History, asked by Jfr, 1 year ago

essay on van humare jeevan ka aadhar hai in hindi

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Answered by jagriti281
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प्रकृति ईश्वर की देन है। प्रकृति और मनुष्य आदिकाल से एक दूसरे पर निर्भर रहे हैं। मनुष्य प्रकृति की गोद में पला, बढ़ा और इसी पर निर्भर हो गया। आदिकाल से मनुष्य के जीवन में वन महत्वपूर्ण रहे हैं। परन्तु जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ वैसे-वैसे मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वृक्षों को काटना आरम्भ कर दिया। वनों की लगातार कटाई होती गई और वातावरण पर भी इसका प्रभाव पड़ा।

 

जहाँ वन प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं वहीँ ये मानव जीवन का संरक्षण करने में भी मददगार हैं। वर्षा समय पर हो, मिट्टी का कटाव रोका जा सके, प्रदूषण की मात्रा घटे, बाढ़ न आए, अकाल न पड़े आदि मुसीबतों से भी वन हमें बचाते हैं। हमारी जरूरतों को पूरा करते हैं। लकड़ी, कागज़, फर्नीचर, दवाइयाँ सभी के लिए हम वनों पर निर्भर हैं।

वन भूमि को बंजर होने से रोकते हैं और प्रदूषण को कम करने में मदद करते हैं। वनों के विकास के लिए सरकार ने 1950 में वन-महोत्सव का कार्यक्रम शुरू किया, परन्तु प्रेरणा के आभाव में यह मंद पड़ गया। सरकार ने वनों की कटाई पर रोक लगा दी, परन्तु हिमालय के क्षेत्रों में आज भी कटाई जारी है।

वनों को लगाना ही एक मात्र हल नहीं है। हमें उन चीज़ों को भी रोकना होगा जिनसे वनों को हानि पहुँच रही है। आँकड़े बताते हैं कि हर आदमी एक साल में सात पेड़ों का उपयोग करता है। कागज़, फर्नीचर और इंधन के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। विकास और जनसंख्या ने मनुष्य को लालची बना दिया है। मनुष्य ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति का नाश कर दिया है।

मनुष्य ने वनों के लाभ तथा महत्व को जान लिया है, इसलिए जो नुकसान मनुष्य ने किया है, उसे पूरा करने के लिए सरकार और समाज को ठोस क़दम उठाने चाहिए।

Answered by saroopsingh97
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