essay on yadi me teacher hota
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हर युग में शिक्षा का महत्व रहा है। जब तक धरती पर मनुष्य का जीवन रहेगा, तब तक शिक्षा का महत्व भी बना रहेगा। इसमें तनिक सा भी संदेह नहीं। शिक्षा को प्रकाश तो कहा ही जाता है, मनुष्य की आंख भी माना जाता है। शिक्षा देने वाले व्यक्ति को शिक्षक कहा जाता है। प्रकाश और आंख होने के कारण यदि शिक्षा का भी बहुत महत्व है तो वह आंख और प्रकाश देने वाले शिक्षक का भी बहुत महत्व हुआ करता है। यह कहा और माना जाने लगा है कि आज के जीवन-समाज में शिक्षा का महत्व तो है, पर शिक्षक का मान और महत्व निरंतर घट गया और घटता जा रहा है। इसके लिए जहां आज की शिक्षा-पद्धति समाज की आदर्शनहीता आदि को दोषी माना जाता है, वहां अध्यापकों का भी कम दोष नहीं कहा जाता। शिक्षा को आज के शिक्षकों ने एक पवित्र, निस्वार्थ सेवा-कर्म न दहने देकर, एक प्रकार का व्यवसाय बा दिया है, इस कारण शिक्षक का पहले जैसा सम्मान नहीं रह गया। फिर भी मैं जीवन में यदि कुछ बनना चाहता हूं तो शिक्षक ही बनना चाहता हूं। क्यों बनना चाहता हूं, इसके कईं कारण और योजनांए हैं, जिन्हें मैं शिक्षक बन कर ही पूर्ण कर सकता हूं।
यदि मैं शिक्षक होता, तो सबसे पहले अपने छात्रों को पुस्तकों एक सीमित रखने वाली इस बंधी-बंधाई शिक्षा-पद्धति के घेरे से उन्हें बाहर निकालने का यत्न करता। वास्तविक शिक्षा के लिए उन्हें बंद कक्षा-भवनों से बाहर निकालने की कोशिश भी करता। उन्हें बताता कि हमें प्रकृति की खुली किताब भी खुले मन से पढऩी चाहिए। इसमें मिलने वाली शिक्षा को ही जीवन की सच्ची और वास्तविक शिक्षा मानना चाहिए। क्योंकि हम जिस युग में रह रहे हैं, उनमें परीक्षांए भी पास करनी पड़ती हैं। परीक्षांए पार करने के लिए किताबों का पढऩा जरूरी है, इस कारण में अपने छात्रों को किताबे भी पढ़ाता अवश्य, पर उस बंधे-बंधाए ढंग से नहीं कि जो विषयों का ऊपरी ज्ञान ही कराता है, उनकी तह तक नहीं पहुंचाया करता। तभी तो कुंजियां पढऩे वाले विद्यार्थी ज्यादा चतुर बन जाता है। परीक्षाओं में अंक भी अधिक पा लेता है पर उसे वास्तविक ज्ञान कुछ नहीं होता इस प्रकार स्पष्ट है कि आज की हमारी परीक्षा-प्रणाली भी दोषपूर्ण है। जो विद्यार्थी की वास्तविक योज्यता की जांच नहीं कर पाती। इस कारण यदि मैं शिक्षक होता तो इस बेकार हो चुकी शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ परीक्षा प्रणाली को बदलवाने की भी कोशिश करता।
अकसर देखा जाता है कि हमारे शिक्षक देहातों में नहीं जाना चाहते। जाते हैं, तो वहां के वातावरण को अपनाकर पढ़ा-लिखा नहीं पाते। देहातों से आाने वाले शिक्षक अपने ही गांव के विद्यालय में नियुक्ति करवा लेते हैं। ऐसा करवाने के बाद पढ़ाना-लिखाना छोडक़र वे अपने ही घरेलू कामों में लगे रहते हैं। मैं यदि शिक्षक होता तो कहीं भी जाकर मन लगाकर पढ़ाता। अपने गांव-शहर या गली-मुहल्ले के स्कूल में नियुक्त होकर भी पहला काम पढ़ाने का ही करता अपने घरेलु धंधों का एकदम नहीं। सच्चे मन से, उत्साह और प्रयत्नपर्वक पढ़ाकर ही कोई शिक्षक जीवन-समाज में आदत तो पा ही सकता है। आत्मसंतोष भी पा सकता है। शिक्षा देना वास्तव में एक पवित्र कर्म है। राष्ट्री-निर्माण का सच्चा आधार शिक्षक ही है। सो अच्छा शिक्षक हमेशा सामने राष्ट्री निर्माण और राष्ट्र हित का ेध्यान में रखेकर चला करता है। कम से कम मैं तो अवश्य ही लक्ष्य सामने रखकर चलता।
अक्सर ऐसा कहा सुना जाता है कि आज के शिक्षक स्वंय तो पढ़ते नहीं, जो पुस्तकें विद्यार्थियों को पढ़ानी होती हैं, वे भी पढक़र नहीं आया करते, फिर वे छात्रों को क्या खाक पढाएंगे? यदि मैं शिक्षक होता, तो अपने पर यह इलजाम कभी भी न लगने देता। जो कक्षांए पढ़ानी हैं, उनका पाठयक्रम तो पढ़ता ही, विषय से संबंध रखने वाली और पुस्तकें भी पढक़र आता, जिससे अपने छात्रों को अधिक से अधिक जानकारी देकर उसका ज्ञान बढ़ाने में सहायक होता। कुछ अध्यापक स्वंय तो अपना ज्ञान कुंजियों तक सीमित रखते ही हैं, अपने छात्रों को कुंजियां पढऩे, कुंजियां खरीदने का दबाव डाला करते हैं, यदि मैं शिक्षक होता, तो कुंजियां लिखने-पढऩे पर हर तरह का प्रतिबंध लगवा देता। वास्तव में इस कुंजि-संस्कृति ने अध्यापकों की बुद्धि को तो दीवाला निकाल ही रखा है, सारी शिक्षा का वातावरण ही दूषित कर दिया है। सो मैं इस प्रकार की सभी बुराइयों के विरुद्ध डटकर संघर्ष करता। इन्हें दूर करवा कर ही दम लेता। पाठय-पुस्तकों के अतिरिक्त अच्छी पुस्तकें पढऩे की प्रेरणाा अपने छात्रों को देता, ताकि उनकी प्रतिभा का ठीक विकास हो सके।
उत्तर:
यदि मैं एक शिक्षक होता
शिक्षण एक महान पेशा है और शिक्षक होना वास्तव में एक सच्चा आशीर्वाद है। छात्रों के जीवन पर शिक्षकों का बहुत प्रभाव पड़ता है।
एक शिक्षक एक छात्र को सबसे अच्छे या सबसे बुरे के लिए ढाल सकता है। एक बच्चा स्कूल और अपने शिक्षकों से अपनी मूल बातें सीखता है और इसलिए शिक्षण एक ऐसा पेशा है जिसमें बहुत अधिक लगन और मेहनत की आवश्यकता होती है।
शिक्षकों का प्रभाव जीवन भर रहता है और इसलिए इससे पहले कि कोई शिक्षण का पेशा अपनाता है, किसी को स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यकता है कि एक अच्छे शिक्षक के कर्तव्य और दायित्व क्या हैं।
अगर मैं एक शिक्षक बन जाता, तो पहला कदम मैं शिक्षण को और अधिक रोचक और मजेदार बनाने के लिए उठाता, ताकि छात्र कक्षा में उपस्थित होते। मैं अपने छात्रों को उनकी कल्पना और विचारों का स्थान दूंगा, ताकि वे किसी स्थिति या संकट में बेहतरी के लिए सोचना और लागू करना सीखें। मैं उनके उत्थान के दौरान उनके साथ खड़ा रहूंगा क्योंकि यह एक शिक्षक की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने छात्रों को अच्छी तरह से समझें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एक छात्र को कभी भी कम या ज्यादा मत समझो, क्योंकि प्रत्येक छात्र अपने तरीके से अद्वितीय होता है और इसलिए उन्हें अपना स्थान देता है।
अगर मैं एक शिक्षक बन जाता, तो मैं अपने छात्रों को अच्छी तरह से संवाद करना सिखाता। यह गैजेट्स और सॉफ्टवेयर नहीं हैं, जिनसे उन्हें संवाद करना सीखना चाहिए, बल्कि एक-दूसरे की भावनाओं को समझने और महसूस करने के लिए बात करने और पाने के मूल तरीके हैं। एक समझदार व्यक्ति समाज और राष्ट्र दोनों के लिए भी एक अच्छा इंसान है।
अगर मैं एक शिक्षक बन जाता, तो मैं अच्छे नैतिक मूल्यों, सम्मान, प्यार और समझ के साथ छात्रों के एक सेट को ढालना पसंद करता, जैसा कि कल उनके हाथों में है और मैं यह सुनना पसंद करूंगा कि मेरे छात्र कल के अच्छे नागरिक बनें राष्ट्र के लिए और उनके परिवारों के लिए।