essay on दया - धर्म का मूल हैं (200 words)
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दया अपने आप में प्रसन्नता, प्रफुल्लता का मधुर झरना है। जिस हृदय में दया निरन्तर निर्झरित होती रहती है वहीं स्वयंसेवी आह्लाद, आनन्द के मधुर स्वर निनादित होते रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि दयालु व्यक्ति सहज आत्मसुख से सराबोर रहता है।
दया की शक्ति अपार है। सेना और शस्त्रबल से तो किसी राज्य पर अस्थायी विजय मिलती है। किन्तु दया से स्थायी और अलौकिक विजय मिलती है। दयालु व्यक्ति मनुष्यों को ही नहीं अन्य प्राणियों को भी जीत लेता है। सर्व हितचिन्तक दयालु व्यक्ति से सभी प्राणियों का भय, अहित की आशंका दूर हो जाती है। उसके सान्निध्य में सभी प्राणी अपने आपको सुरक्षित और निश्चिन्त समझते हैं। ऋषि आश्रमों के उपाख्यानों से मालूम होता है कि वहाँ सभी प्राणी निर्भय होकर विचरण करते थे। ऋषियों के बालक उनके साथ खेलते थे। इतना ही नहीं हिंसक पशु भी अपनी हिंसा भूलकर अन्य अहिंसक पशुओं के साथ विचरण करते थे। ऐसी है दया की शक्ति। दयालु ऋषियों के निवास से आश्रमों का वातावरण हिंसा, क्रूरता अन्याय द्वेष आदि से पूर्णतः मुक्त होता था।
दया से दूसरों का विश्वास जीता जाता है। यह प्राणियों के हृदय पर प्रभाव डालती है। दया समाज में परस्पर की सुरक्षा और सौहार्द की गारंटी है, क्योंकि इसमें दूसरों के भले की भावना निहित होती है। जिस समाज में लोग एक दूसरे के प्रति दयालु होते हैं, परस्पर सहृदय और सहायक बनकर काम करते हैं वहाँ किसी तरह के विग्रह की संभावना नहीं रहती। विग्रह, अशान्ति, क्लेश वहीं निवास करते हैं जहाँ व्यवहार में क्रूरता है। क्रूरता अपना अन्त स्वयं ही कर लेती है। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप विभिन्न उपद्रव उठ खड़े होते हैं। दया से स्नेह, आत्मीयता आदि कोमल भावों का विकास होता है। दयालुता ही तो समाज को एकाकार करती है।
दया - धर्म का मूल है |
Explanation:
विश्व में कई धर्मों के लोग रहते हैं और वह सब अपने धर्म ग्रंथों को अपना मूल आधार मानते हैं। इन सभी धार्मिक ग्रंथो का मूल दया है।
सभी धार्मिक संस्थान लोगों से अपील करते हैं कि वे बाकी जीवों के प्रति दया का भाव रखें। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि ईश्वर दया को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। किसी भी धर्म का आधार दया है क्योंकि दया से मानव मानव बनता है और यदि वह बाकी जीवों के प्रति दया नहीं दिखाता तो वह दानव बन जाता है।
सभी धर्मों का सार यही है कि हमें सदैव दया भाव रखना चाहिए इससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं। दया रखने वाले लोगों की दुआ ईश्वर सदैव सबसे पहले सुनते हैं। दया है तो ईश्वर है दया नहीं तो ईश्वर नहीं।
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