Math, asked by tanujam215, 4 months ago

essay on Vinayak Damodar Savarkar in Odiaऐसे ऑन विनायक दामोदर सावरकर ​

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Answered by ghanshyamkoche786
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विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मामुर नामक गांव में हुआ था। बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सावरकर बैरिस्टर की पढ़ाई पढऩे के लिए लंदन चले गए। वे लंदन में ‘इंडिया हाऊस’ में रहते थे।

इंडिया हाउस में भारतीय स्वतंत्रता के लिए गतिविधियां चलाई जाती थीं। इंडिया हाउस में कार्य करते हुए सावरकर ने तीन पुस्तकों की रचना की ‘मेजिनी’, ‘सिक्खों का इतिहास’, ‘भारत के प्रथम स्वतंत्रता युद्ध का इतिहास’। पुस्तक रचना के समय उनकी अवथा मात्र 25 वर्ष की थी। तीसरी पुस्तक ने उन्हें पूरे इंज्लैंड में चर्चित कर दिया। वे एक ‘खतरनाक क्रांतिकारी’ के रूप में पहचाने जाने लगे।

सावरकर ने बैरिस्टरी की परीक्षा तो उत्तीर्ण कर ली, किंतु उन्हें वकालत करने की इजाजत नहीं मिली। सरकार की ओर से उनके सामने एक शर्त रखी गई-यदि वे भविष्य में राजनीति में भाग न लेने का वायदा करें तो उन्न्हें वकालत का लाइसेंस दिया जा सकता है। उन्होंने शर्त को नहीं माना। उसी बीच अत्याधिक परिश्रम के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। इसलिए उनके साथियों ने उन्हें वेल्स के सेनिटोरियम में भेज दिया। वहां उन्हें सूचना मिली कि उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर को जैक्शन नामक जज की हत्या के आरोप में ‘काला पानी’ की सजा दी गई है। जिस पिस्टल से जैक्शन की हत्या की गई थी, वह सावरकर की ही थी। इससे लंदन में उनकी गिरफ्तारी का वारंट निकल गया।

वीर सावरकर को ‘मोरिया’ नामक जहाज से इंज्लैंड से भारत लाया जा रहा था। जहाज पर कई गोरे सिपाही थे। जहाज जब ‘मार्सलीज’ बंदरगाह पर रुका तब सावरकर समुद्र में कूद पड़े।

अत्यंत साहस का परिचय देते हुए वे तैरकर किनारे पर पहुंचे, पर फ्रांसीसी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर गोरी सरकार के हवाले कर दिया। सन 1911 से 1921 तक के वर्ष सावरकर ने अंडमान की जेल में बिताए। यहां उन्हें कोल्हू में जोता जाता था। राजनीतिक कैदियों के साथ वहां बड़ा अत्याचार होता था। वहां का जेलर बारी अत्यंत कू्रर और अत्याचारी था। तरह-तरह के आरोप लगाकर वह कैदियों को सताया करता था। सावरकर ने उसक ेजुल्कों की कहानी को कविता के रूप में ढाला ओर कील-कांटे की सहायता से लिखकर जेल की दीवारों को भर दिया। स्वतंत्रता के इतिहास में सावरकर ऐसे सेनानी हैंख्ख् जिन्हें एक ही जीवन में दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इतना ही नहीं, आजादी के बाद गांधी-हत्या के आरोप में भारत मां के इस सपूत को फंसाया गया, जिससे इन्हें स्वतंत्र भारत में भी जेल की कोठरी में रहना पड़ा। काले पानी की सजा के रूप में जेल में रहकर उन्होंने 1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, मेरा आजीवन कारावास और अंडमान की प्रतिध्वनियां पुस्तकें लिखीं।

26 जनवरी 1966 को दुनिया के इस अनोखे क्रांतिकारी एंव विलक्षण हुतात्मा का देहांत हो गया।

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