essay on offline examination in HINDI
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भारतीय परीक्षा व्यवस्था भारतीय शिक्षा का ही भाग है जिसका अर्थ होता है सम्पूर्ण शिक्षण सत्र में विद्यार्थी ने क्या पड़ा या सीखा और अध्यापक ने क्या पढाया या सिखाया । इसी परिप्रेक्ष में परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है ।
दूसरी परीक्षाएं प्रवेश परीक्षा व प्रतियोगी परीक्षाए होती हैं जिनका महत्व तो अलग है हम यहां केवल एकेडमिक परीक्षाओं के विषय में चर्चा कर रहे हैं न कि प्रवेश परीक्षाएं और प्रतियोगी परीक्षाओं के विषय में एकेडमिक परीक्षाओं में विशेष कर बोर्ड परीक्षाओं का आयोजन होता है ।
वर्तमान समय में उ॰प्र॰ जैसे राज्य के विषय में बोर्ड परीक्षाओं की बात करें तो बोर्ड परीक्षाएं एक मजाक बन कर रह गयी हैं । कुछ कालिजों को अगर छोड दिया जाये तो अधिकतर कालिजों की स्थिति ऐसी है कि वे केवल धन कमाने का माध्यम मात्र रह गये हैं जो विद्यार्थी से पांच से सात हजार रूपये तय करके उसको पास करने की गारन्टी दी जाती है और पास कराया भी जाता है ।
कोई व्यक्ति यदि ऐसी व्यवस्था का विरोध करता है या अधिकारियों को शिकायत करता है तो भी कुछ कार्यवाही नहीं होती । क्योंकि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से सब कुछ चलता है । अधिकारियों को भी परीक्षा के समय अच्छी खासी रकम मिल जाती है तो वे भी क्यों कार्यवाही करें जब उनको पर्याप्त मेहनताना मिल रहा है ।
ऐसी परीक्षा व्यवस्था अब भरतीय व्यवस्था का हिस्सा बन चुकी है और हम आम आदमी भी इस परीक्षा व्यवस्था के आदि हो चुके हैं । तभी तो सब कुछ सहन कर रहे हैं । उ॰प्र॰ में बोर्ड परीक्षाओं में एक ऐसी व्यवस्था चल रही है जिसमें विद्यार्थी बिना परीक्षा दिये पास हो रहे हैं । उन्हें केवल आठ से दस हजार रूपये खर्च करने होंगे और प्रमाण-पत्र उनके हाथों में । ऐसी व्यवस्था भारतीय परीक्षा व्यवस्था की है ।
जिसमें केवल पैसा ही सर्वोपरी सिद्ध हो रहा है । इस परीक्षा व्यवस्था में दूसरे परीक्षार्थी परीक्षा दे रहे हैं और प्रमाण-पत्र प्राप्त कर रहे हैं । अर्थात बोर्ड परीक्षाओं में भी प्रवेश परीक्षा प्रतियोगी परीक्षाओं की तरह मुन्नाभाई प्रवेश कर धन कमा रहे हैं और भारतीय परीक्षा व्यवस्था उस पर नियंत्रण कर पाने में नाकाम है और भारतीय यवस्था को ऐसे होनहार विद्यार्थी मिल रहे हैं जो भारतीय व्यवस्था को केवल आगे धकेल रहे हैं उनको किसी गुणवत्ता से कोई मतलब नहीं है ।
मतलब है तो केवल ओर केवल डिग्री लेने से । जो उनको आसानी से मिल रही है । ऐसा भारतीय परीक्षा व्यवस्था की मेहरबानी से हो रहा है और उसको रोक पाना असम्भव प्रतीत हो रहा है । ऐसी परीक्षा व्यवस्था देश को अच्छे नागरिक देने के स्थान पर अच्छे चालबाज दे रही है भारतीय परीक्षा व्यवस्था वर्तमान समय में सभ्यता के शुरू होने से लेकर आज तक की सबसे घटिया स्तर पर पहुंच गई है कि जिसमें अभिभावक, अध्यापक, अधिकारी और सरकार सब डिग्री धारी बनाना चाहते हैं ।
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