Hindi, asked by mufiahmotors, 1 month ago

Essay on सत्संगति | Satsangati | Good Company​

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Answered by misscartoon121416
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Answered by Jiyaa021
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Essay on सत्संगति

मनुष्य के जीवन में जितना महत्व शिक्षा का है उतना ही महत्व सत्संगति का भी है। जिस प्रकार शिक्षा मनुष्य का जीवन अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है उसी प्रकार सत्संगति भी मनुष्य को अंधकार में जाने से रोकती है। सत्संगति ही मनुष्य को उसके जीवन में सही मार्ग पर चलाती है। सत्संगति के बिना व्यक्ति पथभ्रष्ट हो जाता है और सदैव ही गलत मार्ग का चुनाव करता है।

 

यदि किसी व्यक्ति के पास शिक्षा है परंतु सत्संगति नहीं है तो वह व्यक्ति भी अंधकार की ओर ही जाता है। सत्संगति के अभाव में अपने जीवन को बर्बाद कर लेता है। उस समय उसकी शिक्षा किसी काम की नहीं रहती। वह व्यक्ति दो पैरों वाले पशु से अधिक कुछ नहीं रहता।

सत्संगति कोई वस्तु नहीं है जिसे खरीदा जा सके। यह तो अच्छे व सदाचारी व्यक्तियों के साथ रहने से ही प्राप्त होती है। सत्संगति का चुनाव किसी व्यक्ति को उसके बचपन में ही करना पड़ता है। बचपन में सत्संगति के चुनाव से निसंदेह कोई भी व्यक्ति अच्छा ही बनेगा। यदि कोई व्यक्ति अपनी बाल्यावस्था में कुसंगति का चुनाव करता है तो वह व्यक्ति जीवन के प्रत्येक चरण में कुसंगति का ही चुनाव करेगा। कुसंगति का चुनाव करने का यह क्रम तब तक नहीं रुकता है जब तक कि व्यक्ति स्वयं में परिवर्तन लाने की ना सोचे।

सत्संगति व्यक्ति की नैतिकता को भी बढ़ाती है। सत्संगति होने के कारण व्यक्ति विपत्ति पड़ने पर नैतिक निर्णय लेने में सक्षम होता है। वह सज्जन व्यक्तियों के संपर्क में होने के कारण उनसे निर्णय लेने में सहायता मांग सकता है। सज्जन व्यक्ति हमेशा उसे सही मार्ग का चुनाव करने में सहायता प्रदान करते हैं। वहीं दूसरी ओर कुसंगति व्यक्ति के नैतिकता के स्तर को गिरा देती है। व्यक्ति जब भी दुर्जन व्यक्तियों से सलाह मांगेगा तो उसे वे सदा गलत मार्ग का पथ ही दिखाएंगे।

समाज में अपराध कुसंगति के कारण ही होते हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति कुसंगति की ओर अग्रसर होता है वैसे वैसे वह अपने नैतिक ज्ञान को खोता जाता है। नैतिक ज्ञान की अधिक हानि होने पर एक चरण ऐसा भी आता है जब व्यक्ति अपराध के संसार में अपने कदम रखता है और अपराधी बन जाता है। उसे सज्जन और दुर्जन व्यक्तियों में कोई अंतर नहीं दिखाई देता है।  

भारत में प्राचीन काल से ही बच्चों को सदाचारी बनाने के लिए गुरुकुल में भेज दिया जाता था। बच्चे बाल्यावस्था से ही गुरुकुल में सज्जन व्यक्तियों के प्रभाव में रहते थे जिसके फलस्वरुप भविष्य में वे सदा सही मार्ग का चुनाव करते थे। उन पर कभी भी किसी भी प्रकार की कुसंगति का प्रभाव नहीं पड़ता था।

सत्संगति किसी भी व्यक्ति के जीवन के उद्धार के लिए अत्यंत आवश्यक है। सत्संगति के बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का उद्धार नहीं कर सकता। सत्संगति का सीधा संबंध नैतिकता से भी है। सत्संगति से ही व्यक्ति में नैतिकता आती है। सत्संगति का मार्ग व्यक्ति को समाज में मान सम्मान भी दिलाता है। सत्संगति के मार्ग का चुनाव करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म होना चाहिए ना कि उसकी अपनी इच्छा।

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