Hindi, asked by astudas3004, 1 year ago

essay on parvatya saundariya in hindi

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Answered by singhAbhay1231
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गत वर्ष शीत अवकाश में मुझे नैनीताल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। हम लोग किराये की कार से नैनीताल के लिए रवाना हुए। दिल्ली से हल्द्वानी तक तो रास्ता एकदम सीधे और सपाट तजे परन्तु हल्द्वानी से आगे नैनीताल के समीप रास्ते अत्यंत टेढ़े-मेढ़े थे । हालाँकि ठण्ड तो दिल्ली में भी काफी थी परन्तु जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे गाड़ी में नियंत्रित तापमान के बावजूद गर्म कपड़ों में भी कम्पकम्पी आ रही थी। सड़क के दोनों ओर घाटियों के दृश्य एक ओर तो प्राकृतिक सौंदर्य के आनंद से भाव-विभोर कर रहे थे वहीं दूसरी ओर नीचे इन घाटियों की गहराई का अंकन हृदय में सिहरन भर देता और हम भय से नजर दूसरी ओर कर लेते । चारों ओर पहाड़ों व हरे-भरे वृक्ष अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रहे थे ।
तराई क्षेत्रों के प्रदूषित वातावरण से दूर हवा के ठंडे झोंके व प्रात: कालीन सूर्य की स्वर्णिम किरणें मन को आत्मिक सुख प्रदान कर रही थीं । अगले दिन प्रात: काल नाश्ता आदि के पश्चात् हम सभी पैदल ही होटल से निकल पड़े । बरफ से ढके चारों ओर पहाड़ों से घिरे नैनीताल में मुझे स्वर्गिक आनंद प्राप्त हो रहा था ।
बर्फीली पहाड़ी चोटियों पर सूर्य की स्वर्णिम किरणों का दृश्य अत्यंत सुहावना था । प्रकृति की सुंदरता का इतना सुखद अनुभव मुझे इससे पूर्व कभी प्राप्त नहीं हुआ ।
नैनीताल में सड़क स्वच्छ थीं । यहाँ के घर साफ-सुथरे थे । अधिकांश घर पत्थरों के बने हुए थे । इसके अतिरिक्त पर्यटकों के ठहरने हेतु यहाँ कई छोटे-बड़े होटल थे । यहाँ एक ताल है जिसे नैनी ताल कहते हैं जिसकी प्रसिद्धि के कारण शहर का नाम भी नैनीताल पड़ा है। ताल का पानी ठण्ड के चलते जमा हुआ था जिस कारण पर्यटकों के हुजूम के हुजूम स्कीइंग करने के लिए मैदानी इलाकों से उमड़े पड़ रहे थे।
मैंने कैमरे से इस सुंदर छटा को अनेक बार कैद करने की कोशिश की । वे तस्वीरें आज भी मुझे उस आनंद का एहसास कराती हैं।
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