essay on soil erosion in odia
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अपरदन चक्र बहिर्जात व अंतर्जात बलों का सम्मिलित परिणाम होता है । अंतर्जात बल (पटल विरूपणी बल, ज्वालामुखी क्रिया, भूकम्प आदि) धरातल पर विषमताओं का सृजन करते हैं । धरातलीय उत्थान द्वारा पर्वत, पठार, पहाड़ियाँ एवं धरातलीय अवतलन द्वारा झील, खाइयाँ, गर्त आदि का निर्माण होता है ।
जैसे ही धरातल में उत्थान द्वारा विषमताओं का सृजन होता है, बहिर्जात बल समतल स्थापक बल के रूप में कार्य करना प्रारंभ कर देते हैं तथा इनसे विशिष्ट स्थलाकृतियों का निर्माण होता है ।
सर्वप्रथम स्कॉटिश भूगर्भशास्त्री जेम्स हटन ने भू-आकृतियों के संदर्भ में ‘एकरूपतावाद’ की अवधारणा दी तथा बताया कि ‘वर्तमान भूत की कुंजी है’ । उन्होंने कहा कि ‘न आदि का पता है और न अंत का भविष्य’ ।
उनकी एकरूपतावादी संकल्पना को उनके शिष्यों जॉन प्लेफेयर व सर चार्ल्स ल्येल ने आगे बढ़ाया । स.रा. अमेरिकी भूगोलवेत्ता विलियम मोरिस डेविस के अनुसार किसी भी स्थलाकृति के निर्माण व विकास का एक ऐतिहासिक क्रम होता है, जिसके अंतर्गत उसे तरुण (Young), प्रौढ़ (Mature) एवं जीर्ण (Old) अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है ।
उनकी इस विचारधारा पर डार्विन के ‘जैविक विकासवादी अवधारणा’ का प्रभाव है । डेविस ने बताया कि स्थलाकृतियाँ चट्टानों की संरचना, अपरदन के प्रक्रमों व समय की अवधि या विभिन्न अवस्थाओं का परिणाम होती हैं । इसे ‘डेविस का त्रिकट’ (Trio of Davis) भी कहा जाता है ।
डेविस के अनुसार अपरदन चक्र समय की वह अवधि है, जिसमें एक उत्थित भूखंड अपरदन की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए अंततः एक समप्राय मैदान (Peneplain) में बदल जाता है तथा इसमें कहीं-कहीं थोड़े उठे हुए भाग मोनाडनॉक के रूप में शेष बचे रहते हैं ।
जर्मनी के वाल्टर पेंक ने अपने भू-आकृतिक चक्र डेविस के त्वरित व अल्पावधि उत्थान की अवधारणा की आलोचना की है तथा उनकी अवस्था संकल्पना की आलोचना करते हुए, उन्होंने बताया है कि स्थलाकृतियाँ उत्थान एवं निम्नीकरण की दर तथा दोनों की प्रावस्थाओं के परस्पर सम्बंधों का प्रतिफल होती है ।
जैसे ही धरातल में उत्थान द्वारा विषमताओं का सृजन होता है, बहिर्जात बल समतल स्थापक बल के रूप में कार्य करना प्रारंभ कर देते हैं तथा इनसे विशिष्ट स्थलाकृतियों का निर्माण होता है ।
सर्वप्रथम स्कॉटिश भूगर्भशास्त्री जेम्स हटन ने भू-आकृतियों के संदर्भ में ‘एकरूपतावाद’ की अवधारणा दी तथा बताया कि ‘वर्तमान भूत की कुंजी है’ । उन्होंने कहा कि ‘न आदि का पता है और न अंत का भविष्य’ ।
उनकी एकरूपतावादी संकल्पना को उनके शिष्यों जॉन प्लेफेयर व सर चार्ल्स ल्येल ने आगे बढ़ाया । स.रा. अमेरिकी भूगोलवेत्ता विलियम मोरिस डेविस के अनुसार किसी भी स्थलाकृति के निर्माण व विकास का एक ऐतिहासिक क्रम होता है, जिसके अंतर्गत उसे तरुण (Young), प्रौढ़ (Mature) एवं जीर्ण (Old) अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है ।
उनकी इस विचारधारा पर डार्विन के ‘जैविक विकासवादी अवधारणा’ का प्रभाव है । डेविस ने बताया कि स्थलाकृतियाँ चट्टानों की संरचना, अपरदन के प्रक्रमों व समय की अवधि या विभिन्न अवस्थाओं का परिणाम होती हैं । इसे ‘डेविस का त्रिकट’ (Trio of Davis) भी कहा जाता है ।
डेविस के अनुसार अपरदन चक्र समय की वह अवधि है, जिसमें एक उत्थित भूखंड अपरदन की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए अंततः एक समप्राय मैदान (Peneplain) में बदल जाता है तथा इसमें कहीं-कहीं थोड़े उठे हुए भाग मोनाडनॉक के रूप में शेष बचे रहते हैं ।
जर्मनी के वाल्टर पेंक ने अपने भू-आकृतिक चक्र डेविस के त्वरित व अल्पावधि उत्थान की अवधारणा की आलोचना की है तथा उनकी अवस्था संकल्पना की आलोचना करते हुए, उन्होंने बताया है कि स्थलाकृतियाँ उत्थान एवं निम्नीकरण की दर तथा दोनों की प्रावस्थाओं के परस्पर सम्बंधों का प्रतिफल होती है ।
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the removal of fertile top soil by air or wind ,natural disasters is called soil erosion soil conservation means protect the soil .grow more and more trees
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