essay on students life and fashion in Hindi
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विद्यार्थी शब्द का जन्म विद्या से हुआ है। विद्या हर मनुष्य के लिए ऐसी अमूल्य धरोहर है, जो जीवन मार्ग पर हर कदम में उसके काम आती है। यह धन किसी के द्वारा न चुराया जा सकता है न बर्बाद किया जा सकता है। विद्या को प्राप्त करने वाला व्यक्ति विद्यार्थी कहलाता है। जहाँ एक ओर सभी शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थी कहलाते हैं। परन्तु आदर्श विद्यार्थी वही कहलाता है जिसका उद्देश्य शिक्षा ग्रहण करना व अत्यधिक ज्ञान प्राप्त करना होता है। आज के समय में फैशन का बोलबाला है। जहाँ भी देख लीजिए लोग फैशन में सराबोर होते दिखाई दे रहे हैं। यह फैशन आज के विद्यार्थियों के सर चढ़कर बोल रहा है। इस फैशन से विद्यार्थी दिशाहीन हो रहे हैं। वे अपना अधिकतर समय फैशन से युक्त कार्यक्रम और पत्र-पत्रिका पढ़ने में लगाते हैं। विद्यार्थियों में बढ़ रहा फैशन का चलन उनकी शिक्षा के लिए उचित नहीं है। अपने प्रति मनुष्य को सचेत होना चाहिए परन्तु ऐसा न हो कि स्वयं को बनाने में इतना व्यस्त हो जाओ कि शिक्षा को भूल जाए, तो यह श्रेयकर नहीं है।
विद्यार्थी शब्द का उच्चारण करते हुए हमें ऐसे व्यक्ति का स्मरण हो आता है जिसका उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करना होता है। वह विद्या-अनुरागी, परिश्रमी, सुशील, व्यक्ति होता है। वह अपनी पाठशाला को उसी प्रकार पूजता है जैसे भगवान को पूजा जाता है। समय में उठकर नियमित पाठशाला जाता है। अध्यापकों द्वारा कही गई हर बात व सीख को ध्यानपूर्वक सुनता व समझता हो। मन लगाकर पढ़ता हो। पाठशाला से घर पहुँचकर पाठों को पुन: पढ़ता हो। अपने समय को बर्बाद न करके विद्या अध्ययन में समय व्यतीत करता हो। उसके लिए विद्या ग्रहण करना मजबूरी न हो, वह उसे रुचि लेकर पूरी तन्मयता से पठन व पाठन करता हो। परन्तु फैशन इस परिभाषा को ही बदलकर रख देता है। वह फैशन को इतना महत्व देता है कि बाकी अन्य कार्यों के लिए उसे समय ही नहीं मिलता है। विद्यार्थी को चाहिए कि फैशन के स्थान पर अपनी शिक्षा को महत्व दे। फैशन करने के लिए तो पूरी उम्र पड़ी होती है। परन्तु शिक्षा के लिए सही उम्र विद्यार्थीकाल है।
विद्यार्थी शब्द का उच्चारण करते हुए हमें ऐसे व्यक्ति का स्मरण हो आता है जिसका उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करना होता है। वह विद्या-अनुरागी, परिश्रमी, सुशील, व्यक्ति होता है। वह अपनी पाठशाला को उसी प्रकार पूजता है जैसे भगवान को पूजा जाता है। समय में उठकर नियमित पाठशाला जाता है। अध्यापकों द्वारा कही गई हर बात व सीख को ध्यानपूर्वक सुनता व समझता हो। मन लगाकर पढ़ता हो। पाठशाला से घर पहुँचकर पाठों को पुन: पढ़ता हो। अपने समय को बर्बाद न करके विद्या अध्ययन में समय व्यतीत करता हो। उसके लिए विद्या ग्रहण करना मजबूरी न हो, वह उसे रुचि लेकर पूरी तन्मयता से पठन व पाठन करता हो। परन्तु फैशन इस परिभाषा को ही बदलकर रख देता है। वह फैशन को इतना महत्व देता है कि बाकी अन्य कार्यों के लिए उसे समय ही नहीं मिलता है। विद्यार्थी को चाहिए कि फैशन के स्थान पर अपनी शिक्षा को महत्व दे। फैशन करने के लिए तो पूरी उम्र पड़ी होती है। परन्तु शिक्षा के लिए सही उम्र विद्यार्थीकाल है।
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