Hindi, asked by mahima2830, 1 year ago

essay on paropkar in Hindi​

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Answered by riyak25
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Answer:

maanav jeevan mein paropakaar ka bahut mahatv hota hai. samaaj mein paropakaar se badhakar koee dharm nahin hota hai. eeshvar ne prakrti kee rachana is tarah se kee hai ki aaj tak paropakaar usake mool mein hee kaam kar raha hai. paropakaar prakrti ke kan-kan mein samaaya hua hai. jis tarah se vrksh kabhee bhee apana phal nahin khaata hai, nadee apana paanee nahin peetee hai, soory hamen roshanee dekar chala jaata hai.isee tarah se prakrti apana sarvasv hamako de detee hai. vah hamen itana kuchh detee hai lekin badale mein hamase kuchh bhee nahin letee hai. kisee bhee vyakti kee pahachaan paropakaar se kee jaatee hai. jo vyakti paropakaar ke lie apana sab kuchh tyaag deta hai vah achchha vyakti hota hai. jis samaaj mein doosaron kee sahaayata karane kee bhaavana jitanee adhik hogee vah samaaj utana hee sukhee aur samrddh hoga. paropakaar kee bhaavana manushy ka ek svaabhaavik gun hota hai.


mahima2830: thanks
riyak25: if u want this to be in hindi : मानव जीवन में परोपकार का बहुत महत्व होता है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है।
riyak25: इसी तरह से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती है। किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से की जाती है। जो व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है वह अच्छा व्यक्ति होता है। जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा। परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।
mahima2830: thanks for your help
riyak25: welcome
mahima2830: hello
riyak25: yo!
mahima2830: ☺️☺️☺️
Answered by kritiku2005
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Answer:

परोपकार पर निबंध

‘महापुण्य उपकार है, महापाप अपकार’

परोपकार-पर उपकार का अर्थ है- ‘दूसरों के हित के लिये।’ परोपकार मानव का सबसे बड़ा धर्म है। स्वार्थ के दायरे से निकलकर व्यक्ति जब दूसरों की भलाई के विषय में सोचता है, दूसरों के लिये कार्य करता है। इसी को परोपकार कहते हैं।

भगवान सबसे बड़ा परोपकारी है जिसने हमारे कल्याण के लिये संसार का निर्माण किया। प्रकृति का प्रत्येक अंश परोपकार की शिक्षा देता प्रतीत होता है। सूर्य और चांद हमें जीवन प्रकाश देते हैं। नदियाँ अपने जल से हमारी प्यास बुझाती हैं। गाय भैंस हमारे लिये दूध देती हैं। बादल धरती के लिये झूम कर बरसता है। फूल अपनी सुगन्ध से दूसरों का जीवन सुगन्धित करते हैं।

परोपकार दैवी गुण है। इंसान स्वभाव से परोपकारी है। किन्तु स्वार्थ और संकीर्ण सोच ने आज सम्पूर्ण मानव जाति को अपने में ही केन्द्रित कर दिया है। मानव अपने और अपनों के चक्कर में उलझ कर आत्मकेन्द्रित हो गया है। उसकी उन्नति रूक गयी है। अगर व्यक्ति अपने साथ साथ दूसरों के विषय में भी सोचे तो दुनिया की सभी बुराइयाँ, लालच, ईर्ष्या, स्वार्थ और वैर लुप्त हो जायें।

महर्षि दधीचि ने राजा इन्द्र के कहने पर देवताओं की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी हड्डियों से वज्र बना जिससे राक्षसों का नाश हुआ। राजा शिवि के बलिदान को कौन नहीं जानता जिन्होंने एक कबूतर की प्राण रक्षा के लिये अपने शरीर को काट काट कर दे दिया।

परोपकारी मनुष्य स्वभाव से ही उत्तम प्रवृति का होता है। उसे दूसरों को सुख देकर आनंद महसूस होता है। भटके को राह दिखाना, समय पर ठीक सलाह देना, यह भी परोपकार के काम हैं। सामर्थ्य होने पर व्यक्ति दूसरों की शिक्षा, भोजन, वस्त्र, आवास, धन का दान कर उनका भला कर सकता है।

परोपकार करने से यश बढ़ता है। दुआयें मिलती हैं। सम्मान प्राप्त होता है। तुलसीदास जी ने कहा है-

‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधभाई।’

जिसका अर्थ है- दूसरों के भला करना सबसे महान धर्म है और दूसरों की दुख देना महा पाप है। अतः हमें हमेशा परोपकार करते रहना चाहिए। यही एक मनुष्य का परम कर्तव्य है।

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