Hindi, asked by rishilaugh, 1 year ago

Essay on स्कूल मे नैतिक शिक्षा का महत्व | School mein naetik Shiksha Ka Mahatav | Importance of Moral Education in School

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Answered by TheBrain
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स्कूल मे नैतिक शिक्षा का महत्व | School mein naetik  Shiksha Ka Mahatv | Importance of Moral Education in School

नैतिक शिक्षा वह शिक्षा है जो हमें करणीय कर्म और निषिद्ध व्यव्हार के विषय में शिक्षित करती है| ये नीति शब्द से बना है| पुरातन काल में महात्मा विदुर, चाणक्य, भर्तृहरि सरीखे नीतिज्ञ हुए है जिन्होंने सबका मार्ग प्रशस्त किया है| नैतिक शिक्षा बाल्यकाल से ही दी जानी चाहिए ताकि बच्चों का आधार मजबूत बन सके| बच्चों की प्रथम पाठशाला घर है|वर्तमान समय की विडंबना है कि संयुक्त परिवार खत्म हो रहे है और माता-पिता अर्थ के अर्जन में इतने व्यस्त है कि वे बच्चे को होमवर्क करवा लेने में ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते है| अब नैतिक शिक्षा देने का दायित्व स्कूलों पर आ जाता है|

पर ये चिंता का विषय है कि स्कूल में ये पाठ्यक्रम में शामिल नहीं है| नैतिकता के अभाव में आज बाल अपचारियों की संख्या दिनों-दिन बढती जा रही है| किशोर अवस्था में यौन शिक्षा को अनिवार्य विषय बनाने पर तो अक्सर बहस हो जाती है पर कोई नैतिक शिक्षा को विषय रूप में पढ़ाने की वकालत नहीं करता है| आजकल युवा अपनी भौतिक आवश्यकताएं पूरी करने के लिए चोरी करने में नहीं हिचकिचाते| विवाह नामक संस्था से युवाओं का विश्वास उठ  चला है| किशोर और युवा मनमाना जीवन जीने की स्वछंदता चाहते है| इस भावना को जगाने में उनका मार्गदर्शक कौन है?

निसंदेह टी वी इंटरनेट और पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण| ये विडंबना है कि पश्चिम के लोग भारतभूमि पर शांति व नैतिकता का आभास पाने आते है और हम अपनी संस्कृति का अवमूल्यन कर रहे है| अगर नैतिक शिक्षा एक विषय के रूप में स्कूलों में पढाये जाये तो विद्यार्थियों में शैशवावस्था से ही सद्गुणों का संचार हो जायेगा| झूठ न बोलना, चोरी न करना, अन्यों की सहायता करना, बड़ो का सम्मान करना, प्राणिमात्र पर दया करना, पकृति व पक्षियों की देखभाल करना जैसे अनगिनत छोटे-छोटे गुण उनमें विकसित हो जायेंगे| कच्ची मिट्टी सुंदर आकर ले लेगी जो आगे चलकर समाज का उपयोगी व हितकारी अंग बनेंगे| नैतिक शिक्षा आत्मविकास में सहायता करती है| ये जीवन में संतुलन लती है| यही संतुलन व्यक्ति के व्यक्तित्व को सार्थक बनाता है| अत: शिक्षा विभाग को इस विषय को हेय न मानकर वर्तमान समय की महती आवश्यकता मानते हुए एक विषय के रूप में पढाना चाहिए| तभी संभव है कि किशोर पीढ़ी पतन के गर्त में न जाये|



Answered by Manishkumary975
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मनुष्य जन्म से ही सुख और शांति के लिए प्रयत्न करता है। जब से सृष्टि का आरंभ हुआ है वो तभी से ही अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसे पूरी तरह शांति सिर्फ शिक्षा से ही मिली है। शिक्षा के अस्त्र को अमोघ माना जाता है। शिक्षा से ही मनुष्य की सामाजिक और नैतिक उन्नति हुई थी और वह आगे बढने लगा था।

मनुष्य को यह अनुभव होने लगा कि वह पशुतुल्य है। शिक्षा ही मनुष्य को उसके कर्तव्यों के बारे में समझाती है और उसे सच्चे अर्थों में इंसान बनाती है। उसे खुद का और समाज का विकास करने का भी अवसर देती है।

अंग्रेजी शिक्षण पद्धति का प्रारंभ : मनुष्य की सभी शक्तियों के सर्वतोन्मुखी विकास को ही शिक्षा कहते हैं। शिक्षा से मानवीय गरिमा और व्यक्तित्व का विकास होता है। नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है कि बच्चे की शारीरिक, मानसिक और नैतिक शक्तियों का सर्वतोन्मुखी विकास हो। यह दुःख की बात है कि शिक्षा भारत में अंग्रेजी की विरासत है।

अंग्रेज भारत को अपना उपनिवेश मानते थे। अंग्रेजों ने भारतीयों को क्लर्क और मुंशी बनाने की चाल चली। उन्हें यह विश्वास था कि इस शिक्षा योजना से एक ऐसा शिक्षित वर्ग बनेगा जिसका रक्त और रंग तो भारतीय होगा लेकिन विचार, बोली और दिमाग अंग्रेजी होगा।

इस शिक्षा प्रणाली से भारतीय केवल बाबू ही बनकर रह गये। अंग्रेजों ने भारतीय लोगों को भारतीय संस्कृति से तो दूर ही रखा लेकिन अंग्रेजी संस्कृति को उनके अंदर गहराई से डाल दिया। यह दुःख की बात है की स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भी अब तक अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व बना हुआ है।

प्राचीन शिक्षा पद्धति : प्राचीन काल में भारत को संसार का गुरु कहा जाता था। भारत को प्राचीन समय में सोने की चिड़िया कहा जाता था। प्राचीन समय में ऋषियों और विचारकों ने यह घोषणा की थी कि शिक्षा मनुष्य वृत्तियों के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। शिक्षा से मानव की बुद्धि परिष्कृत और परिमार्जित होती है।

शिक्षा से मनुष्य में सत्य और असत्य का विवेक जागता है। भारतीय शिक्षा का उद्देश्य मानव को पूर्ण ज्ञान करवाना, उसे ज्ञान के प्रकाश की ओर आगे करना और उसमें संस्कारों को जगाना होता है। प्राचीन शिक्षा पद्धति में नैतिक शिक्षा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है।

पुराने समय में यह शिक्षा नगरों से दूर जंगलों में ऋषियों और मुनियों के आश्रमों में दी जाती थी। उस समय छात्र पूरे पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और अपने गुरु के चरणों की सेवा करते हुए विद्या का अध्ययन करते थे।

इन आश्रमों में छात्रों की सर्वंगीण उन्नति पर ध्यान दिया जाता था। उसे अपनी बहुमुखी प्रतिभा में विकास करने का अवसर मिलता था। विद्यार्थी चिकित्सा, नीति, युद्ध कला, वेद सभी विषयों सम्यक होकर ही घर को लौटता था।

नैतिक शिक्षा का अर्थ : नैतिक शब्द नीति में इक प्रत्यय के जुड़ने से बना है। नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है- नीति संबंधित शिक्षा। नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है कि विद्यार्थियों को नैतिकता, सत्यभाषण, सहनशीलता, विनम्रता, प्रमाणिकता सभी गुणों को प्रदान करना।

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