essay on women empowerment and child labour in hindi
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आजकल महिला सशक्तिकरण का युग है। महिलाओं को जीवन के प्रत्येक स्तर पर चाहे वह सामाजिक हो, आर्थिक हो या कोई और क्षेत्र हो, कामयाबी मिल रही है। उनकी अवस्था में सुधार आ रहा है। भारत एक पुरुष प्रधान देश रहा है किन्तु अब महिलाएं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामान अधिकार के साथ पुरुषों के कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं। यही महिला सशक्तिकरण है। महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा हो रहा है। आज महिलाएं समाज और परिवार दोनों को चलाने में अपना बराबर का योगदान दे रही हैं। सही मायने में महिलाएं सशक्त हो रही हैं।
आज़ादी से पूर्व स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। उन्होंने पर्दे पर रखा जाता था तथा उनको शिक्षा-दीक्षा पाने का अधिकार नहीं था। वह स्वयं के लिए कोई निर्णय नहीं ले सकती थीं। विवाह से पूर्व पिता की तथा विवाह के बाद पति उसके निर्णय लेता था। विवाह से पूर्व मायका तथा विवाह के बाद ससुराल की चारदीवारी उनकी जीवन थी। परन्तु जैसे-जैसे लोगों ने आज़ादी का अर्थ समझा, वहीँ औरतों को भी आज़ादी देने का अधिकारी माना। धीरे-धीरे उनकी स्थिति में सुधार हुआ। शिक्षा ने उनके जीवन को नयी दिशा प्रदान की।
अब उनका क्षेत्र घर की चारदीवारी नहीं था अपितु अब वे सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तौर सदृढ़ होने लगीं। यहीं से महिला सशक्तिकरण का आरंभ होता है। अपने को इन सभी क्षेत्रों में पृरुषों के समान बनाना और अपनी स्थिति को मजबूत और मजबूत करना ही सशक्तिकरण कहलाता है। वे अब बेचारी नहीं है, जिसे पुरुष पर निर्भर होकर जीवनयापन करना पड़ता है। वह स्वालंबी है और अपने निर्णय स्वयं लेती है। वह हर कदम पर पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चलती है। वह बदलाव लाने की क्षमता रखती है। हर कार्य पर अपनी भागीदारी देती है।
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भारत में आबादी का एक बहुत बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे आता है। जिन्हें नौकरी , रोटी , कपड़ा सरलता से नहीं मिल पाते , वे सब इस रेखा के अंदर आते हैं। इस तरह के हालत ऐसे लोगों के अधिकतर होते हैं , जिनका परिवार बहुत बड़ा होता है और कमाने वाले बहुत ही कम। परिमाणस्वरूप हालत ऐसे बन जाते हैं कि इन परिवारों के बच्चे छोटी - छोटी उम्र में कमाने के लिए घर से बाहर जाने लगते हैं। छोटी उम्र में नौकरी करने के कारण ये बाल श्रमिक कहलाते हैं।
लोग इनकी छोटी उम्र को देखते हुए , इनसे काम अधिक करवाते हैं और पैसे कम देते हैं। पढ़ने की उम्र में रोटी के लालच में यह हर स्थान पर नौकरी करते देखे जाते हैं। अधिकतर गाँवों से रहने आए परिवारों , गरीब परिवारों , अशिक्षित परिवारों के बच्चे बाल श्रमिकों बन जाते हैं। घर के सदस्यों की सोच यही होती है कि परिवार जितना बड़ा होगा कमाने वाले अधिक परन्तु वह यह भूल जाते हैं कि छोटी उम्र में नौकरी करने से बच्चों का विकास और जीवन रूक जाता है। पढ़ने की उम्र में वह नौकरी करने लगते हैं परन्तु जब नौकरी की उम्र आती है , तो उनके पास नौकरी नहीं होती। क्योंकि बाल अवस्था में कोई भी उन्हें कम पैसे में रखने के लिए तैयार हो जाता था परन्तु बाद में कोई उन्हें नौकरी नहीं देता है। इसका बुरा असर यह पढ़ता है कि इन्हें चोरी - चाकरी करनी पड़ती है। बाल श्रमिक का जीवन भी कोई बहुत अच्छा नहीं होता है। उन्हें उनके परिश्रम के अनुसार मेहनताना नहीं मिलता है। मालिक द्वारा अधिक प्रताड़ित किया जाता है।
सरकार ने बाल श्रमिकों बढ़ती संख्या देखते हुए। इस ओर कानूनों में सख्ती की है। सरकार के अनुसार १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को नौकरी में रखना दण्डनीय अपराध समझा जाएगा और दण्डभोगी को ६ महीने की कारावास की सज़ा भी मिल सकती है। गरीब परिवारों के बच्चों को सरकार ने सभी सरकारी शिक्षालयों में मामूली शुल्क पर शिक्षा देने के लिए इतंजाम किए भी हैं। स्कूल में ही खाने की व्यवस्था की ताकि परिवार उनके भोजन की ओर से भी निश्चित हो जाए। हमें चाहिए कि इस ओर हम भी सरकार का कंधे - से - कंधा मिलाकर चले और कहीं किसी के द्वारा किसी बच्चे को नौकरी पर रखा गया हो , पुलिस को तुरंत सुचित किया जाए। ऐसा करने से हम उन बच्चों को स्कूल भेज पाएँगे और बच्चों के बचपने को एक खुशहाल जीवन।