World Languages, asked by nitesh7080, 1 year ago

essay on "ucch shikshs chunauti nahi'' in 500 words ​

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Answered by tuka81
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उच्च शिक्षा किसी भी देश की शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण स्तर होता है । उच्चशिक्षा अधिकांशतः विश्वविद्यालयो मे दी जाती है तथा यहीं से देश एवं राष्ट्र निर्माण की नीव पड़ती है । "शिक्षा के उद्देश्य" नामक अपनी प्रसिद्ध पुस्तक मे प्रोफेसर हवाइडेड ने विश्वविद्यालयों का राष्ट्र निर्माण मे योगदान के संदर्भ मे लिखा है 'विश्वविद्यालयों ने हमारी सभ्यता के बौद्धिक मार्गदर्शकों को प्रशिक्षित किया है । यहीं से विधिज्ञ , राजनीतिविद , चिकित्सक , वैज्ञानिक , प्राध्यापक एवं साहित्यसेवी निकले हैं। विश्वविद्यालय ही उन आदर्शो के घर रहे है जिनकी सहायता से लोग अपने वर्तमान युग के संक्षोभ का सामना करते हैं' । विश्वविद्यालयों की इसी भूमिका को ध्यान मे रखते हुए राधाकृष्णन विश्वविद्यालय आयोग ने इन्हे 'किसी राष्ट्र के आंतरिक जीवन के पुण्यस्थान' की संज्ञा दी है । इन दोनों ही कथनो से यह बात स्पष्ट है की उच्च शिक्षा जिसे हम विश्वविद्यालयी शिक्षा भी कहते है , का राष्ट्रीय जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है ।

उच्च शिक्षा जो राष्ट्र की आधारशिला होती है उसमे गुणवत्ता और स्वायत्तता का सवाल एक महत्वपूर्ण प्रश्न है । गुणवत्ता और स्वायत्ता उच्च शिक्षा के महत्वपूर्ण पहलू है । गुणवत्ता के बिना शिक्षा अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर पाएगी यह कहना शायद बहुत बड़ी भूल होगी । और शिक्षा में, विशेषकर उच्च शिक्षा में गुणवत्ता स्वायत्ता के अभाव में असंभव भले न हो किन्तु कठिन जरूर है ।उच्च शिक्षा की गुणवत्ता इसलिए जरूरी है कि उच्च शिक्षा

के अंतर्गत आने वाले अनुशासन सर्वाधिक कुशलता कि मांग करते हैं । डाक्टर , इंजीनियर , वैज्ञानिक , विधिवेत्ता , अर्थशास्त्री या फिर विभिन्न विषयों के विद्वान , शोधार्थी , इनकी गुणवत्ता ही इन्हे सफल बनाती है और बिना गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के यह संभव नहीं है । क्या कारण है कि यदि आप किसी छात्र से यह पूंछे कि आप अपनी उच्च शिक्षा कहाँ से लेना चाहेंगे तो वह कैम्ब्रिज , ऑक्सफोर्ड या किसी अन्य विदेशी या आईआईटी जैसे उच्च संस्थान कि बात करेगा । इसके पीछे कार्य करने वाला महत्वपूर्ण कारण यहाँ कि गुणवत्ता ही है जो छात्र तो क्या प्रोफेसरो एवं शिक्षाविदों को भी आकर्षित करती है ।

उच्च शिक्षा कि गुणवत्ता से तात्पर्य उच्च शिक्षा का उन समस्त मानकों पर खरा उतरना है जिनको ध्यान मे रखकर यह प्रदान कि जा रही है । यदि शिक्षा वर्तमान जीवन कि चुनौतियों को कुशलतापूर्वक हल कर देती है , छात्र को अत्यधिक दक्ष बनाती , उसमे आधुनिकतम ज्ञान - विज्ञान के कुशलतम उपयोग को संभव बनाती है तथा उसे इस योग्य बनती है कि वह नवीन ज्ञान का सृजन कर सके तो यह माना जाता है कि शिक्षा गुणवततापूर्ण है ।

वर्तमान समय में भारत में गुणवत्ता और स्वायत्तता उच्च शिक्षा (higher education) के क्षेत्र की महत्वपूर्ण चुनौतियों के रूप मे उभरे हैं। आए दिन हमारे शिक्षाशास्त्रियों द्वारा इस विषय पर बार - बार चिंता प्रकट की जा रही है जिसे हम सभी विभिन्न समाचार चैनलों , अखबारों , पत्रिकाओं में पढ़ सुन रहे हैं । महामहिम राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री भी देश के नाम सम्बोधन में इस विषय पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके है । भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का अनुमान हम विभिन्न संस्थानों द्वारा जारी आंकड़ों एवं रैंकिंग के द्वारा आसानी से समझ सकते है । उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में प्रथम एक सौ विश्वविद्यालयों मे हमारे देश का कोई भी विश्वविद्यालय सम्मिलित नहीं है। क्यूएस वर्ल्ड यूनिवरसिटि रैंकिंग द्वारा जारी 2010 – 2015 तक के आंकड़े इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं ।

1. यदि इनमे से 2015 के आकड़ों को हटा ले तो दुनिया के टॉप 200 विश्वविद्यालयों में भी भारत का कोई संस्थान शामिल नहीं था ।2 2015 में अवश्य भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी , बंगलौर) को 147वां स्थान तथा आईआईटी दिल्ली को 179वां स्थान प्राप्त हुआ है । किन्तु बाकी सभी उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है । भारतीय उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के संबंध में होने वाले शोधों एवं सर्वेक्षणो पर यदि ध्यान दिया जाय तो एक तथ्य जो बहुत ही महत्वपूर्ण रूप मे हमारे सामने आता है वह है उच्च शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों का एक बड़ी संख्या में बेरोजगार होना है । यह बेरोजगारी अवसरों की कमी की वजह से उतना नहीं है जितना की दक्षता या कहे की शिक्षा में गुणवत्ता की कमी के कारण । विभिन्न सर्वेक्षणों में तमाम नियोक्ता संस्थानों ने यह माना है कि भारत के उच्च तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों में आधे से भी कम विद्यार्थी अपनी शिक्षा के अनुरूप कार्य कर पाने में सक्षम हैं ।

2. यह अकारण नहीं है की आजकल बी.टेक, पीएचडी जैसे उच्च शिक्षा डिग्रीधारी युवा चपरासी या अन्य चतुर्थ श्रेणी की नियुक्तियों मे बड़ी संख्या मे आवेदक के रूप मे देखे गए हैं ।

3. उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के संदर्भ में होने वाले विभिन्न शोधों में भी यह बात स्पष्ट रूप से उभर कर आई है कि हमारे उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवानों में 70% से भी अधिक अकुशल हैं जो आधुनिक तकनीकी विकास एवं निर्धारित योग्यता के अनुरूप कार्य करने में सक्षम नहीं हैं ।

यह समस्या यहीं पर समाप्त नहीं हो जाती ; शोध कार्य जो उच्च शिक्षा का आधार स्तम्भ माना जाता है उसमें भी गुणवत्ता में ख़ासी कमी आई है । आज भले ही थोक के भाव शोध कार्य हो रहे हों किन्तु उनमें यदि अच्छे गुणवत्तापूर्ण शोधों की गणना की जाय तो वे मात्र गिने – चुने ही प्राप्त होंगे ।

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