Essay on पलासटिक एक समसया in Hindi Plz Fast. Hints Above in the attachment!
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Amaan111111:
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प्रकृति एवं मानव ईश्वर की अनमोल एवं अनुपम कृति हैं। प्रकृति अनादि काल से मानव की सहचरी रही है। लेकिन मानव ने अपने भौतिक सुखों एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिये इसके साथ निरंतर खिलवाड़ किया और वर्तमान समय में यह अपनी सारी सीमाओं की हद को पार कर चुका है। स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी मानव ने प्रकृति यानि पर्यावरण को पॉलीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह प्रदूषित किया और करता जा रहा है उससे सम्पूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका है। आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है।
वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा।
हालाँकि प्लास्टिक निर्मित वस्तुएँ गरीब एवं मध्यवर्गीय लोगों का जीवनस्तर सुधारने में सहायक हैं, लेकिन वहीं इसके लगातार उपयोग से वे अपनी मौत के बुलावे से भी अनभिज्ञ हैं। यह एक ऐसी वस्तु बन चुकी है जो घर में पूजा स्थल से रसोईघर, स्नानघर, बैठकगृह तथा पठन-पाठन वाले कमरों तक के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते यहाँ तक तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि भी लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग हो रहा है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉली में ही दिया जाता है। आज मनुष्य पॉली का इतना आदी हो चुका है कि वह कपड़े या जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गया है। अर्थात दुकानदार भी हर प्रकार के पॉलीथीन बैग रखने लग गए है और मजबूर भी हैं रखने के लिये, क्योंकि ग्राहक ने उसे पॉली रखने को बाध्य सा कर दिया है यह प्रचलन चार पाँच दशक पहले इतनी बड़ी मात्रा में नहीं था तब कपड़े, जूट या कागज से बने थैलों का प्रयोग हुआ करता था जोकि पर्यावरण के लिये लाभदायक था।
भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयाँ पॉलीथीन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुँचने की सूचना है जोकि भविष्य के लिये खतरे का सूचक है।
लेकिन जब से पॉलीथीन प्रचलन में आया, पुरानी सभी पद्धतियाँ धरी रह गईं और कपड़े, जूट व कागज की जगह पॉलीथीन ने ले ली। पॉलीथीन या प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का एक बार प्रयोग करने के बाद दुबारा प्रयोग में नहीं लिया जा सकता है लिहाजा इसे फेंकना ही पड़ता है। और आज तो यत्र-तत्र सर्वत्र पॉली ही पॉली दिखाइ देती है जो सम्पूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रही है यह पॉली निर्मित वस्तुएँ प्रकृति में विलय नहीं हो पाती हैं यानि यह बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नहीं है। खेत खलिहान जहाँ भी यह होगा वहाँ की उर्वरा शक्ति कम हो जाएगी और इसके नीचे दबे बीज भी अंकुरित नहीं हो पाएँगे। अत: भूमि बंजर हो जाती है। इससे बड़ी समस्या नालियाँ अवरुद्ध होने को आती हैं। जहाँ-तहाँ कूड़े से भरे पॉलीथीन वातावरण को प्रदूषित करते हैं। खाने योग्य वस्तुओं के छिलके पॉली में बंदकर फेंके जाने से, पशु इनका सेवन पॉलीथीन सहित कर लेते हैं, जो नुकसानदेय है और यहाँ तक की पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है।
जहाँ-जहाँ भी मानव ने अपने पाँव रखे वहाँ-वहाँ पॉलीथीन प्रदूषण फैलता चला गया। यहाँ तक यह हिमालय की वादियों को भी दूषित कर चुका है। यह इतनी मात्रा में बढ़ चुका है कि सरकार भी इसके निवारण के अभियान पर अभियान चला रही है। सैर सपाटे वाले सभी स्थान इससे ग्रस्त है।
भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयाँ पॉलीथीन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुँचने की सूचना है जोकि भविष्य के लिये खतरे का सूचक है।
वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा।
हालाँकि प्लास्टिक निर्मित वस्तुएँ गरीब एवं मध्यवर्गीय लोगों का जीवनस्तर सुधारने में सहायक हैं, लेकिन वहीं इसके लगातार उपयोग से वे अपनी मौत के बुलावे से भी अनभिज्ञ हैं। यह एक ऐसी वस्तु बन चुकी है जो घर में पूजा स्थल से रसोईघर, स्नानघर, बैठकगृह तथा पठन-पाठन वाले कमरों तक के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते यहाँ तक तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि भी लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग हो रहा है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉली में ही दिया जाता है। आज मनुष्य पॉली का इतना आदी हो चुका है कि वह कपड़े या जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गया है। अर्थात दुकानदार भी हर प्रकार के पॉलीथीन बैग रखने लग गए है और मजबूर भी हैं रखने के लिये, क्योंकि ग्राहक ने उसे पॉली रखने को बाध्य सा कर दिया है यह प्रचलन चार पाँच दशक पहले इतनी बड़ी मात्रा में नहीं था तब कपड़े, जूट या कागज से बने थैलों का प्रयोग हुआ करता था जोकि पर्यावरण के लिये लाभदायक था।
भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयाँ पॉलीथीन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुँचने की सूचना है जोकि भविष्य के लिये खतरे का सूचक है।
लेकिन जब से पॉलीथीन प्रचलन में आया, पुरानी सभी पद्धतियाँ धरी रह गईं और कपड़े, जूट व कागज की जगह पॉलीथीन ने ले ली। पॉलीथीन या प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का एक बार प्रयोग करने के बाद दुबारा प्रयोग में नहीं लिया जा सकता है लिहाजा इसे फेंकना ही पड़ता है। और आज तो यत्र-तत्र सर्वत्र पॉली ही पॉली दिखाइ देती है जो सम्पूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रही है यह पॉली निर्मित वस्तुएँ प्रकृति में विलय नहीं हो पाती हैं यानि यह बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नहीं है। खेत खलिहान जहाँ भी यह होगा वहाँ की उर्वरा शक्ति कम हो जाएगी और इसके नीचे दबे बीज भी अंकुरित नहीं हो पाएँगे। अत: भूमि बंजर हो जाती है। इससे बड़ी समस्या नालियाँ अवरुद्ध होने को आती हैं। जहाँ-तहाँ कूड़े से भरे पॉलीथीन वातावरण को प्रदूषित करते हैं। खाने योग्य वस्तुओं के छिलके पॉली में बंदकर फेंके जाने से, पशु इनका सेवन पॉलीथीन सहित कर लेते हैं, जो नुकसानदेय है और यहाँ तक की पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है।
जहाँ-जहाँ भी मानव ने अपने पाँव रखे वहाँ-वहाँ पॉलीथीन प्रदूषण फैलता चला गया। यहाँ तक यह हिमालय की वादियों को भी दूषित कर चुका है। यह इतनी मात्रा में बढ़ चुका है कि सरकार भी इसके निवारण के अभियान पर अभियान चला रही है। सैर सपाटे वाले सभी स्थान इससे ग्रस्त है।
भारत में लगभग दस से पंद्रह हजार इकाइयाँ पॉलीथीन का निर्माण कर रही हैं। सन 1990 के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इसकी खपत 20 हजार टन थी जो अब बढ़कर तीन से चार लाख टन तक पहुँचने की सूचना है जोकि भविष्य के लिये खतरे का सूचक है।
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