English, asked by Iris6210, 10 months ago

Essay writing on importance of satsangati in hindi

Answers

Answered by rawatmukul2007
0

Answer:

सत्संगति पर निबन्ध | Essay on Keeping Good Company in Hindi!

मानव का समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी और कपड़ा । वह शैशवकाल से ही पेट भरने का प्रयत्न करता है ।

तब से ही उसे अच्छी संगति मिलनी चाहिए जिससे वह अपनी अवस्थानुसार अच्छे कार्यों को कर सके और बुरी संगति के भयानक पंजों से अपनी रक्षा कर सके । यदि वह ऐसा न कर सका तो शीघ्र ही बुरा बन जाता है ।

बुरे व्यक्ति का समाज में बिल्कुल भी आदर नहीं होता है । उसका थोड़ा-सा भी बुरा कर्म उसके जीवन के लिए त्रिशूल बन जाता है । फिर वह गले-सड़े हुए फल के समान ही अपने जीवन का अन्त कर डालता है । अत: प्रत्येक मानव को कुसंगति से बचना चाहिए ।

उसे अच्छाई, बुराई, धर्म – अधर्म, ऊँच-नीच, सत्य- असत्य और पाप-पुण्यों में से ऐसे शस्त्र को पकड़ना चाहिए जिसके बल पर वह अपना जीवन सार्थक बना सके ।

इस निश्चय के उपरान्त उसे अपने मार्ग पर अविचल गति से अग्रसर होना चाहिए । सत्संगति ही उसके सच्चे मार्ग को प्रदर्शित करती है । उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है । इस मार्ग पर चलने वाले के सामने धर्म रोड़ा बनकर नहीं आता है । अत: उसे किसी प्रकार के प्रलोभनों से विचलित नहीं होना चाहिए ।

कुसंगति तो काम, क्रोध, लोभ, मोह और बुद्धि भ्रष्ट करने वालों की जननी है । इसकी संतानें सत्संगति का अनुकरण करने वाले को अपने जाल में फँसाने का प्रयत्न करती है । महाबली भीष्म, धनुर्धर द्रोण और महारथी शकुनि जैसे महापुरुष भी इसके मोह जाल में फंस कर पथ विचलित हो गए थे । उनके आदर्शों का तुरन्त ही हनन हो गया था ।

अतत: प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह चन्दन के वृक्ष के समान अटल रहे । जिस प्रकार से विषधर रात-दिन लिपटे रहने पर भी उसे विष से प्रभावित नहीं कर सकते, उसी प्रकार सत्यंगति के पथगामी का कुसंगति वाले कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं ।

Read more on Brainly.in - https://brainly.in/question/8821673#readmore

Explanation:

Answered by manyamagan71
0

Answer:

मानव का समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी और कपड़ा । वह शैशवकाल से ही पेट भरने का प्रयत्न करता है ।

तब से ही उसे अच्छी संगति मिलनी चाहिए जिससे वह अपनी अवस्थानुसार अच्छे कार्यों को कर सके और बुरी संगति के भयानक पंजों से अपनी रक्षा कर सके । यदि वह ऐसा न कर सका तो शीघ्र ही बुरा बन जाता है ।

बुरे व्यक्ति का समाज में बिल्कुल भी आदर नहीं होता है । उसका थोड़ा-सा भी बुरा कर्म उसके जीवन के लिए त्रिशूल बन जाता है । फिर वह गले-सड़े हुए फल के समान ही अपने जीवन का अन्त कर डालता है । अत: प्रत्येक मानव को कुसंगति से बचना चाहिए ।

उसे अच्छाई, बुराई, धर्म – अधर्म, ऊँच-नीच, सत्य- असत्य और पाप-पुण्यों में से ऐसे शस्त्र को पकड़ना चाहिए जिसके बल पर वह अपना जीवन सार्थक बना सके ।

इस निश्चय के उपरान्त उसे अपने मार्ग पर अविचल गति से अग्रसर होना चाहिए । सत्संगति ही उसके सच्चे मार्ग को प्रदर्शित करती है । उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है । इस मार्ग पर चलने वाले के सामने धर्म रोड़ा बनकर नहीं आता है । अत: उसे किसी प्रकार के प्रलोभनों से विचलित नहीं होना चाहिए ।

कुसंगति तो काम, क्रोध, लोभ, मोह और बुद्धि भ्रष्ट करने वालों की जननी है । इसकी संतानें सत्संगति का अनुकरण करने वाले को अपने जाल में फँसाने का प्रयत्न करती है । महाबली भीष्म, धनुर्धर द्रोण और महारथी शकुनि जैसे महापुरुष भी इसके मोह जाल में फंस कर पथ विचलित हो गए थे । उनके आदर्शों का तुरन्त ही हनन हो गया था ।

अतत: प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह चन्दन के वृक्ष के समान अटल रहे । जिस प्रकार से विषधर रात-दिन लिपटे रहने पर भी उसे विष से प्रभावित नहीं कर सकते, उसी प्रकार सत्यंगति के पथगामी का कुसंगति वाले कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं ।

सत्संगति कुन्दन है । इसके मिलने से काँच के समान मानव हीरे के समान चमक उठता है । अत: उन्नति ही एकमात्र सोपान सत्संगति ही है । मानव को सज्जन पुरुषों के सत्संग में ही रहकर अपनी जीवन रूपी नौका समाज रूपी सागर से पार लगानी चाहिए । तभी वह आदर को प्राप्त कर सकता है ।

Similar questions