essay on the topis " mei hu bhasha"
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मे हु बषो। मे ग्रीष्म के बाद आतै है। मडरक गाते हैं। मोरनी नाच थी है।।सुरज डुब जाती है। बच्चों मेरा मजा उड़ाती है। पेड़ के पानी मिलत
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Explanation:
मैं कलकल-छलछल करती नदियाँ की तरह हर आम और खास भारतीय ह्रदय में प्रवाहित होती हूँ। मैं मंदिरों की घंटियों, मस्जिदों की अजान, गुरुद्वारे की शबद और चर्च की प्रार्थना की तरह पवित्र हूँ। क्योंकि मैं आपकी, आप सबकी-अपनी हिन्दी हूँ। विश्वास करों मेरा कि मैं दिखावे की भाषा नहीं हूँ, मैं झगड़ों की भाषा भी नहीं हूँ
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