Hindi, asked by Priyapanchal, 1 year ago

essay on rashtriye hindi bhasha with sanket bindu​

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Answered by dub3000
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Explanation:

plasssssessw tell limit of words


dub3000: ok
dub3000: हिंदी वह भाषा जो किसी भी देश के अधिकतर निवासियों द्वारा बोली एवं समझी जाती है, वह राष्ट्र भाषा कहलाती है । प्रत्येक राष्ट्र की कोई न कोई राष्ट्रभाषा अवश्य होती है । हमारे देश भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है जो कि भारत के अधिकतर राज्यों के लोगों द्वारा बोली एवं समझी जाती है । देश की राष्ट्र भाषा का सम्मान करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है ।
Priyapanchal: these are not 300 words
dub3000: भारत में संवैधानिक रूप से बाईस भाषाओं को मान्यता दी गई है परन्तु हिंदी ऐसी भाषा है जो संपूर्ण देश को आपस में जोड़ने में सहयोग देती है । स्वतंत्रता से पूर्व भी भारतीयों को हिंदी ने जोड़े रखा । सभी स्वतंत्रता सेनानियों जैसे महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, लाला लाजपत राय, जवाहरलाल नेहरू आदि ने हिंदी को सशक्त भाषा के रूप में स्वीकार किया ।
dub3000: भारतेंदु हरिशचंद्र द्वारा कही गई निम्नलिखित पंक्तियां हमारे मन में हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति सम्मान जगाती हैं । निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् संपूर्ण भारत को एक सूत्र में जोड़े रखने के .लिए एक सशक्त भाषा की आवश्यकता महसूस हुई ।
dub3000: अंततः 1 सितम्बर, 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया । इसलिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया. जाता है । भारतवर्ष में हिंदी से संबंधित अनेक- प्रकार की प्रतियोगिताएं, कवि सम्मेलन करवाए जाते हैं । आजादी के बाद भी भारत देश में अंग्रेजी फलती फूलती रही परन्तु देशवासियों को यह मंजूर न था । हिंदी को जो अधिकार मिलना चाहिए था वह उसकी अधिकारिणी नहीं बन पायी । आज भी अंग्रेजी बोलने वाले को ही मान्यता दी जाती है ।
dub3000: हिंदी बोलते समय लज्जा का अनुभव करते हैं । दूसरों की भाषा अंग्रेजी बोलते समय गर्व महसूस करते हैं । आज हिंदी जिस हालत में है उसके जिम्मेदार भी. हम है । सरकार, नेतागण एवं भारतवासी सभी इसके जिम्मेदार है. । दूसरे देशों के नेता कभी भी अपनी राष्ट्रभाषा को छोड्‌कर किसी अन्य भाषा में भाषण नहीं देते और उनकी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं । अपनी राष्ट्रभाषा जो भी है उस पर गर्व महसूस करते हैं ।
dub3000: Now it's 300
dub3000: now what
dub3000: like the answer
Answered by virendrasanjay975
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Answer:

Explanation:

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबन्ध | Essay on Hindi : Our National Language in Hindi!

1. भूमिका:

राष्ट्रभाषा का अर्थ है राष्ट्र की भाषा (Language of the nation) । अर्थात् ऐसी भाषा, जिसका प्रयोग देश की हर भाषा के लोग आसानी से कर सकें, बोल सकें और लिख सकें । हमारे देश की ऐसी भाषा है हिन्दी । आजादी के पहले अंग्रेजी सरकार ने अंग्रेज के माध्यम से सारा काम चलाया किन्तु अपने देश में सबके लिए एक भाषा का होना आवश्यक है, ऐसी भाषा जो अपने देश की हो । वह भाषा केवल हिन्दी ही है ।

2. विशेषताए:

हिन्दी को संस्कृत की बड़ी बेटी कहते हैं । हिन्दी का प्रमुख गुण यह है कि यह बोलने, पढ़ने, लिखने में अत्यंत सरल है । हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान जॉर्ज ग्रियर्सन ने कहा है कि हिन्दी व्याकरण के मोटे नियम केवल एक पोस्टकार्ड पर लिखे जा सकते हैं ।

संसार के किसी भी देश का व्यक्ति कुछ ही समय के प्रयत्न से हिन्दी बोलना और लिखना सीख सकता है । इसकी दूसरी विशेषता है कि यह भाषा लिपि (Script) के अनुसार चलती है । इसमें जैसा लिखा जाता है, वैसा ही बोला जाता है ।

इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि संसार की लगभग सभी भाषाओं के शब्द इसमें घुलमिल सकते हैं । कुर्सी, आलमारी, कमीज, बटन, स्टेशन, पेंसिल, बेंच आदि अनगिनत शब्द हैं जो विदेशी भाषाओं से आकर इसके अपने शब्द बन गए हैं ।

हिन्दी संसार के अनेक विश्वविद्यालयों (Univercities) में पढ़ाई जाती है और इसका साहित्य (Literature) भी विशाल है । इसके अलावा, हिन्दी ने देश में एकता लाने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक, भारत के अधिकतर विद्वानों ने भारत की एकता और अखंडता (Unity and Integrity) के लिए हिन्दी का समर्थन किया है ।

3. बाधाएँ:

इतने अधिक गुणों से भरपूर होकर भी हिन्दी आज अंग्रेजी के पीछे क्यों चल रही है ? इसका सबसे बड़ा कारण है ऊँचे पदों पर बैठे व्यक्ति जो अंग्रेजी के पुजारी हैं वे सोचते हैं कि अंग्रेजी न रही तो देश पिछड़ जाएगा ।

ADVERTISEMENTS:

अंग्रेजी देश की अधिकतर जनता के लिए कठिन है, इसलिए वे जनता पर इसके माध्यम से अपना रौब रख सकते हैं । दूसरा कारण है- क्षेत्रीय भाषाओं (Regional Languages) के मन में बैठा भय । उन्हें लगता है कि यदि हिन्दी अधिक बड़ी तो क्षेत्रीय भाषाएँ पीछे रह जाएँगी ।

वास्तव में ये दोनों विचार गलत हैं । ऊँचे पदों पर बैठे अधिकारी हिन्दी के माध्यम से देश की अधिक सेवा कर सकते हैं और जनता का प्रेम पा सकते हैं । आज अंग्रेजी क्षेत्रीय भाषाओं को पीछे धकेल (Push) रही है जबकि हिन्दी की प्रकृति (Nature) किसी को पीछे करने की नहीं, बल्कि मेलजोल की है । यदि हिन्दी का विकास होता है, तो क्षेत्रीय भाषाओं का भी विकास होगा ।

4. उपसंहार:

भारत की भूमि पर जन्म लेने के नाते हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम भारत की भाषाओं के विकास पर बल दें और हिन्दी का विकास करके सभी भाषाओं को जोड़ने का प्रयास करें । तभी हिन्दी सचमुच राष्ट्रभाषा बन पाएगी ।

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