Hindi, asked by najminakhtara1981, 11 months ago

essay on van sanrakshan 350 words​

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Answered by manjeetyadav3437
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 <font colour = red ><marquee >वन/वन संरक्षण पर निबंध - वन प्राणियों के लिए कितने आवश्यक हैं, ये सभी को पता है। कहा भी गया है कि वन ही जीवन है। इतना समझने के बावजूद भी दिन-प्रतिदिन वनों की अंधाधुंध कटाई होती है। यह समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है। इस लेख में हम इसी गंभीर समस्या पर निबंध ले कर आए हैं। आशा करते हैं कि यह निबंध जितना आपकी परीक्षाओं में सहायक होगा, उतना ही आपको वनों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने में भी प्रेरक सिद्ध होगा।

Answered by harshalagavkhadkar33
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Explanation:

वन, अरण्य, जंगल, विपिन, कानन आदि सभी शब्द प्रकृति की अनुपम देन के अर्थ, भाव और स्वरूप को प्रकट करने वाले हैं । आदिमानव का जन्म, उसकी सभ्यता संस्कृति का विकास इन वनों में पल-बढ़कर ही हुआ था । उसकी खाद्य, आवास आदि सभी समस्याओं का समाधान करने वाले तो वन थे ही, उसकी रक्षा भी वन ही किया करते थे ।

वेदों, उपनिषदों की रचना तो वनों में हुई ही, आरण्यक जैसे ज्ञान-विज्ञान के भण्डार माने जाने वाले महान ग्रन्ध भी अरण्यों यानि वनों में लिखे जाने के कारण ही ‘ आरण्यक ‘ कहलाए । यहाँ तक कि संसार का आदि महाकाव्य माना जाने वाला आदि महाकवि वाल्मीकि द्वारा रचा गया ‘ रामायण ‘ नामक महाकाव्य भी एक तपोवन में ही स्वरूपाकार पा सका ।

भारत क्या विश्व की प्रत्येक सभ्यता-संस्कृति में वनों का अत्यधिक मूल्य एवं महत्त्व रहा है । इस बात का प्रमाण प्रत्येक भाषा के प्राचीनतम साहित्य में देखा जा सकता है कि जिनमें सघन वनालिपों के साधन वर्णन बड़े सजीव ढग से और बड़ा रस ले कर किए गए हैं । उन सभी साहित्यिक रचनाओं में अनेक तरह के संरक्षित वनों की चर्चा भी मिलती है ।

पूछा जा सकता है कि आखिर वनों को संरक्षित क्यों और किसलिए घोषित किया जाता था ? इस का एक ही उत्तर है या फिर हो सकता है कि न केवल मानव-सभ्यता संस्कृति की रक्षा बल्कि अन्य प्राणियों की रक्षा के लिए तरह-तरह की वनस्पतियों, औषधियों आदि की रक्षा के लिए वन संरक्षण आवश्यक समझा गया । वन तरह-तरह की पशु-पक्षियों की प्रजातियों के लिए तो एकमात्र आश्रय स्थल थे और आज भी हैं । वहाँ कई प्रकार की वन्य एवं आदिवासी मानव जातियाँ भी निवास किया करती थी ।

इनकी रक्षा और जीविका भी आवश्यक थी, जो वनों को संरक्षित करके ही संभव एवं सुलभ हो सकती थी । आज भी वस्तु स्थिति उसमे बहुत अधिक भिन्न नहीं है । स्थितियों में समय के अनुसार कुछ परिवर्तन तो अवश्य माना जा सकता है । पर जो वस्तु जहाँ की है वह वास्तविक शोभा और जीवन शक्ति वहीं से प्राप्त कर सकती है । इस कारण वन संरक्षण की आवश्यकता आज भी पहले के समय से ही ज्यों की त्यों बनी हुई है ।

आज जिस प्रकार की नवीन परिस्थितियाँ बन गई है, जिस तेजी से नए-नए कल-कारखानों, उद्योग-धन्धों की स्थापना हो रही हैं, नए-नए रमायन, गैसें, अणु, उदजन, कोबाल्ट आदि बम्बों का निर्माण और निरन्तर पराक्षण जारी है, जैविक शस्त्रास्त्र बनाए जा रहे हैं, इन सभी ने धुएँ, गैसों और कचरे आदि के निरन्तर निसरण से मानव तो क्या सभी तरह के जीव-जन्तुओं का पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित हो गया है ।

केवल वन ही हैं, जो इस सारे विषैले और मारक प्रभाव से प्राणी जगत की रक्षा कर सकते हैं । उन्हीं के रहते समय पर उचित मात्रा में वर्षा होकर धरती की हरियाली बनी रह सकती है । हमारी सिंचाई और पेयजल की समस्या का समाधान भी वन संरक्षण से ही सम्भव हो सकता है । वन हैं तो नदियों भी अपने भीतर जल की अमृत धारा संजोकर प्रभावित कर रही हैं ।

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