Essay on Pandit Madan Mohan Malaviya- a true karmyogi in Hindi
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"पंडित मालवीय जी एक कर्मयोगी हैं। वे केवल हिंदू धर्म के एक प्रतिनिधि ही नहीं बक्लि हिंदू धर्म की आत्मा भी है। ... " यह शब्द भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन के हैं।
पंडित मदन मोहन का जन्म इलाहाबाद के एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। उनके पिता जी का नाम मालवीय बृज नाथ और माता का नाम मोना देवी पंडित था। उनके छे भाई और दो बहने थी। उनकी शिक्षा पांच वर्ष की आयु में शुरू ओ गयी थी जब उन्हें पंडित हरदेवा की पाठशाला के लिए भेजा गया था। 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी पढाई पूरी कर के वे अपने पुराने स्कूल में एक शिक्षक के रूप में नियुक्त हो गए थे। अपनी वकालत की डिग्री पूरी करने के बाद 1891 में इलाहाबाद जिला न्यायालय में उन्होंने कानून का अभ्यास शुरू कर दिया , और दिसंबर 1893 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चले गए।
पंडित मदन मोहन मालवीय एक अग्रणी भारतीय शिक्षाविद थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष के रूप चुने जाने वाले वे एक उल्लेखनीय राजनीतिज्ञ हैं। वे भारत में 'स्काउटिंग' के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अखबार 'थ लीडर ' की स्थापना 1909 में की थी। वे दो साल के लिए भी हिन्दुस्तान टाइम्स के अध्यक्ष भी थे। पंडित मदन मोहन मालवीय भारत की शिक्षा प्रणाली में उनके योगदान और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। महात्मा गांधी ने उन्हें ' महामना ' के शीर्षक से सम्मानित किया था।
मालवीय एक महान राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने लगभग 50 साल के लिए कांग्रेस की सेवा की और 50 कांग्रेस के राष्ट्रपतियों के साथ काम किया । उन्होंने केवल शिक्षा एवं राजनीती में ही नहीं बल्कि सामाजिक और राष्ट्र के कल्याण के लिए भी अनेक कार्य किये हैं। उन्होंने 1880 में ' प्रयाग हिन्दू समाज ' के सचिव और 1885 में इलाहाबाद में ' मध्य भारत हिन्दू समाज सम्मेलन' के आयोजक के रूप में काम किया है। उन्होंने हरिजनो के लिए शुद्धि आंदोलन ' की शुरुआत की और महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये तथा योजनायें बनायीं। बम्बई में अस्पृश्यता को हटाने के लिए 1932 में जो सम्मेलन हुआ था, मालवीय जी उसके अध्यक्ष भी थे। उन्होंने 1941 में गाय संरक्षण सोसायटी की स्थापना की थी।
पंडित मदन मोहन ने निःस्वार्थ भाव से, अजीवन राष्ट्र की सेवा की है । 12 नवंबर 1946 को 85 साल की उम्र में उनका निधन हो गया लेकिन उनके विचार अभी भी जिंदा है । 24 दिसंबर 2014 को, मदन मोहन मालवीय उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। जनता के कल्याण को बढ़ावा देना, मातृभूमि की खातिर सब कुछ बलिदान करना और भगवान के प्रति और हमारी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य की भावना को जिंदा रखना ही उनके जीवन का उद्देश्य था । वे एक महान व्यक्ति और अग्रणी शिक्षाशास्री थे और सही माईनो में एक कर्मयोगी थे।
पंडित मदन मोहन का जन्म इलाहाबाद के एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। उनके पिता जी का नाम मालवीय बृज नाथ और माता का नाम मोना देवी पंडित था। उनके छे भाई और दो बहने थी। उनकी शिक्षा पांच वर्ष की आयु में शुरू ओ गयी थी जब उन्हें पंडित हरदेवा की पाठशाला के लिए भेजा गया था। 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी पढाई पूरी कर के वे अपने पुराने स्कूल में एक शिक्षक के रूप में नियुक्त हो गए थे। अपनी वकालत की डिग्री पूरी करने के बाद 1891 में इलाहाबाद जिला न्यायालय में उन्होंने कानून का अभ्यास शुरू कर दिया , और दिसंबर 1893 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चले गए।
पंडित मदन मोहन मालवीय एक अग्रणी भारतीय शिक्षाविद थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष के रूप चुने जाने वाले वे एक उल्लेखनीय राजनीतिज्ञ हैं। वे भारत में 'स्काउटिंग' के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अखबार 'थ लीडर ' की स्थापना 1909 में की थी। वे दो साल के लिए भी हिन्दुस्तान टाइम्स के अध्यक्ष भी थे। पंडित मदन मोहन मालवीय भारत की शिक्षा प्रणाली में उनके योगदान और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है। महात्मा गांधी ने उन्हें ' महामना ' के शीर्षक से सम्मानित किया था।
मालवीय एक महान राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने लगभग 50 साल के लिए कांग्रेस की सेवा की और 50 कांग्रेस के राष्ट्रपतियों के साथ काम किया । उन्होंने केवल शिक्षा एवं राजनीती में ही नहीं बल्कि सामाजिक और राष्ट्र के कल्याण के लिए भी अनेक कार्य किये हैं। उन्होंने 1880 में ' प्रयाग हिन्दू समाज ' के सचिव और 1885 में इलाहाबाद में ' मध्य भारत हिन्दू समाज सम्मेलन' के आयोजक के रूप में काम किया है। उन्होंने हरिजनो के लिए शुद्धि आंदोलन ' की शुरुआत की और महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये तथा योजनायें बनायीं। बम्बई में अस्पृश्यता को हटाने के लिए 1932 में जो सम्मेलन हुआ था, मालवीय जी उसके अध्यक्ष भी थे। उन्होंने 1941 में गाय संरक्षण सोसायटी की स्थापना की थी।
पंडित मदन मोहन ने निःस्वार्थ भाव से, अजीवन राष्ट्र की सेवा की है । 12 नवंबर 1946 को 85 साल की उम्र में उनका निधन हो गया लेकिन उनके विचार अभी भी जिंदा है । 24 दिसंबर 2014 को, मदन मोहन मालवीय उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। जनता के कल्याण को बढ़ावा देना, मातृभूमि की खातिर सब कुछ बलिदान करना और भगवान के प्रति और हमारी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य की भावना को जिंदा रखना ही उनके जीवन का उद्देश्य था । वे एक महान व्यक्ति और अग्रणी शिक्षाशास्री थे और सही माईनो में एक कर्मयोगी थे।
Qba:
That's great BrainlyHelper, thanks! :)
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hey mate
here is your answer
'मदन मोहन मालवीय' का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके दादा पं. प्रेमधर और पिता पं. बैजनाथ संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। उनके पिता पं. बैजनाथ, एक उत्कृष्ट कथावाचक (भागवत कथा) भी थे। मदन मोहन की शादी 1878 में मिर्जापुर की कुमारी देवी के साथ हुई थी।
मदन मोहन की शिक्षा पांच साल की उम्र में शुरू हो गई थी। वह एक बहुत मेहनती बालक थे। उन्होंने 1879 में मुइर सेंट्रल कॉलेज से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया। उन्होंने कानून की पढ़ाई की और 1891 में एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की, किन्तु उन्होंने कानूनी पेशे में कोई दिलचस्पी नहीं ली।
मदन मोहन मालवीय एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्हें 'महामना' का खिताब दिया गया था। उन्हें वाराणसी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक के रूप में याद किया जाता है। मदन मोहन मालवीय एक महान विद्वान, शिक्षाविद् एवं राष्ट्रीय आंदोलन के नेता थे। उन्होंने वर्ष 1906 में हिंदू महासभा की स्थापना की। उन्होंने कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक समाचार पत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया।
12 नवंबर 1946 को 85 वर्ष की आयु में मदन मोहन मालवीय का देहांत हो गया। वह सामाजिक मामलों में एक रूढ़िवादी व्यक्ति थे। उनकी 153 जयंती के एक दिन पहले, 24 दिसंबर, 2014 को उन्हें (मरणोपरांत) भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया। मदन मोहन मालवीय का भारतीय सार्वजनिक जीवन में एक बहुत ही उच्च स्थान है। उन्हें उनकी सौम्यता और विनम्रता के लिए सदैव जाना जाता रहेगा।
thanks for asking this question
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'मदन मोहन मालवीय' का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके दादा पं. प्रेमधर और पिता पं. बैजनाथ संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। उनके पिता पं. बैजनाथ, एक उत्कृष्ट कथावाचक (भागवत कथा) भी थे। मदन मोहन की शादी 1878 में मिर्जापुर की कुमारी देवी के साथ हुई थी।
मदन मोहन की शिक्षा पांच साल की उम्र में शुरू हो गई थी। वह एक बहुत मेहनती बालक थे। उन्होंने 1879 में मुइर सेंट्रल कॉलेज से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया। उन्होंने कानून की पढ़ाई की और 1891 में एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की, किन्तु उन्होंने कानूनी पेशे में कोई दिलचस्पी नहीं ली।
मदन मोहन मालवीय एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। उन्हें 'महामना' का खिताब दिया गया था। उन्हें वाराणसी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक के रूप में याद किया जाता है। मदन मोहन मालवीय एक महान विद्वान, शिक्षाविद् एवं राष्ट्रीय आंदोलन के नेता थे। उन्होंने वर्ष 1906 में हिंदू महासभा की स्थापना की। उन्होंने कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक समाचार पत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया।
12 नवंबर 1946 को 85 वर्ष की आयु में मदन मोहन मालवीय का देहांत हो गया। वह सामाजिक मामलों में एक रूढ़िवादी व्यक्ति थे। उनकी 153 जयंती के एक दिन पहले, 24 दिसंबर, 2014 को उन्हें (मरणोपरांत) भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया। मदन मोहन मालवीय का भारतीय सार्वजनिक जीवन में एक बहुत ही उच्च स्थान है। उन्हें उनकी सौम्यता और विनम्रता के लिए सदैव जाना जाता रहेगा।
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