Essay on दया - धर्म का मूल हैं
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महमूदाबाद (सीतापुर) 8 मई (जाका): दया धर्म का मूल है। 'तुलसी दया न छोड़िये, जब तक घट में प्राण'। इस दोहे में धर्म की जड़ दया को और पाप की जड़ अभिमान को बताया गया है। अभिमान अर्थात स्वयं को देह समझना।
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किसी भी धर्म का आधार दया है क्योंकि दया से मानव मानव बनता है और यदि वह बाकी जीवों के प्रति दया नहीं दिखाता तो वह दानव बन जाता है। सभी धर्मों का सार यही है कि हमें सदैव दया भाव रखना चाहिए इससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं। दया रखने वाले लोगों की दुआ ईश्वर सदैव सबसे पहले सुनते हैं।
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