Hindi, asked by ayushi00013, 11 months ago

Essay on pashu pakshiyon ke prati hamara kartavya

Answers

Answered by aayushagrawal2004
16
चिकित्सा या उपचार शब्द सुनते ही हमारे मन में सबसे पहले जो छवि निर्मित होती है, वह है डॉक्टर, नर्स, हॉस्पिटल, कैप्सुल, इंजेक्शन और इसी प्रकार की अन्य वस्तुओं की। इन सब व्यक्तियों और वस्तुओं का चिकित्सा से गहरा संबंध है, लेकिन चिकित्सा या उपचार में और भी न जाने कितनी वस्तुओं और स्थितियों का महत्वपूर्ण स्थान है। दुनिया में न जाने कितनी अजीबो-गरीब चीजों और स्थितियों से उपचार में मदद ली जाती है। उपचार में पशु-पक्षियों का भी अपना विशेष स्थान है, क्योंकि पशु-पक्षी अपने पालने वाले को आनंद की अनुभूति प्रदान कर उसके उपचार में सहायक होते हैं। पशु-पक्षियों का साहचर्य प्राप्त करना हमारी सुदीर्घ परंपरा का अटूट हिस्सा है। इसे धर्म से भी संबंधित किया गया है। कुछ लोग सुबह-सुबह पक्षियों को दाना चुगाने जाते हैं। यह कार्य पक्षियों को दाना चुगाने के बहाने उनका साहचर्य प्राप्त करने का प्रयास ज्यादा है। पक्षी अत्यंत निकट आ जाते हैं और हथेली पर रखे दाने भी उठा लेते हैं। ये आनंददायक क्षण आरोग्य प्रदान करने वाले होते हैं। कई लोग चींटियों को आटा डालते हैं। मछलियों को भोजन खिलाते हैं। मंगलवार को बंदरों को फल, चने या चूरमा खिलाने जाते हैं। शनिवार को काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाते हैं। कई घरों में रोज सुबह गाय और कुत्ते की रोटी सबसे पहले निकाली जाती है। श्राद्ध के दिनों में ही सही, ब्राह्माणों के साथ-साथ कौओं को भी खीर-पूड़ी खिलाई जाती है। ये स्थिति जानवरों के प्रति हमारे प्रेम और आकर्षण को ही स्पष्ट करती है। जहाँ प्रेम है वहीं आनंद है और आनंद के क्षण उपचारक होते हैं। जानवरों या कुत्तों के पालने से व्यक्ति की दुश्चिंता का स्तर कम होता है। वह तनावमुक्त रहता है, अत: बीपी सामान्य रहता है। यदि बीपी बढ़ा हुआ हो तो वह सामान्य स्तर पर आ जाता है। एक्वेरियम में तैरती हुई कलाकृतियों जैसी रंग-बिरंगी मछलियों को देखने अथवा बाहर से छूने में, पक्षियों को देखने तथा उनकी चहचआहट सुनने में, डॉल्फिनेरियम में डॉल्फिन मछलियों को करतब करते देखने में, उनके साथ खेलने तथा उन्हें छूने में, अथवा अपने पालतू जानवर को सहलाने में अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति होती है, जिससे शरीर में लाभदायक हॉर्मोंस उत्सर्जित होते हैं जो हृदयाघात तथा कैंसर जैसी घातक बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं। पशु-पक्षी संवेदनशील भी कम नहीं होते। वे मनुष्य की अपेक्षा कहीं अधिक संवेदनशील होते हैं। मित्र-शत्रु को पहचानने की उनमें अद्भुत क्षमता होती है। मनुष्य जब उन्हें अपनाता है, उनकी देख-भाल करता है अथवा उन्हें कष्ट नहीं पहुँचाता है तो वे भी मनुष्य को स्नेह प्रदान करने में पीछे नहीं रहते और यह मनुष्य के आध्यात्मिक विकास में सबसे अधिक सहायक होता है। राबिया एक बार पक्षियों को दाना चुगा रही थीं। उनके चारों तरफ पक्षी ही पक्षी थे -कुछ उनकी हथेलियों पर रखे दाने चुग रहे थे, तो कुछ कंधों पर बैठे थे। इतने में एक और संत वहाँ आ पहुँचे। और उनके आते ही सारे पक्षी एकदम से उड़ गए। संत ने पक्षियों के इस प्रकार उड़कर चले जाने का कारण जानना चाहा तो राबिया ने कहा, पक्षी भी अपने मित्र और शत्रु को पहचानते हैं। मैं मांस नहीं खाती, इसलिए वे मेरे इतने करीब आ जाते हैं। और तुम मांस का सेवन करते हो, इसलिए तुम्हें देखते ही वे डर गए। पशु-पक्षियों की इसी संवेदनशीलता के कारण उनके सान्निध्य में मनुष्य के भावनात्मक संतुलन को दृढ़ता मिलती है। इससे मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और तनाव या भावनात्मक असंतुलन की अवस्था में शीघ्र संभल जाता है। और रोग होने पर शीघ्र रोगमुक्त भी हो जाता है।

hope it helps you...

please mark as brainliest.....
Answered by vishvatejbhange111
2

Answer:

Essay.

Explanation:

Tittle

Introduction

Main content

Last para.

Over

hope it's helpful

Similar questions