essay on prodh shiksha in hindi
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प्रौढ़ शिक्षा
प्रौढ़ शिक्षा के तहत प्रौढ़ लोगों को, मतलब 21 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों को शिक्षा दी जाती है, ताकि उनके ज्ञान और कौशल में वृद्धि हो सके। प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य उन प्रौढ़ व्यक्तियों को शिक्षित करना है, जिन्होंने कुछ कारणवश यह अवसर खो दिये हैं और जो औपचारिक शिक्षा आयु को पार कर चुकें हैं। प्रौढ़ शिक्षा का प्रारंभ यह मानकर किया गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में बिना प्राथमिक शिक्षा के सुखी नहीं हो सकता। शिक्षा से मनुष्य के बुद्धि का विकास होता है।
बच्चों की शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा में काफी अंतर होता है। बच्चे पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं करते है, लेकिन प्रौढ़ व्यक्ति के कंधों पर कई जवाबदारियां हैं। प्रौढ़ शिक्षा दो प्रकार के लोगों के लिए हैं, एक जो बिलकुल ही अनपढ़ है, और दूसरे जो थोड़ा बहुत अक्षर ज्ञान रखते हैं। प्रौढ़ शिक्षा बड़ा ही पुण्य का कार्य माना जाता है, जिसमें विद्यार्थी भी अपना सक्रिय योगदान दे सकते हैं। यह एक ऐसा कार्य है, जिससे आप अपना ज्ञान दूसरे लोगों के साथ बांट सकते हैं, जिन्हें आसपास की दुनिया में क्या घटित हो रहा है, इस बात का ज्ञान नहीं होता है।
प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहली पंचवर्षीय योजना से अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख राष्ट्रीय साक्षरता मिशन है। इस योजना के अंतर्गत कई पुरुष और महिलाएं साक्षर बने हैं। भारत की स्वतंत्रता के बाद अनेक योजनाएं और अभियान सरकार द्वारा शुरू किए गए हैं, यह साक्षरता फैलाने की प्रक्रिया को त्वरित करने के लिए किए गए।
यह बड़े हर्ष का विषय है कि देश के विभिन्न भागों में प्रौढ़ शिक्षा को अधिकाधिक महत्व दिया जाने लगा है और नई-नई प्रौढ़ शिक्षा समितियाँ स्थापित हो रही हैं । वह दिन दूर नहीं जब भारत से निरक्षरता पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी।
Answer:
प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य उन प्रौढ व्यक्तियों को शैक्षिक विकल्प देना है, जिन्होंने यह अवसर गंवा दिया है और औपचारिक शिक्षा आयु को पार कर चुके हैं, लेकिन अब वे साक्षरता, आधारभूत शिक्षा, कौशल विकास (व्यावसायिक शिक्षा) और इसी तरह की अन्य शिक्षा सहित किसी तरह के ज्ञान की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहली पंचवर्षीय योजना से अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (एन एल एम) है, जिसे समयबद्ध तरीके से 15-36 वर्ष की आयु समूह में अशिक्षितों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने के लिए 1988 में शुरू किया गया था। 10वीं योजना अवधि के अंत तक एन एल एम ने 127.45 मिलियन व्यक्तियों को साक्षर किया, जिनमें से 60 प्रतिशत महिलाएं थीं, 23 प्रतिशत अनुसूचित जाति (अजा) और 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (अजजा) से संबंधित थे। समग्र साक्षरता अभियान के अंतर्गत 597 जिलों को शामिल किया गया था, जिनमें 502 साक्षरता पश्चात चरण और 328 सतत शिक्षा चरण में पहुंच गए हैं।
2001 की जनगणना में पुरूष साक्षरता 75.26 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जबकि महिला साक्षरता 53.67 प्रतिशत के अस्वीकार्य स्तर पर थी। 2001 की जनगणना ने यह भी खुलासा किया कि साक्षरता में लैंगिक और क्षेत्रीय भिन्नताएं मौजूद रही हैं। अत: प्रौढ़ शिक्षा और कौशल विकास मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने 11वीं योजना में दो स्कीमें नामत: साक्षर भारत और प्रौढ़ शिक्षा एवं कौशल विकास हेतु स्वैच्छिक एजेंसियों को सहायता की स्कीम शुरू की। साक्षर भारत, जो पूर्ववर्ती एन एल एम का नया रूपभेद है, निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किया : साक्षरता दर को 80 प्रतिशत तक बढ़ाना, लैंगिक अंतर को 10 प्रतिशत तक कम करना और महिलाओं, अजा, अजजा, अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित समूहों पर फोकस के साथ क्षेत्रीय और सामाजिक विषमताओं को कम करना। साक्षरता स्तर पर ध्यान दिए बिना वाम विंग अतिवाद प्रभावित जिले सहित उन सभी जिलों, जिनमें 2001 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता दर 50 प्रतिशत से कम थी, इस कार्यक्रम के अंतर्गत शामिल किए जा रहे हैं।