Essay on tug of war (rassakashi in Hindi) in Hindi with 150 or 200 words
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प्रस्तावना:
कुछ दिन पूर्व हमारे स्कूल और इस्लामिया स्कूल के बीच रस्साकशी का एक मैच हुआ । श्री सुधीर मोहन को रेफरी बनाया गया । यह मैच हमारे स्कूल के खेल मैदान में हुआ । यह बड़ा रोचक मैच था और साथ ही बड़ा उत्तेजक भी ।
दोनों टीमें दोनों टीमों का पलडा बराबरी पर लग रहा था । विरोधी पक्ष के खिलाडी देखने में कुछ भारी लग रहे थे । लेकिन हमारी टीम के खिलाड़ी भी बडे उत्साही थे । वे रस्साकशी की खूब प्रेक्टिस कर चुके थे और अनेक दाँव-पेच जानते थे ।
मैच का प्रारंभ:
रस्साकशी ठीक पाँच बजे शाम को शुरू हुई । दोनों ही टीमें अपना-अपना रस्सा खींचने की जीतोड़ कोशिश कर रही थी । बड़ी कठिनाई से एक-दो इंच रस्सा एक ओर खिंच पाता दूसरी टीम उसे पुन: अपनी ओर खींच लेती । दोनों ही टीमें अपनी समूची शक्ति लगा रही थीं । जरा-सा एक ओर रस्सा खिंचने पर दर्शक उत्तेजित होकर उत्साह बढ़ाते । दूसरी तरफ रस्सा खिसकने पर उस टीम के समर्थक दर्शक बड़ा शोर मचा रहे थे ।
कुछ दर्शक अपने रूमाल हिला-हिला कर अपनी टीम का उत्साह बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे । दोनों टीमों के कोच भी अपने-अपने खिलाड़ियों को तरह-तरह के आदेश दे रहे थे, जैसे ‘रेस्ट करो’, ‘खींचो’ , ‘हाथ बदलो’ अथवा ‘झटका देकर एकदम खींचो’ आदि ।
मैच का वर्णन:
दोनों ही ओर के लड़के अपनी समूची ताकत रस्सा खींचने में लगा रहे थे । रस्सा कई मिनटों तक बीच में ही टिका रहता । इस दृश्य से सभी दर्शक बड़े प्रसन्न और रोमांचित हो रहे थे । यह मैच वास्तव में लड़कों के पौरुष का प्रदर्शन था । सभी अपनी जान की बाजी अंत तक लगाए रखने का संकल्प ले चुके थे ।
लगभग नौ-दस मिनट के बाद ऐसा लगा कि हमारी टीम के खिलाड़ियों की साँस उखड़ने लगी है । मालूम होता था कि वे हार जायेंगे । लेकिन इतने में ही हमारे कैप्टन ने अपने साथियों को ललकारा और उन्हें एक अंतिम प्रयास करने के लिए प्रेरित किया । उसने उन्हें स्कूल के नाम का वास्ता दिलाया ।
इसका तत्काल असर दिखाई पड़ा । उनकी उखड़ी हुई हिम्मत बैध गई । जरा-सी सांस लेकर सभी ने एक साथ मिलकर बड़े जोर का हल्ला बोल दिया । कुछ क्षणों तक रस्सी वैसी ही टिकी रही । अब विरोधी टीम के हौसले पस्त होते दीख पड़े । उनकी सांस उखड़ने लगी और उनके पैर धरती पर जमे न रह सके ।
विरोधी टीम विरोधी के कप्तान ने भी उन्हें बड़े जोर से ललकारा और उनका उत्साह बढ़ाने का प्रयास किया । हमारी टीम के खिलाड़ी विरोधियों की कमजोरी को ताड़ गए और अपनी ओर रस्सा खींचने में और जोर लगाने लगे ।
जल्दी ही हमारी टीम के खिलाड़ी रस्सा तेजी से अपनी ओर खींचने लगे । कई बार विरोधियों ने पैर जमाने की भरसक कोशिश की, लेकिन वे कामयाब न हो पाये । हमारी टीम जीत गई । इस्लामिया टीम का अंतिम खिलाड़ी एक बहुत मोटा लड़का था जिसकी कमर में रस्सा लिपटा हुआ था ।
उसे रस्से के साथ जमीन पर फिसलते देख दर्शक बडी जोर से हंसने लगे । इस तरह मध्य रेखा तक वह बेचारा फिसलता रहा । दोनों ही टीमों के खिलाड़ी बुरी तरह थक कर हाँफ रहे थे । उनके हाथ एकदम लाल थे । एक-दो के हाथ रस्से की रगड़ से छिल भी गए थे । हमने उनके हाथों को रगडा और उनके बदन से मिट्टी झाड कर उन्हें बैठाया । उन्हें एक-एक गिलास दूध पीने के लिए दिया गया ।
उपसंहार:
हमारी जीत पर चारों तरफ से हर्षध्वनि हुई । हम सब बड़ी प्रसन्नता से जीत की खुशियाँ मनाते मैदान से रवाना हुए ।
कुछ दिन पूर्व हमारे स्कूल और इस्लामिया स्कूल के बीच रस्साकशी का एक मैच हुआ । श्री सुधीर मोहन को रेफरी बनाया गया । यह मैच हमारे स्कूल के खेल मैदान में हुआ । यह बड़ा रोचक मैच था और साथ ही बड़ा उत्तेजक भी ।
दोनों टीमें दोनों टीमों का पलडा बराबरी पर लग रहा था । विरोधी पक्ष के खिलाडी देखने में कुछ भारी लग रहे थे । लेकिन हमारी टीम के खिलाड़ी भी बडे उत्साही थे । वे रस्साकशी की खूब प्रेक्टिस कर चुके थे और अनेक दाँव-पेच जानते थे ।
मैच का प्रारंभ:
रस्साकशी ठीक पाँच बजे शाम को शुरू हुई । दोनों ही टीमें अपना-अपना रस्सा खींचने की जीतोड़ कोशिश कर रही थी । बड़ी कठिनाई से एक-दो इंच रस्सा एक ओर खिंच पाता दूसरी टीम उसे पुन: अपनी ओर खींच लेती । दोनों ही टीमें अपनी समूची शक्ति लगा रही थीं । जरा-सा एक ओर रस्सा खिंचने पर दर्शक उत्तेजित होकर उत्साह बढ़ाते । दूसरी तरफ रस्सा खिसकने पर उस टीम के समर्थक दर्शक बड़ा शोर मचा रहे थे ।
कुछ दर्शक अपने रूमाल हिला-हिला कर अपनी टीम का उत्साह बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे । दोनों टीमों के कोच भी अपने-अपने खिलाड़ियों को तरह-तरह के आदेश दे रहे थे, जैसे ‘रेस्ट करो’, ‘खींचो’ , ‘हाथ बदलो’ अथवा ‘झटका देकर एकदम खींचो’ आदि ।
मैच का वर्णन:
दोनों ही ओर के लड़के अपनी समूची ताकत रस्सा खींचने में लगा रहे थे । रस्सा कई मिनटों तक बीच में ही टिका रहता । इस दृश्य से सभी दर्शक बड़े प्रसन्न और रोमांचित हो रहे थे । यह मैच वास्तव में लड़कों के पौरुष का प्रदर्शन था । सभी अपनी जान की बाजी अंत तक लगाए रखने का संकल्प ले चुके थे ।
लगभग नौ-दस मिनट के बाद ऐसा लगा कि हमारी टीम के खिलाड़ियों की साँस उखड़ने लगी है । मालूम होता था कि वे हार जायेंगे । लेकिन इतने में ही हमारे कैप्टन ने अपने साथियों को ललकारा और उन्हें एक अंतिम प्रयास करने के लिए प्रेरित किया । उसने उन्हें स्कूल के नाम का वास्ता दिलाया ।
इसका तत्काल असर दिखाई पड़ा । उनकी उखड़ी हुई हिम्मत बैध गई । जरा-सी सांस लेकर सभी ने एक साथ मिलकर बड़े जोर का हल्ला बोल दिया । कुछ क्षणों तक रस्सी वैसी ही टिकी रही । अब विरोधी टीम के हौसले पस्त होते दीख पड़े । उनकी सांस उखड़ने लगी और उनके पैर धरती पर जमे न रह सके ।
विरोधी टीम विरोधी के कप्तान ने भी उन्हें बड़े जोर से ललकारा और उनका उत्साह बढ़ाने का प्रयास किया । हमारी टीम के खिलाड़ी विरोधियों की कमजोरी को ताड़ गए और अपनी ओर रस्सा खींचने में और जोर लगाने लगे ।
जल्दी ही हमारी टीम के खिलाड़ी रस्सा तेजी से अपनी ओर खींचने लगे । कई बार विरोधियों ने पैर जमाने की भरसक कोशिश की, लेकिन वे कामयाब न हो पाये । हमारी टीम जीत गई । इस्लामिया टीम का अंतिम खिलाड़ी एक बहुत मोटा लड़का था जिसकी कमर में रस्सा लिपटा हुआ था ।
उसे रस्से के साथ जमीन पर फिसलते देख दर्शक बडी जोर से हंसने लगे । इस तरह मध्य रेखा तक वह बेचारा फिसलता रहा । दोनों ही टीमों के खिलाड़ी बुरी तरह थक कर हाँफ रहे थे । उनके हाथ एकदम लाल थे । एक-दो के हाथ रस्से की रगड़ से छिल भी गए थे । हमने उनके हाथों को रगडा और उनके बदन से मिट्टी झाड कर उन्हें बैठाया । उन्हें एक-एक गिलास दूध पीने के लिए दिया गया ।
उपसंहार:
हमारी जीत पर चारों तरफ से हर्षध्वनि हुई । हम सब बड़ी प्रसन्नता से जीत की खुशियाँ मनाते मैदान से रवाना हुए ।
Bhoomicharu:
it's too long but it is easy
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