Hindi, asked by BrainlyHelper, 1 year ago

Essay on सत्संगति | Satsangati | Good Company

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Answered by TheBrain
451
सत्संगति मानव के अभ्युदय में सर्वाधिक सहायक है| सत्संगति अर्थात अच्छे लोगों की संगत| जैसी संगति  में हम रहते है वैसे ही गुण-दोष हमारा व्यक्तित्व निर्धारित करते है| अगर संगति सज्जनों की होगी तो हमारे भीतर भी सद्गुण होंगे| सद्गुणों के विकास से ही यश की प्राप्ति होती है| अच्छी संगति से बुद्धि का समुचित विकास होता है| अगर कोई व्यक्ति अच्छी संगति में बैठता है तो उसके लिए जीवन में कोई भी लक्ष्य प्राप्त करना दुर्लभ नहीं है|


एक बड़ा सामान्य सा उदाहरण है कि ज्यादातर किशोर व युवा धूम्रपान या लतों के आदी मित्रों के आग्रह पर होते है| अगर वे ऐसी संगति से दूर रहे होते जो उन्हें दोस्ती के नाम पर कुछ कश लेनेका दबाव बनाते है तो शायद वे कभी नशा करना नहीं सीखते| सत्संगति जरूरी नहीं कि इंसानों की ही हो| पुस्तकें भी श्रेष्ठ मार्गदर्शक होती है| उतम कोटि की पुस्तकें मानव को सही गलत की पहचान करवाती है| हमारा अवचेतन मन सब ओर से सुझाव स्वीकार करके उसे हमारे मस्तिष्क में स्थापित कर देता है| जैसे हमारे विचार होंगे वैसे ही हमारे कर्म होंगे और वैसा ही हमारा भाग्य होगा| अत: हमें सदैव सत्संगति में रहना चाहिए ताकि हम शुद्ध विचारों का श्रवण व पालन करें| सत्य का अनुसरण करें| सही व ठोस निर्णय लें| विद्यार्थी जीवन की अवस्था बहुत संवेदनशील अवस्था है| इस दौर में एक किशोर निर्णय नहीं कर पता कि अमुक संगति उचित है या अनुचित| हालाँकि माता-पिता को अपने बच्चों के मित्र चुनने में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए परन्तु उन्हें सही व गलत की पहचान करना सिखाना चाहिए| महाभारत काल में कर्ण जैसा महारथी भी दुर्योधन की संगति करके पाप के गर्त में चला गया था वहीं अर्जुन ने अपना मार्गदर्शक कृष्ण को बनाया तभी उन्होंने अर्जुन के विषाद को दूर करके उसे अपना कर्तव्य करने के लिए निर्दिष्ट किया| एक कहावत है कि किसी व्यक्ति का चरित्र जांचना है तो उसकी संगति और उसका पुस्तकालय देखो| ये वर्तमान समय की घोर विडंबना है कि हम श्रेष्ठ पुस्तकों को नकार रहे है| आज टी वी और इंटरनेट हमारे संगी है| वे हमें पथ दिखाते है| वहां प्रस्तुत निषिद्ध व नकारात्मक सामग्री हमारी किशोर पीढी को भ्रष्ट कर रही है| अत: ये अभिभावकों का परम कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को सत्संगति के महत्व से अवगत कराये और उन्हें अच्छी संगत रखने हेतु प्रोत्साहित करे| साथ ही उनकी मनोस्थिति व आदतें समय-समय पर जांचते रहे| निष्कर्ष रूप में सत्संगति गुणों का संचार करती है| गलत पथ से दूर करती है| समाज में कीर्ति बढाती है और मानसिक आनंद बढ़ाती है|

Answered by royalboyayush
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Answer:

मानव का समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी और कपड़ा । वह शैशवकाल से ही पेट भरने का प्रयत्न करता है ।

तब से ही उसे अच्छी संगति मिलनी चाहिए जिससे वह अपनी अवस्थानुसार अच्छे कार्यों को कर सके और बुरी संगति के भयानक पंजों से अपनी रक्षा कर सके । यदि वह ऐसा न कर सका तो शीघ्र ही बुरा बन जाता है ।

बुरे व्यक्ति का समाज में बिल्कुल भी आदर नहीं होता है । उसका थोड़ा-सा भी बुरा कर्म उसके जीवन के लिए त्रिशूल बन जाता है । फिर वह गले-सड़े हुए फल के समान ही अपने जीवन का अन्त कर डालता है । अत: प्रत्येक मानव को कुसंगति से बचना चाहिए ।

उसे अच्छाई, बुराई, धर्म – अधर्म, ऊँच-नीच, सत्य- असत्य और पाप-पुण्यों में से ऐसे शस्त्र को पकड़ना चाहिए जिसके बल पर वह अपना जीवन सार्थक बना सके ।

इस निश्चय के उपरान्त उसे अपने मार्ग पर अविचल गति से अग्रसर होना चाहिए । सत्संगति ही उसके सच्चे मार्ग को प्रदर्शित करती है । उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है । इस मार्ग पर चलने वाले के सामने धर्म रोड़ा बनकर नहीं आता है । अत: उसे किसी प्रकार के प्रलोभनों से विचलित नहीं होना चाहिए ।

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