essay on pollution in hindi
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प्राकृतिक पर प्रभाव डालने वाले हानिकारक वायु प्रदूषण से हमारे युवा वर्ग को ज्यादा छाती पहुंच रही है, वे अक्सर घर से बहार रहते है। और जो वातावरण में विधमान कल-कारखानों की धुँआ,चौबीसो घंटे हवा में मिश्रित होती जाती है, वो ज़हरीली धुआयें साँस से अंडर चली आती है। जिससे हमे साँस लेने में तकलीफ उत्पन्न करते है। मुंबई के न्यूज़ से पता चला है की जब छत पर कपड़े डालते है और जब कपड़े लेकर आते है तो उन कपड़ों में काले – काले कर्ण जम जातें है, और ऐसे ही कर्ण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ो में चले जाते है। इस वायु प्रदूषण को सबसे ज्यादा हमारा युवा वर्ग सहता है क्युकी उसे अक्सर बहार ही रहना पढ़ता है।
मनुष्य ने न केवल जल को प्रदूषित किया है, बल्कि अपने विभिन्न क्रियाकलापों एवं तकनीकी वस्तुओं के प्रयोग द्वारा वायु को भी प्रदूषित किया है। वायुमंडल में सभी प्रकार की गैसों की मात्रा निश्चित है। प्रकृति में संतुलन रहने पर इन गैसों की मात्रा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता, परंतु किसी कारणवश यदि गैसों की मात्रा में परिवर्तन हो जाता है तो वायु प्रदूषण होता है।
अन्य प्रदूषणों की तुलना में वायु प्रदूषण का प्रभाव तत्काल दिखाई पड़ता है। वायु में यदि जहरीली गैस घुली हो तो वह तुरंत ही अपना प्रभाव दिखाती है और आस-पास के जीव-जंतुओं एवं मनुष्यों की जान ले लेती है। भोपाल गैस कांड इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। विभिन्न तकनीकों के विकास से यातायात के विभिन्न साधनों का भी विकास हुआ है।
एक ओर जहां यातायात के नवीन साधन आवागमन को सरल एवं सुगम बनाते हैं, वहीं दूसरी ओर ये पर्यावरण को प्रदूषित करने में अहम् भूमिका निभाते हैं। नगरों में प्रयोग किए जाने वाले यातायात के साधनों में पेट्रोल और डीजल ईंधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। पेट्रोल और डीजल के जलने से उत्पन्न धुआं वातावरण को प्रदूषित करता है।
औद्योगिकरण के युग में उद्योगों की भरमार है। विभिन्न छोटे-बड़े उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं के कारण वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैस मिल जाते हैं। ये गैस वर्षा के जल के साथ पृथ्वी पर पहुंचते हैं और गंधक का अम्ल बनाते हैं, जो पर्यावरण व उसके जीवधारियों के लिए हानिकारक होता है।
चमड़ा और साबुन बनाने वाले उद्योगों से निकलने वाली दुर्गंध-युक्त गैस पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं। सीमेंट, चूना, खनिज आदि उद्योगों में अत्यधिक मात्रा में धूल उड़ती है और वायु में मिल जाती है, जिससे वायु प्रदूषित होती है। धूल मिश्रित वायु में सांस लेने से प्रायः वहां काम करने एवं रहने वालों को रक्तचाप हृदय रोग, श्वास रोग, आंखों के रोग और टी.बी. जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होने से मनुष्य के रहने का स्थान दिन-ब-दिन छोटा पड़ता जा रहा है, इसलिए मनुष्य वनों की कटाई का अपने रहने के लिए आवास का निर्माण कर रहा है। शहरों में एलपीजी तथा किरोसीन का प्रयोग खाना बनाने के लिए किया जाता है, जो एक प्रकार की दुर्गंध वायु में फैलाते हैं।
कुछ लोग जलावन के लिए लकड़ी या कोयले का इस्तेमाल करते हैं, जिससे अत्यधिक धुआं निकलता है और वायु में मिल जाता है। स्थान एवं जलावन के लिए मनुष्य वनों की कटाई करते हैं। वनों की कटाई से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है और वायु प्रदूषित हो रही है। मनुष्य द्वारा विभिन्न प्रकार के तकनीकी उपकरणों का सहारा लेकर विस्फोट, गोलाबारी, युद्ध आदि किए जाते हैं।
विस्फोट होने से अत्यधिक मात्रा में धूलकण वायुमंडल में मिल जाते हैं और वायु को प्रदूषित करते हैं। बंदूक का प्रयोग एवं अत्यधिक गोलीबारी से बारूद की दुर्गंध वायुमंडल में फैलती है। संप्रति मनुष्य अपने आराम के लिए प्लास्टिक की वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं और टूटने या फटने की स्थिति में उन्हें इधर-उधर फेंक देता है। सफाई कर्मचारी प्रायः सभी प्रकार के कचरे के साथ प्लास्टिक को भी जला देते हैं, जिससे वायुमंडल में दुर्गंध फैलती है।
तकनीक संबंधी नवीन प्रयोग करने के क्रम में कई प्रकार के विस्फोट किए जाते हैं तथा गैसों का परीक्षण किया जाता है। इस दरम्यान कई प्रकार की गैस वायुमंडल में घुलकर उसे प्रदूषित करती है। हानिकारक गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन के कारण ‘एसिड रेन’ होती है, जो मानव के साथ-साथ अन्य जीवित प्राणियों तथा कृषि-संबंधी कार्यों के लिए घातक होती है।
दफ्तर एवं घरेलू उपयोग में लाए जाने वाले फ्रिज और एयरकंडीशनरों के कारण क्लोरो-फ्लोरो कार्बन का निर्माण होता है, जो सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी त्वचा की रक्षा करने वाली ओजोन परत को क्षति पहुंचाती है। विभिन्न उत्सवों के अवसर पर अत्यधिक पटाखेबाजी से भी वायु प्रदूषित होती है। वायु प्रदूषण से पर्यावरण अत्यधिक प्रभावित होता है।
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