Hindi, asked by harleenpandha, 4 months ago

Essay on yuvao mein bhatka karan or nivaran

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Answered by SuryaTrinath
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Answer:

युवा किसी भी समाज और राष्ट्र के कर्णधार हैं, वे उसके भावी निर्माता हैं। युवाओं में भटकाव के पीछे एकल परिवार भी महत्वपूर्ण कारक है। युवाओं में भटकाव के पीछे एकल परिवार भी महत्वपूर्ण कारक है। देश की युवा पीढ़ी भटकाव की ओर अग्रसर हो रही है इसका एक मुख्य कारण बेरोजगारी भी है।

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Answered by algyjohny
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Hey...

Here is your answer


युवा-शक्ति ही राष्ट्र-शक्ति है। जिस देश में यह शक्ति रचनात्मक कार्यों में लग जाए, उस देश का कायाकल्प होना तय है। लेकिन जिस देश में यह शक्ति विध्वंसकारी गतिविधियों में लग जाए, उस राष्ट्र का पतन भी निश्चित है। इसलिए हस राष्ट्र को सचेष्ट रहना चाहिए कि उसकी युवा-शक्ति विध्वंसकारी गतिविधियों में न लगकर रचनात्मक कार्यों में लगे। युवा-शक्ति के विध्वंसकारी गतिविधियों में लगने का मुख्य कारण है-युवा-असंतोष।

भारत की नई पीढ़ी चाहे वह विद्यालय में हो या सचिवालय में, राजनीति में हो या साहित्य में, दफ्तरों में हो सड़कों पर- सभी में असंतोष है। इसी अंसतोष के कारण आज सर्वत्र अराजकता है। विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय जो कभी अनुशासन की जननी माने जाते थे, वहां आज अनुशासनहीनता का ताण्डव हो रहा है। शिक्षको का अपमान तथा तोड़फोड़ आम बात हो चली है। सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने में युवा सबसे आगे रहते हैं। परीक्षाओं में कदाचार का बोलबाला हो गया है। यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि आज कोई भी सभ्य आदमी परिवार लेकर छात्रावास के समीप रहना नहीं चाहता। हुल्लड़बाजी से आज के छात्र चूकते नहीं। एक समय था जब शिक्षक के संकेत-मात्र पर छात्र मर-मिटने को तैयार रहते थे। आज उल्टी गंगा बह रही है। अब उद्दण्ड छात्रों के इशारे पर शिक्षक नाच रहे हैं। इसका कारण है कि आज भ्रष्ट्राचार अपने विकराल रूप में शिक्षण-संस्थानों में भी प्रवेश कर चुका है। छात्रों के मार्गदर्शक अब उनके आचार्य न होकर राजनीतिज्ञ हो गए हैं। विश्वविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश पैरवी, भाई-भतीजावाद, जातिवाद और रिश्वत के आधार पर हो रहा है। परीक्षाओं में वीक्षकों का कार्य ईमानदारी को ध्यान में रखकर नहीं होता है। उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन भी निष्पक्ष ढंग से नहीं हो पाता। मेधावी छात्र पीछे रह जा रहे है और पैरवी वाले छात्र आगे आ जाते हैं। इन सभी कारणों को जिम्मेवार माना जा सकता है जिससे युवा-असंतोष बढ़ता ही जा रहा है।



इसके अलावा छात्र-युवाओं में फैले असंतोष के और कई कारण हैं। छात्र जानते हैं कि विश्वविद्यालयों से अच्छी तालीम प्राप्त करने के बाद भी सड़कों पर उन्हें धूल फांकनी है, क्योंकि नौकरी-प्राप्ति में भी प्रतिभा के स्थान पर घूसखोरी और जात-पांत का दबदबा है। इससे युवकों में निराशा, हताशा एवं अशांति फैल गई है और यही युवक राष्ट्रहित में न लगाकर आंतकवादी गतिविधियों में संलिप्त हो गए है। इस प्रकार युवाशक्ति, जो राष्ट्र-निर्माण करती है, आज राष्ट्र के लिए अहितकारिणि बन गई है।

कल-कारखानों एवं अन्य निजी संस्थाओं में कार्यरत युवाओं में भी भारी असंतोष व्याप्त है। नौजवान इन संस्थाओं में जी-तोड़ मेहनत करते हैं लेकिन उन्हें उचित वेतन नहीं मिल पाता है। उनका शोषण किया जाता है। लाचार होकर वे काम तो करते हैं लेकिन अपने भाग्य और वेतन देने वालों को समान रूप् से कोसते हैं। विशेष रूप से उन युवाओं को और कष्ट है जो निजी कारखानों या संस्थाओं में शिक्षित बेरोजगार की हैसियत से मजदूर का भी काम करते हैं। उन्हें तो सम्पूर्ण व्यवस्था पर घोर आक्रोश होता है। ग्रामीण क्षेत्र में भी कम बेरोजगार नहीं है। वे भी रोजी-रोटी के लिए शहर की ओर पलायन कर रहे है, लेकिन शहर में उन्हें उतना ही मिल पाता है, जिसमें वे अपना पेट पाल सकते हैं। जीवन भर की कमाई से भी वे कुछ नया नहीं कर सकते हैं। कोई अचल सम्पति नहीं बन सकते हैं।

सारांशतः बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, जात-पांत, घूसखोरी आदि युवाओं में फैले असंतोष के कारण हैं। लेकिन इन समीकरणों से बड़ा कारण राजनीतिक भ्रष्टाचार ही है। सत्तसीन भ्रष्ट नेताओं ने आज मेधा और प्रतिभा के लिए नौकरी के दरवाजे बन्द कर दिए हैं।उन्होनें अपने भाई-भतीजे और चमचों के लिए नौकरी के पिछले दरवाजे खोल रखे हैं। इनकी छत्रछाया में एक ओर जहां भ्रष्ट व्यापारी, पदाधिकारी एवं तस्कर फल-फूल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चरित्रवान एचं मेधावी लोग सड़कों पर धूल फांक रहे है। इस परिस्थिति में युवाओं में असंतोष उपजना स्वाभाविक है। इस असंतोष को दूर करने के लिए ऐसी शिक्षण-व्यवस्था लागू करनी होगी, जिससे हर हाथ को काम मिल सके। मालिकों द्वारा मजदूरों का शोषण बन्द करना होगा। समाज में व्याप्त जात-पांत, ऊंच-नीच तथा अमीरी-गरीबी की खाई को भरना होगा। मनुष्य की उन्नति तथा प्रतिष्ठा का मापदण्ड पैसा और पैरवी को न मानकर मेधा को मानना होगा। तभी युवाओं में व्याप्त असन्तोष दूर किया जा सकता है अन्यथा युवा-असंतोष का ज्वालामुखी भड़कता रहेगा।

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