Hindi, asked by janhavi5350, 1 year ago

essay on --- vachan mela
please short essay in hindi

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Answered by Anonymous
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वाणी अर्थात् भाषा मानव को अन्य सभी पशुओं से अलग कर एक ऊंचे स्थान पर पहुंचा देती है । वाणी और भाषा के विकास से आज हम मानव इतने स्मृद्ध हैं, उन्नत हैं और सभ्य हैं ।

हमारा सारा इतिहास, विज्ञान, साहित्य कला, संस्कृति आदि सब इसी के कारण हैं । यदि मनुष्य वाणी-रहित होता, पशुवत मूक रहता, तो क्या यह संभव था । यह एक अनमोल वरदान है जिसके द्वारा हम आपस में बातचीत करते हैं, विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, अपनी भावनाएं व्यक्ति करते हैं और ज्ञान को सहेजकर रखते हैं ।

वाणी एक दुधारी तलवार की तरह है । यह तलवार सब मनुष्यों के पास है परन्तु इसका उचित प्रयोग बहुत कम लोगों को आता है । बोलते तो सभी है; परन्तु कब कैसा कितना और कहां बोलना है यह लोगों को पता ही नहीं रहता । वे इसका दुरुपयोग कर झगड़े, ईर्ष्या, द्वेष, कटुता और अशांति पैदा कर लेते हैं ।

दूसरी ओर विद्वान और समझदार व्यक्ति अपने मीठे वचनों से दूसरों का हृदय जीत लेते हैं, उन्हें अपना मित्र और संगी-साथी बना लेते हैं । जितने भी महान नेता हुए हैं, वे वाणी का श्रेष्ठ उपयोग करना जानते थे । उन्होंने इस वरदान का बड़ी कुशलता से प्रयोग किया और लोगों के हृदय-सम्राट, नेता और कर्णधार बन गये ।

छोटी-सी जीभ, पर इससे निकले वचन कितने प्रभावशाली ! यह कहर ढ़ा दें या अमन-चैन का साम्राज्य ला दें । इसके दुरुपयोग से स्वर्ग, नरक में बदल सकता है और मित्र शत्रु में । इसका विनाशकारी प्रभाव सब जानते हैं । कविवर रहीम ने उचित ही कहा है

रहीमन जिभ्या बावरी, कह गई सरग पाताल, आप तो भीतर रही, जूते खात कपाल ।।

वाणी के जरा से दुरुपयोग से बड़ा और भयंकर उलट-फेर हो सकता है । मीठे वचन घाव पर मरहम का काम करते हैं । वे उस शीतल पानी की तरह हैं, जो भयंकर आग को भी बुझा सकता है ।

मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर । श्रवण मार्ग होई संचरे, वेधै सकल शरीर ।। कुटिल वचन सबसे बुरा,जारि करे तन छारि । साधु वचन जल रूप है, बरसौ अमृत धार । ।

कोयल और कोआ दोनों समान रूप से करले होते हैं । परन्तु इनकी पहचान वाणी से होती है । कोयल मीठा, मधुर, सरस और सुन्दर बोलती है, कौआ कर्कश, कठोर और अप्रिय बोलता है । इसी प्रकार व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी से होती है । मधुर बोलने वाले और विनम्र स्वभाव के लोग सर्वप्रिय होते हैं ।

सत्य भी बिना कडुवाहट के सहज, सरल मीठे तरीके से कहा जा सकता है । यदि हम चतुराई से अपनी वाणी का प्रयोग करें, तो कटु से कटु सत्य भी प्रिय और मधुर रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं । कटु बोलने वाले व्यक्ति कभी लोकप्रिय नहीं हो सकते, और न सफल नेता बन सकते हैं । इसीलिए कहा भी है कि गुड़ न दे सको तो कोई बात नहीं, परन्तु गुड़ जैसा मीठा तो बोल सकते हो । मीठी वाणी, प्रिय बोल कटुता हटाते हैं, द्वेष दूर करते हैं और मित्रता बढ़ाते हैं ।

इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी वाणी का प्रयोग बड़ी समझदारी और संयम से करें । बोलें कम अर्ल सुनें ज्यादा । यदि हमारी वार्णा में कर्कशता है, कडुवाहट है, तीखापन है और व्यंग्य है, तो उन्हें दूर करें । उनके स्थान पर उसमें मधुरता लाएं, रस घोलें और विनम्र बनें । सफलता और लोकप्रियता का यही एक रहस्य है ।


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