Essay on ramayan in Hindi under 200 words.
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जिस प्रकार वेदों और शास्त्रों ने मनुष्य को उसे कल्याण के लिए नाना प्रकार के मंत्र प्रदान किये उसी प्रकार रामायण ने मानव मात्र के लिए एक आदर्श आचार संहिता प्रदान की ।
जीवन को विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य को किस प्रकार आचरण करना चाहिए, रामायण इस के लिए आदर्श ग्रंथ है । सर्वप्रथम रामायण की रचना कविवर वाल्मीकि ने की थी । तदुपरांत राम के जीवन को आधार बनाकर अनेक राम-काव्य लिखे गये । हिन्दी में भी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ जैसे अद्वितीय महा-काव्य की रचना की ।
रामायण के चरित नायक भगवान राम है । जो पूर्ण ब्रह्म हैं । दशरथ और कौशल्या के पुत्र के रूप में उन्होंने धरती पर अवतार लिया । वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों ने ही उनकी जीवन-गाथा का अत्यंत पवित्र भाव से अंकन किया है ।
रामचरित-मानस में जीवन के विविध प्रसंगों के मध्य रामचन्द्र जी का जो रूप उभर कर आया है वह प्रात: स्मरणीय है । सभी पात्रों का चित्रण उच्चस्तरीय है । परिवार, समाज और राष्ट्र सभी स्तरों पर राम का चरित आदर्श की सीमा है ।
उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए राज वैभव का त्याग कर वन का मार्ग लिया । महाभारत में जहाँ राज्य के लिए दुर्योधन ने रक्त की नदियाँ बहा दीं, राम ने बिना किसी हिचक के पल भर में उसका परित्याग कर दिया ।
दूसरी ओर भरत ने उन की पादुकाएँ लेकर सेवक- भाव से तभी तक राज्य का भार धारण किया, जब तक वे वन से लौट नहीं आये । आज जब भाई, भाई का सिर काटने को तैयार है, रामायण के प्रचार और प्रसार की विशेष आवश्यकता है, जिससे लोग सम्पत्ति की निरर्थकता समझ सकें ।
सीता ने आदर्श पत्नी, लक्ष्मण ने आदर्श भाई, दशरथ ने आदर्श पिता का जो रूप सामने रखा वह सर्वत्र अनुकरणीय है । राम ने जटायु, शबरी, निषाद, सुग्रीव, हनुमान आदि को जो सम्मान दिया वह उन की उदार हृदयता का प्रमाण है ।
सबसे पहली व मौलिक रामायण की रचना आचार्य वाल्मीकि द्वारा की गई. जो सरल संस्कृत भाषा में छंद दोहा तथा चौपाई विधा में लिखी गई. इसके बाद के समय में कई काव्यकारों ने अपने अपने ढंग से राम की कथा को प्रस्तुत किया. किया. तुलसी दास जी ने भी बिरवे रामायण तथा रामचरितमानस की रचना की. रामायण को हिन्दुओं में श्रद्धेय तो माना गया हैं मगर वेदों की तुलना में इन्हें उनके बाद रखा गया हैं.
रामायण की कहानी के अनुसार, राजा दशरथ ने अपनी राजधानी के रूप में अयोध्या के साथ कोसल (उत्तरी अवध) पर शासन किया. उनकी तीन पत्नियाँ थीं, कौशल्या, प्रमुख रानी, सुमित्रा और कैकयी। उनके चार पुत्र थे- राम, (कौशल्या से ज्येष्ठ पुत्र), लक्ष्मण और शत्रुघ्न (सुमित्रा का जन्म) और भरत (सबसे छोटी रानी कैकेयी का पुत्र) थे.
जब राजा दशरथ वृद्ध हुए तो उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को अयोध्या का अगला शासक नियुक्त किया. मगर दूसरी तरफ रानी कैकेयी अपने बेटे भरत को राजसिंहासन पर बिठाना चाहती थी. अतः कई वर्ष पूर्व उन्होंने दशरथ की रक्षा में मांगे गये वचन दशरथ के सामने रखे, जिनमें पहला राम को 14 साल का वनवास तथा दूसरा भरत को राजपद देना.
अपने पिता को असमंजस की स्थिति में देखकर राम ने सीता व लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास को स्वीकार किया. पिता के वचन की पालना में वे जंगल में गये. भरत को जब यह पता चला तो वे बेहद दुखी हुए तथा राम के पीछे चले गये. अपनी माँ के कुटिल व्यवहार की क्षमा माँगकर उन्हें वापिस आने का निवेदन किया. मगर उन्होंने भरत को समझाया तथा वापिस अयोध्या जाकर शासन जारी रखने को कहा.
वनवास के दौरान जब राम नासिक के पास पंचवटी में जंगल में रह रहे थे, तब रावण की बहन ने उनसे मुलाकात की और लक्ष्मण से उनकी शादी करने के लिए कहा। लक्ष्मण ने न केवल उससे शादी करने से इनकार कर दिया बल्कि उसका अपमान भी किया। राक्षस राजा रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेते हुए सीता का लंका में अपहरण कर लिया।
राम और लक्ष्मण ने सीता को बचाने के लिए लंका की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में राम ने सुग्रीव को बाली से अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने में मदद की इस उपकार के लिए कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में सुग्रीव ने अपनी सक्षम सेना के सेनापतिहनुमान जी तथा स्वयं सेना लेकर भगवान राम के साथ चले.
सीता के लिए न्याय और अन्याय का युद्ध राम व रावण के मध्य महायुद्ध होता हैं. इस युद्ध में रावण का भाई विभीषण भी राम का साथ देता हैं. युद्ध में अन्यायी रावण का समूल नाश हो जाता हैं. इस तरह उनका चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण होते ही वे सीता के संग अयोध्या आ जाते हैं.