्द्र में नारी है। परिवार के सारे घटक उसी के चतुर्दिक घूमते हैं, वहीं पोषण पाते हैं और विश्राम। वही सबको एक माला में पिरोये रखने का प्रयास करती है। किसी भी समाज का स्वरूप वहां की नारी की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि उसकी स्थिति सुदृढ़ एवं सम्मानजनक है तो समाज भी सुदृढ़ एवं मजबूत होगा। भारतीय महिला सृष्टि के आरंभ से अनन्त गुणों की आगार रही है। पृथ्वी की सी सहनशीलता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की गम्भीरता, पुष्पों जैसा मोहक सौन्दर्य, कोमलता और चन्द्रमा जैसी शीतलता महिला में विद्यमान है। वह दया, करूणा, ममता, सहिष्णुता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है। नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है। बाल्यावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त वह हमारी संरक्षिका बनी रहती है । सीता, सावित्री, गार्गी, मैत्रेयी जैसी महान् नारियों ने इस देश को अलंकृत किया है। निश्चित ही महिला इस सृष्टि की सबसे सुन्दर कृति तो है ही, साथ ही एक समर्थ अस्तित्व भी है।

वह जननी है, अतः मातृत्व महिमा से मंडित है। वह सहचरी है, इसलिए अर्धांगिनी के सौभाग्य से श्रृंगारित है। वह गृहस्वामिनी है, इसलिए अन्नपूर्णा के ऐश्वर्य से अलंकृत है। वह शिशु की प्रथम शिक्षिका है, इसलिए गुरु की गरिमा से गौरवान्वित है। महिला घर, समाज और राष्ट्र का आदर्श है। कोई पुण्य कार्य, यज्ञ, अनुष्ठान, निर्माण आदि महिला के बिना पूर्ण नहीं होता है। सशक्त महिला सशक्त समाज की आधारशिला है। महिला सृष्टि का उत्सव, मानव की जननी, बालक की पहली गुरु तथा पुरूष की प्रेरणा है।



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