essay on topic mera priya kavi
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मेरा प्रिय कवि : कबीर दास
‘कबीर’ जो कहते थे वही करते थे। वे जन्म से ठुकराये हुए बच्चे थे। उन्हौंने जुलाहे का काम पूरे आत्मसम्मान के साथ किया। मान्यता है कि काशी में स्वर्ग जैसी भ्रांतियों को गलत साबित करने के लिए ही मृत्यु से पूर्व वे मगहर चले गए जहॉ से नरक भोगने का भ्थरम तबके समाज में व्याप्त था ।
कबीर को ना धर्म का आग्रह था , ना ही जाति का बंधन। कबीर को ना ही राम-रहीम डरा पाए, न ही सिद्धो-नाथों, बौद्धों के प्रपंच उन्हें आकर्षित कर पाए। कबीर ना सुर की मीठास को लेकर सचेत थे और ना ही तुलसी की मर्यादा कबीर को बांध पाती थी। न ही आज के कवियों की तरह पुरस्कार की लालसा थी उन्हें और ना ही वामपंथ-दक्छिणपंथ के फेर में कबीर कभी पड़े। कबीर को बस कविता की सीमा में न बॉधें तो वह कल्पनाजीवी भी हैं और स्व्प्नद्रष्टा भी, वह समाज में प्रश्रय पा रहे नासुरों की पहचना भी करते हैं और उसकी सर्जरी भी। कबीर समाज में पनप रहे तमाम आडंबरों से विडंबनाओं को ही बाहर निकाल फेंकते हैं। वह न सिर्फ भूत और वर्तमान की पड़ताल करते हैं बल्कि एक सुलझे हुए वैग्यानिक की तरह भविष्य के नए राह हेतु नयी खोज करते हैं। सामाजिक सारोकार, परंपराओं की वैग्कयानिक दृष्टिकोण रखते हुए परख रखने वाले, अनुभूति और प्रतिभा से ओतप्रोत, तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी ‘कबीर’ अपनी समग्रता और व्यापकता में मेरे सबसे प्रिय कवि हैं।
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मेरा प्रिय कवी!!!!
Explanation:
हालांकि मैंने अभी तक बहुत से कवियों की रचनाओं का अध्ययन नहीं किया हैं, मगर मध्यकालीन युग के कबीर, मीरा, रहीम, सूरदास और संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी को ही पढ़ा हैं. इन काव्यकारो की रचनाओं में मानुष को अलौकिकता का रसास्वादन मिलता हैं. इन सभी में से तुलसीदास जी मेरे प्रिय कवि हैं, उनकी भक्ति और अलौकिकता को मैं नित नमन करता हूँ.
भक्ति भाव के साथ समन्वयात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने काव्य सौष्ठव से हिन्दू समाज को संगठित कर विषम हालातों में विदेशी आक्रान्तों के आतंक के मध्य राम भक्ति के द्वारा संस्कृति को नवजीवन प्रदान कर एक सच्चे मार्गदर्शक संत की भूमिका का निर्वहन किया. चारो तरफ आंतक और भय का माहौल था. जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन और संस्कृति का नाश चरम स्तर पर जारी थl
मुगलों द्वारा जबरदस्ती से तलवार के बल पर हिन्दुओं के धर्म का नाश किया गया. उसी दौर में अलग अलग छोटे छोटे सम्प्रदायों ने जन्म लेना शुरू कर दिया था. आम जनमानस को एकजुट करने की बजाय उन्हें मत मतान्तर में विभाजित कर दिया. उस समय राह भ्रमित हिन्दू समाज को एक नाविक की सख्त जरूरत थी, जो उनके जीवन को अन्धकार से आस की किरण दिखाए. मेरे प्रिय कवि तुलसीदास जी ने राम का कल्याणकारी रूप प्रस्तुत कर जन जीवन में एक शक्ति का संचार किया. उनके द्वारा रचित रामचरितमानस आज भी समाज को एकमत रखने और समन्वय स्थापित करने की प्रेरणा दे रहा है |