Hindi, asked by yashwanth4444, 1 year ago

essay on प्रकृति मनुष्य का मित्र हैं​

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Answered by aman81930
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मनुष्य के जन्म के साथ ही उनका प्रकृति से अटूट नाता जुड़ जाता हैं. या यूँ कहे कि मानव आजीवन प्रकृति पर निर्भर रहता हैं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. उनके हर क्रियाकलाप प्रकृति के साथ ही होते हैं. इन्सान ने समय के परिवर्तन के साथ साथ स्वयं में भी बदलाव करते हुए आज स्वयं को साधन सम्पन्न बना दिया हैं. एक समय इन्सान और जानवर में कोई फर्क नहीं था मगर प्रकृति का सहयोग लेकर इसने स्वयं को आधुनिक बनाया हैं. हर तरह से प्रकृति मानव का पोषण करती आई हैं. तथा यह अनंत काल से मानव की सहचरी रही हैं. मगर मनुष्य ने अपने स्वार्थ के चलते प्रकृति के साथ मित्रता के नाते को फिर से धूमिल कर दिया हैं. प्रकृति की सुंदरता को समाप्त कर इसके साथ दासी जैसा व्यवहार करना आरम्भ कर दिया हैं. कुदरत ने मानव के लिए पृथ्वी की सुंदर रचना की हैं. जिसके हरेक तत्व का बड़ा महत्व हैं. जीव जन्तु हो या पेड़ पौधे अथवा कीड़े मकोड़े सभी का संतुलन ही प्रकृति की सुंदरता को बढ़ाती हैं. व्यक्ति के जीवित रहने के लिए शुद्ध हवा तथा जल बचा रहना चाहिए, साथ ही साथ वनस्पतियों तथा जीव जन्तुओं का होना भी जरुरी हैं. पृथ्वी पर सभी सजीव प्राणियों का भोजन धरती के तल में दबा केवल पेड़ पौधे ही इसे सभी के लिए सुलभ बना सकते हैं. सूर्य की किरणों के माध्यम से पेड़ पौधे अपना भोजन बनाते है तथा उन्ही पर सभी शाकाहारी निर्भर रहते हैं. इस जीवन चक्र में शाकाहारी जीवों के संतुलन तथा पेड़ पौधों की रक्षा के लिए मांसाहारी जीव अपना कर्तव्य निभाते हैं. इस प्रकार प्रकृति के इस संतुलन को बनाने में पेड़ पौधों की प्राथमिक भूमिका होती हैं जबकि मानव वह स्वार्थी प्राणी है जो सब कुछ मुफ्त में पाने के उपरांत भी प्रकृति के साथ धोखेबाजी की राह को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता हैं. प्रकृति और मनुष्य एक दूसरे के पूरक है इसका मतलब यह नही कि मानव नहीं होगा तो पृथ्वी नहीं चलेगी बल्कि प्रकृति का मानव जीवन के लिए होना नितांत अनिवार्य हैं. अतः अभी भी समय हमें मानव और प्रकृति के मित्रता पूर्ण रिश्ते को समझना होगा तथा हमारा जीवन पूर्ण अंधकारमय हो जाए इससे पूर्व नेचर के साथ सामजस्य बिठाना होगा.
Answered by sarangi42
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Answer:

प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य के लिए धरती उसके घर का आंगन, आसमान छत, सूर्य-चांद-तारे दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। इतना ही नहीं, मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। आज तक मनुष्य ने जो कुछ हासिल किया वह सब प्रकृति से सीखकर ही किया है।

न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों को गुरुत्वाकर्षण समेत कई पाठ प्रकृति ने सिखाए हैं तो वहींकवियों ने प्रकृति के सानिध्य में रहकर एक से बढ़कर एक कविताएं लिखीं। इसी तरह आम आदमी ने प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव किए।

दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे-पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में आत्मसात किया उसे असफलता से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति अपनी हर असफलता के बाद विचलित हुए बगैर नए सिरे से सफलता पाने की कोशिश करते हैं। वे तब तक ऐसा करते रहते हैं जब तक सफलता उन्हें मिल नहीं जाती। इसी तरह फलों से लदे, मगर नीचे की ओर झुके पेड़ हमें सफलता और प्रसिद्धि मिलने या संपन्न होने के बावजूद विनम्र और शालीन बने रहना सिखाते हैं। उपन्यासकार प्रेमचंद के मुताबिक साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है, जो जीवन में प्रकृति का है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि प्रकृति में हर किसी का अपना महत्व है। एक छोटा-सा कीड़ा भी प्रकृति के लिए उपयोगी है, जबकि मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों के समान बताया गया है। इसी कारण हमारे यहां वृक्ष पूजने की सनातन परंपरा रही है। पुराणों में कहा गया है कि जो मनुष्य नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षो तक फलता-फूलता है, जितने वर्षो तक उसके लगाए वृक्ष फलते-फूलते हैं।

प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे-नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है तब उसे गुस्सा आता है। जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है।

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