essay on vidyarthi rashtriyam
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विद्यार्थी द्वारा राष्ट्र-निर्माण करने का आशय राष्ट्र को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाना है। यद्यपि जिस प्रकार एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, उसी प्रकार एक अकेला विद्यार्थी समूचे राष्ट्र का उत्थान नहीं कर सकता; तथापि वह राष्ट्र की प्रगति में अपना कुछ-न-कुछ सहयोग तो अवश्य कर सकता है।
राष्ट्र का उत्थान विद्यार्थियों के चरित्र और विचारधारा के ऊपर टिका हुआ होता है। स्कूल, कॉलिज के विद्यार्थी ही आगे चलकर-राष्ट्र की उन्नति के मुख्य कर्णधार बनते हैं इसलिए विद्यार्थी का अच्छा चरित्र राष्ट्र के भविष्य को उज्ज्वल बनाता है तथा उसकी स्वस्थ व नेक विचारधारा देश के दुःखी प्राणियों का दुःख हरने में मदद करती है।
विद्यार्थियों के अन्दर एक असीम शक्ति छिपी हुई होती है। यदि इस शक्ति को पहचानकर इसका उपयोग सकारात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों में किया जाए। तो वह अवश्य ही राष्ट्र निर्माण का पुनीत कार्य कर सकेगा। जो विद्यार्थी बुरे लड़कों अथवा बुरे मित्रों की संगत में फँस जाते हैं-वे राष्ट्र के निर्माण में अपना कोई भी योगदान नहीं दे सकते, क्योंकि उनकी बुरी आदतें तथा दुर्व्यसनों की लत उनकी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों को बुरी तरह क्षीण कर देती हैं। फलस्वरूप उन्हें अपने जीवन में दुःख एवं अशान्ति की प्राप्ति होती है।
उर्दू शायर हाली का कथन है-
कब तक आखिर ठहर सकता है वह घर।
आ गया बुनियाद में जिसकी खलल।‘
विद्यार्थी प्रत्येक देश की प्रगति की नींव हुआ करते हैं। यदि नींव ही कमजोर होगी या बुरी आदतों के कारण हिलती-डुलती रहेगी तो मकान भला कैसे सुरक्षित रह सकता है?
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रसिद्ध कवयित्री हुई हैं