Hindi, asked by architasahu, 10 months ago

essay on politics in hindi​

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Answered by richi12345
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राजनीति पर निबंध

भारतीय राजनीति बहुत सारी पार्टियों की कार्यप्रणाली है। हमारे अलग-अलग सांस्कृतिक और सामाजिक ढाँचे हैं। धर्म अक्सर हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के ऊपर राज करते हैं। धर्मों को अफीम जनता स्वयं के अन्दर भरती है और वह धर्म के नाम पर कोई। भी कार्य करने के लिए तैयार हैं।

सात और सत्तर के दशक के बुद्धिमान राजनेता ने धर्म को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया और इस तरह धर्म का तूफान, राजनैतिक रूप में जोर-शोर से बदल गया और आज अलगाव है कि हमारा राजनीतिक तरीका विशेषकर धार्मिक, यांत्रिक प्रणाली में कार्य कर रहा है।

धर्म ने हमारी जिंदगी को राह दिखाना बंद कर दिया है (ताकि हम एक बेहतर इंसान, पड़ोसी या जाति बन सकें) और अब यह राजनैतिक कौशल का माध्यम बन गया है। ताकि हम संसद के सदस्य, संवैधानिक गुट के सदस्य, राजाओं को बनाने वाले और गरीब जनता के मसीहा बन जाएं ताकि हम अपने बुरे अंत तक पहुँच पाएं। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद जातिवाद के जोर से और बहुत बड़े पैमाने पर दंगों की वजह से गिराई गई।

इसका परिणाम यह हुआ कि हिन्दुओं ने उसे राम जन्मभूमि कहा जिससे मुसलमानों को दुख पहुँचा। मुसलमानों ने उसे ‘बाबरी मस्जिद’ कहा जिससे हिन्दुओं को दुःख पहुँचा।

इससे दंगे उत्पन्न हुए, जिसमें बहुत से लोगों की जानें गयीं। आगे चलकर गुजरात में मासूम ईसाइयों का संहार (जो दलित हिंदुओं से परिवर्तित हुए थे), फरवरी 1999 के दौरान ऑस्ट्रेलियन ईसाई ग्राह्म स्टीइन को अपने दो बेटों के साथ उड़ीसा में जिंदा जला दिया गया। जातिवाद की ऐसी स्थिति एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए सही नहीं है।

जनता इस तरह की धार्मिक लड़ाईयों को कम कर सकती है। यदि वह जातिवाद की चिंता कम करे और राजनेताओं की चालों को पहचान पाएं तो वह बहुत सारी जिंदगियों और माल के नुकसान को बचा सकते हैं।

उदाहरण के लिए एक गाँव का किसान जातिवाद के मामले से ज्यादा परेशान हो जाएगा एक शहरी व्यक्ति के मुकाबले, जिसके लिए यह देश के आम मसलें हैं। इसलिए हम इससे यह निष्कर्ष ले सकते हैं कि गांव के लोगों को जातिवाद और धार्मिक मद्दों पर आसानी से बहकाया जा सकता है।

शहर की जनता काफी व्यस्क होती है वह इन मुद्दों को अपने व्यवसाय, परिवारों और राष्ट्रीयता में भूल जाते हैं। इसलिए एन.जी.ओ.. राज्य, सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया को सबसे पहले गाँवों की जनसंख्या को शिक्षित करना चाहिए, यह एक कठिन प्रयास है जिसको राष्ट्रीय पैमाने पर चलाना होगा, ताकि भविष्य में होने वाले खून-खराबे को रोका जाए।

6 दिसंबर, 1998 का दिन भारत में शांतिपूर्ण तरीके से बीता। हमे भविष्य में होने वाली हिंसा को गाँवों के लोगों को शिक्षित करके रोक सकते हैं। राष्ट्रीय एकीकरण अभियान नाजुक मुद्दों को सुलझा सकते हैं।

जातिवाद को भारतीय राजनीतिक घटनाओं से अलग नहीं किया जा सूलता। भारतीय धर्म के | बिना राजनीति के लिए पूरे रूप से तैयार नहीं है। जबकि पचास सालों के काल में इस स्थिति | का बदलना संभव है क्योंकि जनता धीरे-धीरे साक्षर, जागरूक और समृद्ध होती जा रही है। जनता राष्ट्र को बनाती है न कि धार्मिक शक्तियाँ। एक समय ऐसा आएगा जब राष्ट्रीयता नया धर्म होगा (जैसा जापान में हुआ था) और धार्मिक प्रभाव हमारे घर के कमरे से बाहर नहीं फैल पाएगा। हम उस स्वर्णिम युग का इंतजार कर रहे हैं।

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