Hindi, asked by devestripathi97501, 10 months ago

essay on vidhyarthi jiwan me anushasan ka mahatwa

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Answered by Raghuroxx
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Answer:

विद्यार्थी का जीवन समाज व देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ हैं क्योंकि वे ही आगे चल कर राज नेता बनते हैं। देश की बागडोर थाम कर राष्ट्र-निर्माता बनते हैं। समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर है। अतएव विद्यार्थी का जीवन पूर्णतः अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज व देश बनेगा।

विद्यार्थी जीवन को सुंदर बनाने के लिए अनुशासन का विशेष महत्त्व है। अनुशासन को जो लोग बंधन समझते हैं वे मूर्खता करते हैं। जिस प्रकार हमारे शरीर का संचालन मस्तिष्क द्वारा होता है और हमारी सब कर्मेंद्रियाँ अपना-अपना कार्य करती हैं। यदि कर्मेंद्रियां अपना-अपना कार्य करना बंद कर दें तो हमारा जीवन कठिन हो जाएगा। इसी भांति अनुशासित जीवन के अभाव में हमारा जीवन नष्ट-भ्रष्ट होकर गतिहीन और। दिशाहीन हो जाएगा।

अनुशासन का अर्थ-अनुशासन दो शब्दों से मिलकर बना है-अनु और शासन। अनु का अर्थ है पीछे और शासन का अर्थ है आज्ञा। अतः अनुशासन का अर्थ है-आज्ञा के पीछे-पीछे चलना। समाज और राष्ट्र की व्यवस्था और उन्नति के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पालन करना ही अनुशासन है। अतः हम जो भी काय अनुशासनबद्ध होकर करेंगे तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। अनुशासन के अंतर्गत उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना चालना, सीखना-सिखाना, आदर-सत्कार आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं। इन सभी कार्यों में अनुशासन का महत्त्व है।

अनुशासन की शिक्षा-अनुशासन की शिक्षा स्कल की परिधि में ही संभव नहीं है। घर से लेकर स्कूल, खेल के मैदान, समाज के परकोटों तक में अनुशासन की शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के जीवन को जगमगा देती है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के समय खेलना चाहिए। एकाग्रचित होकर अध्ययन करना, बड़ों का आदर करना, छोटों से स्नेह करना ये सभी गुण अनुशासित छात्र के हैं। जो छात्र माता-पिता तथा गुरु की आज्ञा मानते हैं, वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं तथा उनका जीवन अच्छा बनता है। वे आत्मविश्वासी, स्वावलंबी तथा संयमी बनते हैं और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं।

अनुशासन के प्रकार-अनुशासन में रहने वाले विद्यार्थी को अपने जीवन में कदम-कदम पर यश तथा सफलता मिलती है। उनका भविष्य उज्ज्वल हो जाता है। ऐसे ही छात्र राष्ट्र नेता बनते हैं और देश का संचालन करते हैं। विद्यार्थी का जीवन सुखी तथा संपन्न अनुशासनप्रियता से ही बनता है। अनुशासन भी दो प्रकार का होता है(i) आंतरिक, (ii) बाह्य । दूसरे प्रकार का अनुशासन परिवार तथा विद्यालयों में देखने को मिलता है। यह भय पर आधारित होता है। जब तक विद्यर्थी में भय बना रहता है तब तक नियमों का पालन करता है। भय समाप्त होते ही वह उदंड हो जाता है। भय से प्राप्त अनुशासन से बालक डरपोक हो जाता है।

आंतरिक अनुशासन श्रेष्ठ-आंतरिक अनुशासन ही सच्चा अनुशासन है। जो कुछ सत्य है, कल्याणकारक है, उसे स्वेच्छा से मानना ही आंतरिक अनुशासन कहा जाता है। आत्मानुशासित व्यक्ति अपने शरीर, बुद्धि, मन पर पूरापूरा नियंत्रण स्थापित कर लेता है। जो अपने पर नियंत्रण कर लेता है वह दुनिया पर नियंत्रण कर लेता है।

अनुशासनहीनता के घातक परिणाम-बड़े दुर्भाग्य की बात है कि छात्र-वर्ग अनुशासन के महत्त्व को भली-भांति नहीं समझ पाता है जिसका परिणाम यह होता है कि वह नित्य-प्रति स्कूल तथा कॉलेजों में तोड़-फोड़, परीक्षा में नकल करना, अध्यापकों को पीटना आदि कार्य करता है। तोड़-फोड़, लूट-पाट, आगजनी, पथराव आदि तो नित्य देखने को मिलते हैं। ऐसे छात्र न विद्या ग्रहण कर पाते हैं और न अपने संस्कारों को ही ठीक कर पाते हैं। वे समाज के लिए कलंक बन जाते हैं और समाज को सदैव दु:ख ही देते हैं। ऐसे छात्रों से न माता-पिता को सुख मिलता है और गुरुजनों को। वे देश के लिए भार बन जाते हैं।

अनुशासन से जीवन सुखमय तथा सुंदर बनता है। अनुशासनप्रिय व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। हमें चाहिए कि अनुशासन में रहकर अपने जीवन को सुखी, संपन्न एवं सुंदर बनाएं।

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