Hindi, asked by vishra4, 8 months ago

essay on one satellite in hindi​

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Answered by shubh928985
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उपग्रह अंग्रेजी के सैटेलाइट शब्द का हिन्दी रूपान्तर है । उपग्रहों की रचना करके इन्हें अन्तरिक्ष में स्थापित किया जाता है । अमेरिका आदि देश अन्तरिक्ष अनुसंधान कार्यों पर अरबों रुपए खर्च कर रहे हैं । इसका कारण केवल यह है कि हम प्रकृति के गुप्त रहस्यों को जानना चाहते हैं तथा जो कुछ हमें पता चलता है उसे हम दूसरों को बताना भी चाहते हैं ।

अन्तरिक्ष अनुसंधान के जरिए हम यह भी जानना चाहते हैं कि हमारे जैसे लोग अन्य कौन से ग्रहों पर रह रहे हैं । यद्यपि इस बात का पता अभी तक नहीं चल सका है । इन कृत्रिम उपग्रहों को अन्तरिक्ष में स्थापित करने से हमें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं ।

मौसम के बारे में हमें उपग्रहों से सही जानकारी प्राप्त हो जाती है । समुद्री तुफान, बाढ़, भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना भी हमें इन्हीं उपग्रहों से प्राप्त होती है । भारत अन्तरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में काफी उन्नति कर चुका है । 26 मई, 1999 को भारत ने पी.एस.एल.वी.-सी 2 उपग्रह प्रक्षेपण वाहन के द्वारा दो विदेशी तथा एक स्वदेशी उपग्रह को अन्तरिक्ष में पहुंचाया ।

इसके अलावा, भारत इन्सैट-3E उपग्रह को लगभग एक वर्ष पूर्व ही उसकी अन्तरिक्ष कक्षा में स्थापित कर चुका था । अब अन्य देश भी अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत पर निर्भर हो रहे हैं । भारत के वैज्ञानिक भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जी.एस.एल.वी.) पर अनुसंधान कर रहे हैं ।

इस प्रौद्योगिकी में निपुणता प्राप्त करते ही भारत के वैज्ञानिक अन्तरिक्ष अनुसंधान व वाहन प्रक्षेपण के कारोबारी विषयों में पारंगत हो जायेंगे परन्तु इस प्रौद्योगिकी में पारंगत होने में समय लगता है । इन्सैट-3 की शृंखला के सभी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जा चुका है । चौथी पीढ़ी के संचार उपग्रह इन्सैट-4A का 22 दिसम्बर 2005 को सफल प्रक्षेपण किया गया ।

ये उपग्रह मौसम, संचार, शिक्षा, व्यवसाय आदि क्षेत्रों के लिए सिग्नलों का हस्तांतरण करते हैं । 5 मई, 2005 को बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ‘पीएसएलवी सी-6’ ने अत्याधुनिक दूर संवेदी उपग्रह ‘कार्टोसैट-1’ और हैमसेट को सफलतापूर्वक ध्रुवीय और समस्थैतिक कक्षा में स्थापित कर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई बुलंदियों पर पहुँचा दिया है ।

कार्टोसैट की भूमिका इसलिए भी अहम हो गई है कि भारत ने राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली (एनएनआरएमएम) की स्थापना की है ।  28 अप्रैल, 2008 को भारत ने ध्रुवीय प्रक्षेपण यान ‘पीएसएलवी-सी 9’ के द्वारा 10 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण करके नया इतिहास रच दिया है ।

23 सितम्बर, 2009 को इसरो ने अपने नवीनतम दूरसंवेदी उपग्रह ओशनसेट-2 का सफल प्रक्षेपण किया है । जुलाई, 2010 में भारत ने कार्टोसैट-2 को, जुलाई 2011 में जीसैट-12 को तथा अक्टूबर 2011 में मेघा-ट्रॉपिक्स को सफलतापूर्वक उनकी कक्षा में स्थापित किया ।

दूरसंवेदी उपग्रहों से मिलने वाले आंकड़ों का इस्तेमाल विविध रूप में किया जाता है । उनका इस्तेमाल कृषि जलवायु क्षेत्र नियोजन के लिए भू-उपयोग और भू-आच्छादन मैपिंग या नक्शानवीसी के अतिरिक्त बंजर भूमि नक्शानवीसी, वनाच्छादन नक्शानवीसी, आर्द्र भूमि नक्शानवीसी और फसल रकबा एवं उत्पादन आकलन के लिए किया जाता है । दूरसंवेदी उपग्रहों का इस्तेमाल तटीय क्षेत्र नियमन नक्शानवीसी और राष्ट्रीय नदी कार्ययोजना के लिए भी किया जाता है ।

विश्व व भारत में उपग्रहों द्वारा संचार के क्षेत्र में क्रान्ति आ रही है । भारत अब अपने उपग्रह के द्वारा कई क्षेत्रों में प्रसारण को सार्वदेशिक बनाने के लिए सक्षम हो चुका है व उसने अपने प्रसारणों को सार्वभौम बनाने में सफलता प्राप्त की है । यह कहा जा सकता है कि उपग्रह संचार प्रौद्योगिकी आने वाले समय में संचार के क्षेत्र में नये आयामों का सृजन करेगी ।

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