Essay on pt isa in hindi please in short in 100 to 200 words
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केरल के कोज्हिकोड़े, जिले के पय्योली गांव के एक व्यापारी के घर में 27 जून, साल 1964 को पीटी उषा ने जन्म लिया था। वे ईपीएम पैतल और टीवी लक्ष्मी की लाडली संतान हैं।
आपको बता दें कि उनके पिता एक कपड़े के व्यापारी हैं, जबकि मां घरेलू गृहिणी हैं। पीटी उषा का पूरा नाम पिलावुलकंडी थेक्केपारंबिल उषा है। उन्हें बचपन में स्वास्थ्य से जुड़ी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था, लेकिन फिर बाद में स्पोर्ट्स एक्टिविटीज के चलते उनकी हेल्थ में सुधार आता चला गया।
उनका बचपन से ही खेल-कूद में काफी रुझान रहा है। वहीं जब वे 7वीं क्लास में पढ़ती थी, तब उन्होंने एक टीचर के कहने पर क्लास की चैम्पियन छात्रा के साथ रेस लगाई थी और वे ये रेस जीत गईं थी। तभी से उनके मन में खेल के प्रति रुझान और अधिक बढ़ गया।
आपको बता दें कि साल 1976 में केरला सरकार ने महिलाओं के लिए एक स्पोर्ट सेंटर की शुरुआत की थी, उस वक्त पीटी उषा ने जिले का प्रतिनिधित्व करने का फैसला लिया था, वहीं जब वे 12 साल की थी, तब उन्होंने नेशनल स्पोर्ट्स गेम्स में चैंपियनशिप जीती थी और तभी से वे लाइमलाइट में आईं थी।
Explanation:
12 साल की उम्र में उन्होंने कन्नूर के ‘स्पोर्ट्स स्कूल’ में प्रवेश लिया वहा उन्हें सर्वाधिक सहयोग अपने प्रशिक्षक श्री. ओ. पी. नब्बियारका मिला।
1978 को केरल में हुए अंतरराज्य मुकाबले में उषा ने 3 स्वर्ण प्राप्त किये।
1982 के एशियाई खेलो में (Asian Games) में उसने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता था। कुवैत में भी इन्ही मुकाबलों में उसने दो स्वर्ण पदक जीते थे। राष्ट्रीय स्तर पर उषा ने कई बार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहराया।
1984 के लॉस एंजेलस ओलंपिक खेलो में भी चौथा स्थान प्राप्त किया। यह गौरव पाने वाली वे भारत की पहली धाविका है। इसमें वे 1/100 सेकिंड्स से पिछड गयी थी।
PT Usha ने 1983 से 1989 के बीच हुई एशियान ट्रैक एंड फिल्ड चैम्पियनशिप में 13 स्वर्णपदक, 3 रजत और एक कांस्य पदक प्राप्त किये।
जकार्ता की एशियन चैम्पियनशिप में भी उन्होंने स्वर्ण पदक लेकर अपने को बेजोड़ प्रमाणित कर दिया। ‘ट्रैक एंड फिल्ड मुकाबलों’ में लगातार 5 स्वर्ण पदक एवं एक रजत पदक जीतकर वह एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका बन गई है।